माननीय प्रधानमंत्री जी,
मैं वहीं हूं जहां था मगर आपका कद और ऊपर हो गया है। जनादेश है कि पुनः भारत का नेतृत्व आपके हाथ में होगा। जिस दिन आपको यह शानदार जीत मिली, मैं रेडियो में आपके पहले भाषण को सुनने की प्रतीक्षा में था। मुझे खुशी है कि आपका अपने कार्यकर्ताओं के लिए पहला भाषण शानदार रहा।
मुझे खुशी यह भी है कि भारत के विकसित होने और लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति होने की मियाद अभी भी 2022 ही है, इस कार्यकाल में 2030 नही हुई। आशा है आपके अगले भाषण में भी लक्ष्य पूर्ति का वर्ष 2022 ही होगा।
इस भाषण में आपने नेहरू जी का नाम नहीं लिया जिससे वे नाराज हैं और रेल की पटरियां उखाड़ रहे हैं। जिस तरह उन्होंने पांच साल विपक्ष की भूमिका निभाई और आपको काम नहीं करने दिया, उन्हें इस तरह चुनाव के बाद उपेक्षित करना मुझे ठीक नहीं लगा।
आपने चौकीदार नाम को भी इस तरह चुनाव के बाद दुत्कार दिया जिसके कारण भारत के सभी नवनियुक्त चौकीदार नेतृत्व विहीन हो गए हैं और पदत्याग में उतारू हो रहे हैं।
आपने एक संतुलित भाषण दिया लेकिन मेरे चरसी दिमाग में आपके पूरे भाषण की दो बातें अटक गईं। पहली बात जो आपने कही कि 2014 के बाद आपने देश की सेक्युलर आवाजों का मुंह बंद कर दिया। स्पष्ट है इसे आप एक उपलब्धि के तौर पर देख रहे हैं।
क्या हम आपके कार्यकर्ताओं के लिए इसे एक निर्देश समझें कि आगे भी आप इसी तरह से सेक्युलर राजनीति को हाशिये पर धकेलने में उनका नेतृत्व करेंगे? आपने संविधान के निर्देशानुसार काम करने की बात कही है और सेक्युलर शब्द संविधान में उल्लेखित है, तो क्या यह देश एक स्पष्ट निर्देश की तरफ आगे बढ़ पाएगा? आशा है कि आप आने वाले वक्त में यह चीज़ें साफ करेंगे।
आपने लेफ्ट का सूपड़ा साफ कर दिया है। आपने वह बात कही जो लेफ्ट कई दशकों से बड़बड़ा रहा है कि दुनिया में दो जाति हैं एक अमीर और एक गरीब। आपने यह भी कहा कि उन अमीर लोगों के हाथों को मज़बूत किया जाए जो गरीबों की मदद करना चाहते हैं। क्या यह वक्तव्य उन पूंजीपतियों के प्रति प्रतिबद्धता दिखाने के लिए है कि उनके विकास में आपका सहयोग पूरी तरह रहेगा।
आशा है कि अगले भाषणों में उनके नाम भी उल्लेखित किए जाएंगे जो अमीर अपने संसाधनों से गरीबों का भला करने के लिए आतुर हैं और अपनी संपत्ति इन बेचारों पर लुटा देना चाहते हैं। मैं सोचता हूं कि सरकार को इन अमीर हाथों को मज़बूत करने की क्या ज़रूरत है? वह सीधे गरीब हाथों को भी मज़बूत कर सकती है। खैर, आपने कहा है तो कुछ सोचकर कहा होगा।
अब आपके दूसरे भाषण की बात करते हैं जिसे आपने एक औपचारिकता के रूप में संसदीय दल को दिया जो एक संत की तरह मानवीयता की उच्चतम स्थिति को प्रतिबिम्बित करता रहा। अल्पसंख्यकों के प्रति उदासीनता और छल पर आपका भाव दिखा जो पहले के भाषणों से बिल्कुल अलग था मगर लोग आपको ऑब्ज़र्ब कर रहे हैं कि कहीं अल्पसंख्यकों के प्रति आपका प्यार जुमला तो साबित नहीं हो जाएगा।
कुछ मायनों में यह आशा दिखाने वाला साबित हो सकता है लेकिन आपके पांच वर्षीय कार्यकाल और उस दौरान किए गए वादों को देखते हुए यह केवल औपचारिक लगता है। संसदीय दल के समाने दिया आपका संबोधन नपा-तुला और गैर राजनीतिक था, जिसे आपको रोज़ खुद भी सुनना चाहिए।
आशा है आपके पास आगामी पांच वर्षों का कोई रोड मैप ज़रूर होगा। आपकी जो इच्छा है वही सबकी इच्छा है कि 21वीं सदी भारत की होनी चाहिए परंतु इसके लिए उन मुद्दों पर भी ध्यान दें जो इस विशाल जनसंख्या को उपयोगी मानव संसाधन के रूप में परिवर्तित कर सके।
आपके देश का युवा