बात कुछ दिन पुरानी है, मेरी एक दोस्त जिसके लिए रिश्ते की बात चल रही थी; लड़के वाले तकरीबन लाखों रुपये की गुज़ारिश कर रहे थे। डिमांड तो अब होती नहीं है क्योंकि दहेज एक कुप्रथा है। ऐसे में मेरी दोस्त की मम्मी ने मना कर दिया शायद।
वे भले ही इतनी बड़ी रकम देने में सक्षम हैं फिर भी एक अकेली औरत के लिए जिसने अपनी बेटी को अच्छी तालीम दी, हिंदुस्तान में उच्च शिक्षा के स्तर को छूने वाली डिग्री दिलाई और एक लड़के पर होने वाले खर्च के बराबर उसपर इन्वेस्ट किया, उसके आगे के जीवन के लिए यह सही नहीं था। खासकर, उन लोगों को ऐसे पैसे देना जो अपने बेटे पर किए इन्वेस्टमेंट का मुनाफा उसकी शादी करके निकलना चाहते हों।
दूसरे ही दिन पता चला कि वे 15 लाख से 3 लाख पर आ गए और यह थोड़ा बजट का सौदा हो सकता था। इसपर उनकी ख्वाहिश जाग पड़ी जैसे इंतज़ाम ऐसा हो, होटल वैसा हो, सुविधाएं ऐसी हों, वगैरह वगैरह लेकिन खर्च अब भी 15 से 20 लाख के पार का था।
दोस्त की मम्मी बहुत परेशान थीं और ऐसे घर में शादी नहीं करना चाहती थी। बात गलत भी कहां थी, लड़की पढ़ी-लिखी है, दुनिया की नामी MNC में काम करती है और अपने पैरों पर खड़ी है।
इनसब पर मैंने अपनी दोस्त से कह दिया, “तो वे लोग तुझे क्या देंगे, तुझपर किया हुआ खर्च भी तो लगभग 20 से 30 लाख होगा, क्या वे लोग देने को तैयार हैं? भई सौदा बराबरी का होना चाहिए ना।”
हमने तो हंसकर टाल दिया और खबर आई कि उन्होंने यह कहकर रिश्ते से मना कर दिया कि वे उस लड़के को खरीद नहीं सकते। हम सब खुश थे, अपने माँ-बाप को दहेज या शादी में होने वाले खर्च के नाम पर बेचना हम लड़कियों को गवारा नहीं था।
इन्हीं सब मसलों के दौरान हमारे भी करीबी रिश्ते के परिवार में सगाई हुई और इसमें हम लड़के वाले थे। लड़की वाले आर्थिक तौर पर काफी कमज़ोर थे। लड़के वाले ने कहा कि वे दहेज जैसी कोई चीज़ नहीं लेंगे। यह बात सुनकर सबसे ज़्यादा खुशी मुझे हुई क्योंकि हमारा पूरा खानदान काफी रूढ़िवादी है, जिसमें केवल मेरे पिता अपवाद हैं जिन्होंने अपने लड़के-लड़कियों में कभी कोई भेद नहीं किया और सबको ऊंची तालीम भी दी।
मुझे पहली बार एहसास हुआ कि समय के साथ सब कुछ बदलता है और मैंने बदलाव महसूस भी किया। आज खबर आई कि लड़की वाले अपनी क्षमता से परे बहुत कुछ दे रहे हैं, मैं जिसे अपने शब्दों में दहेज ही कहूंगी।
एक बार मैंने शादी से इनकार कर दिया था क्योंकि मैं सक्षम हूं, पढ़ी-लिखी हूं, मैं अपने पिता और भाई को कर्ज़ में डूबते नहीं देख सकती थी। मैं इसका पुरज़ोर विरोध करती हूं लेकिन आज फिर ऐसा महसूस हो रहा है जैसे एक गरीब पिता अपनी बेटी के भविष्य को बनाने के लिए बिक रहा है।