देश को ‘पानीपत’ बनाने की तैयारी की जा रही है। 2019 के संसदीय चुनाव को एक निर्णायक युद्ध घोषित करने पर ज़ोर दिया जा रहा है और एक पक्ष द्वारा सिद्ध करने की होड़ मची है कि उसका नायक हार स्वीकार नहीं कर सकता।
पानीपत वाली बात हाल ही में केन्द्रीय रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने लोकसभा चुनाव के लिए कही थी। यह बात चिंताजनक है कि अब शुद्ध लोकतांत्रिक चुनाव युद्ध सरीखे हो चले हैं।
2019 लोकसभा चुनाव को पानीपत युद्ध समझ कर सत्ता के अपने पौने पांच साल इसी तैयारी में लगा देने वाली मोदी सरकार के इस मंत्री की बात को यदि जुमला भर मान लिया जाए तो उन जुमलों का क्या होगा जिनके सहारे मोदी जी सत्ता में आए थे? इन जुमलों से चारों तरफ सिर्फ भ्रम फैलाया गया।
भ्रम की इस आग में गोदी मीडिया ने पेट्रोल डालने का काम किया फिर फैला अंधभक्ति का धुआं जिसे अंधभक्तों ने गांजे की तरह प्रयोग कर 2014 तक मिली भारत की सारी उपलब्धियों को धुआं-धुआं करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
बस यहीं से मुझे प्रेरणा मिली कि वे सारे वादे जिनके दम पर नरेंद्र मोदी ने सत्ता हासिल की और उस सत्ता के नशे ने देश को किस कदर छला है, उसे जनता तक पहुंचा दूं ताकि आने वाली पीढ़ी मुझसे यह सवाल ना करे कि जब देश की बागडोर जुमलाधीशों के हाथ में थी तब मेरी कलम खामोश क्यों थी।
तो आईए एक-एक कर नरेंद्र मोदी के उन खास वादों से लेकर दावों का पोस्टमार्टम करते हैं, जिनकी सच्चाई को समझ कर हम एक दूसरे को जागरूक कर सकते हैं और अपना कीमती वोट सही तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित प्रजातंत्र में जाति, धर्म के नाम पर चुनाव जीतने का जुनून किसी अफीम से कम नहीं है क्योंकि जब तक उसका नशा उतरेगा तब तक मुल्क तबाही के कगार पर पहुंच चुका होगा।
अपनी पुस्तक ‘जुमलों से पेट नहीं भरता, साहेब!’ लिखने के लिए मैं जिन हस्तियों से प्रेरित हुआ, पत्रकारिता के उन दो नायकों पुण्य प्रसून बाजपेयी एवं रवीश कुमार को धन्यवाद करूंगा कि उनके द्वारा संचालित कार्यक्रमों को देख कर मुझे हौसला मिला। उन सभी चैनलों, न्यूज़ पोर्टल्स, प्रिंट मीडिया आदि का भी शुक्रगुज़ार हूं जिनके द्वारा उपलब्ध जानकारियों को मैंने कलमबद्ध किया जिसके बिना यह किताब अधूरी रह जाती। समाजसेवी सह मानव अधिकार की आवाज़ तीस्ता सीतलवाड़ एवं सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव का आभारी रहूंगा, जिन्होंने पुस्तक की प्रस्तावना लिखी।
पुस्तक पुलवामा के शहीदों को समर्पित
2014 लोकसभा चुनाव में लुभावने वादों पर सवार होकर भाजपा ने केंद्र की सत्ता हासिल तो कर ली लेकिन भाजपा के इस शासन काल में विकास की ललक संजोए देशवासियों की उम्मीदें काफूर होती चली गई। आज इन हालातों के मद्देनज़र सत्तासीन एन.डी.ए. से जनता का सबसे बड़ा सवाल यही होना स्वाभाविक है कि जिन मतदाताओं ने भाजपा के फरेब में आकर उन्हें केंद्र की बागडोर सौंपी उनके वोटों के साथ एन.डी.ए. ने कितना इंसाफ किया।
कड़वा सच तो यह है कि गंगा जमुनी तहज़ीब की समतल ज़मीन असमतल होती चली गई और संतुलन इतना बिगड़ गया कि ‘इंडिया’ और ‘भारत’ के बीच खाई बढ़ती चली गई जिसकी लीपा पोती करने के लिए भाजपा ने एक के बाद एक लुभावने जुमलों की झड़ी सी लगा दी। आज उन्हीं जुमलों से उपजे प्रश्नों का जवाब है मेरी यह पुस्तक ‘जुमलों से पेट नहीं भरता, साहेब’।
यह पुस्तक गुरूर में चूर सत्ताधीशों के साए में जी रहे भारत का आईना भी है। इस पुस्तक ने भारत के पिछले पांच वर्षों को तर्क एवं तथ्य की जुगलबंदी में पिरो कर परिभाषित किया है। मौजूदा माहौल में सिर्फ और सिर्फ आंकड़ों पर आधारित यह पुस्तक एक नज़रिये से प्रधानमंत्री मोदी की उन घोषणाओं को श्रद्धांजलि है जो कभी अस्तित्व में नहीं पहुंच सकी और जुमला बन कर कर हर दिन हर घड़ी देश की जनता को डसती रही।
इस पुस्तक की विषय सूची निम्नलिखित हैं-
- जुमलों पर सवार मोदी सरकार।
- बहुत हुई पेट्रोल डीजल की मार, पॉकेट पर डाका डाले सरकार।
- कश्मीर के नाम पर सेना से लेकर नागरिक तक लहूलुहान?
- पहले ‘लव लेटर’ का व्यंग्य फिर पाकिस्तान से ऐसा याराना?
- मोदी : 15 -15 लाख रुपये यूं ही मिल जाएंगे।
अमित शाह: यह जुमला था
- जन-धन योजना या गले की हड्डी?
- और नोटबंदी ने की अर्थव्यवस्था की नसबंदी।
- प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बाथरूम की तरह मुस्लिमों के घरों में झांकने का परिणाम ‘तीन तलाक’?
- मोदी जी, क्या ‘दलित’ शब्द का प्रयोग ना होने से उनका शोषण रुक जाएगा ?
- ‘हर हाथ काम’ का चुनावी नारा, करता गया बेसहारा।
- मोदी के लिए सफल विदेश दौरे, भारत के लिए असफल?
- मां गंगा अपने बेटे मोदी के राज में बेसहारा।
- तो आदर्श ग्राम खूब निरादर।
- और किसानों की खुदकुशी बढ़ती गई।
- बेटी पढ़ाओ लेकिन भाजपाइयों से बचाओ।
- ना राम की भक्ति ना खुदा की इबादत, बनाम मज़हबी वोटों की सियासत।
- मॉब लिंचिंग कहीं स्पॉन्सर्ड तो नहीं?
- रेल हादसे 349 के पार, ऐसी रही मोदी सरकार।
- सिस्टम भ्रष्ट नहीं बल्कि भ्रष्टाचार के लिए ही सिस्टम है?
- ‘डिजिटल इंडिया’ यानी चश्मा लगने के बाद निरक्षर व्यक्ति पढ़ना सीख जाएगा?
- और इंडिया-भारत की खाई बढ़ती गई।
- ‘भूमि अधिग्रहण’ संशोधन – ज़्यादा गुड़ डालने से कीड़े पड़े।
- ‘मेड इन चाइना’ में लुप्त होता ‘मेक इन इंडिया’।
- मोदी राज में IT सेक्टर चिंताजनक।
- आई.आई.टी. नहीं बल्कि आई.टी.आई. है सदी की ज़रूरत : मोदी
- ‘स्वच्छ भारत अभियान ‘ यानी अक्ल नहीं तो नकल सही।
- जी.एस.टी. यानी कारोबारियों में खौफ का दूसरा नाम।
- मोदी की राफेल डील, भाजपा के ताबूत में आखिरी कील?
- 10 % सवर्ण आरक्षण से मेरिट वालों को क्या नुकसान अब नहीं होगा?
- उफ़ ! ये जुमले!