विश्व में सबसे खुशहाल देशों को सूचीबद्ध करने के लिए भूटान ने 2011 में संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव रखा था। इसे मंज़ूरी मिलने के बाद से हर साल 20 मार्च को ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस डे’ मनाया जाता है। खुशहाली मापने के लिए 6 मानकों पर सवाल तैयार किए जाते हैं। इनमें संबंधित देश के प्रति व्यक्ति की जीडीपी, सामाजिक सहयोग, उदारता, सामाजिक स्वतंत्रता, स्वस्थ जीवन पर आधारित सवालों के जवाब पर रैंकिंग की जाती है।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी की गई वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2019 के अनुसार भारत का 156 देशों की सूची में, 140वां स्थान रहा, जबकि भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान इस सूची में 67वें स्थान पर है।
पिछले कुछ वर्षों के वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट्स को देखें तो भारत का स्थान लगातार इसमें नीचे गिरते जा रहा है। 2018 की रिपोर्ट में भारत का स्थान 133वां था, जबकि इस वर्ष भारत सात पायदान फिसलकर 140वें स्थान पर पहुंच गया है। दुनिया की सबसे खुशहाल देशों की सूची में फिनलैंड ने लगातार दूसरी बार पहला स्थान हासिल किया है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों भारत की स्थिति हर साल वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में नीचे गिरती जा रही है? आखिर क्यों भारत के लोग दुखी, उदास और तनाव ग्रस्त होते जा रहे हैं? जबकि दूसरी तरफ भारत आर्थिक तरक्की में लगातार आगे बढ़ रहा है।
पहले हमें यह समझना होगा कि खुशी या हैप्पीनेस आखिर है क्या?
खुशी एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही हमें सकारात्मक अनुभव होता है। इसका वर्णन करना मुश्किल है क्योंकि खुशी को बस महसूस किया जा सकता है। अलग-अलग आयु वर्ग के लोगों के लिए खुशी के अलग-अलग मायने हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, युवाओं को खुशी नई टेक्नोलॉजी जैसे कि न्यू स्मार्टफोन, बाइक आदि पाकर मिलती है। इसके अलावा नई-नई जगहों पर घूमना युवाओं को खुशी देता है।
कुछ लोगों को धार्मिक स्थलों पर जाकर खुशी मिलती है तो कुछ को PUBG गेम खेलकर खुशी मिलती है। देखा जाए तो हर किसी के लिए खुशी के अलग-अलग मायने हैं लेकिन यह तो बाहरी खुशी की बात हो गई, जिसमें हम किसी वस्तु को पाकर खुश हो रहे हैं।
असली खुशी तो आंतरिक है, जिसमें हम किसी वस्तु या व्यक्ति पर निर्भर ना होकर भी खुश रहें। आंतरिक खुशी पर ध्यान देना जैसे आजकल हमने छोड़ दिया है। हर वक्त किसी वस्तु या इंसान में हम अपनी खुशी ढूंढते रहते हैं और अंदर से एकदम खोखले पड़े हुए हैं।
कैसे रहें रोज़ाना की ज़िन्दगी में खुश-
तकनीकि दुनिया से बाहर असली दुनिया के लोगों से मिले-
- हममें से अधिकतर लोग टेक्नॉलॉजी में अपनी खुशियां ढूंढते रहते हैं। अपनों के साथ समय व्यतीत करने की जगह हम फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब आदि में अपना समय देते रहते हैं और अपनी खुशियां फेसबुक, इंस्टाग्राम में दोस्त बनाकर ढूंढते रहते हैं। कुछ पल इस सोशल मीडिया की दुनिया से अलग होकर हमें अपने परिवार व दोस्तों के साथ, बच्चों के साथ समय व्यतीत करना शुरू करना होगा।
खुद के लिए निकाले समय-
- आंतरिक खुशी प्राप्त करने के लिए हमें खुद के साथ भी वक्त बिताना शुरू करना होगा जैसे कि सुबह जल्दी उठकर हम अकेले सैर पर जा सकते हैं, मेडिटेशन कर सकते हैं, किताबें पढ़ना शुरू कर सकते हैं।
दूसरों से ज़्यादा उम्मीदें ना रखें-
- सबसे ज़रूरी हमें दूसरे से ज़्यादा उम्मीदें रखना छोड़ना होगा, क्योंकि दूसरों से की गई उम्मीदें यदि पूरी ना हो हम दुखी हो जाते हैं इसलिए उम्मीदें दूसरों से नहीं खुद से रखिए और खुश रहिए।
‘लोग क्या कहेंगे’ की फिक्र छोड़नी होगी-
- इसके अलावा हम सभी यह सोचते रहते हैं कि ज़िन्दगी एक रेस है और इसमें हमें भागते रहना है। हम अक्सर वही काम करते रहते हैं, जो सब करते आ रहे हैं भले ही हमारा सपना, हमारा जुनून किसी और काम को करने में हो। बिना कुछ ज़्यादा सोचे कि इससे हमें हासिल क्या होगा, हम सब भागते रहते हैं और मन ही मन उदास रहते हैं। ऐसा करने की हमारी कुछ वजह होती है, जैसे कि समाज का डर और ‘लोग क्या कहेंगे’ की चिंता।
- हम अक्सर समाज के बारे में सोचकर असलियत में जो करना चाहते हैं वह नहीं करते हैं। समाज के डर से हम खुद की खुशी भूल जाते हैं। समाज से चंद पल की तारीफ हासिल करने के लिए हम वही करते रहते हैं, जो सभी कर रहे हैं और खुलकर अपने सपनों को जिए बिना हम एक दिन इस दुनिया से चले जाते हैं।
दूसरी की ज़िन्दगी से कभी तुलना ना करें-
- ज़िन्दगी को रेस समझ कर हम पैसा, प्रसिद्धी, सामाजिक स्वीकृति आदि के पीछे ताउम्र भागते रहते हैं और जितना हम ये सब हासिल करते जाते हैं, इसके पीछे भागते जाते हैं, हमारी खुशी उतनी ही कम होती जाती है, हम उतना ही तनाव-ग्रस्त और अकेला महसूस करने लगते हैं।
- हम अक्सर खुद की ज़िन्दगी को दूसरों की ज़िन्दगी से तुलना करते हैं। दूसरों के सुख हमें दुखी कर देते हैं। हमें लगता है कि दूसरों के पास जो भी है वो हमसे बेहतर है। उदाहरण के लिए यदि पड़ोसी के घर में नई कार आई हो तो हम खुश कम दुखी ज़्यादा होते हैं। हमें लगता है कि हमारे पास भी कार होनी चाहिए और फिर हमें कार की आवश्यकता भले ही ना हो लेकिन हम कार खरीदने के लिए पैसे जोड़ने लगते हैं। दिनभर पैसे के बारे में सोचने लगते हैं, हमारी खुशी गायब हो जाती है क्योंकि हमने अपनी ज़िन्दगी की तुलना किसी और की ज़िन्दगी से की।
- सबसे ज़रूरी बात यह है कि हमें यह समझना होगा कि ज़िन्दगी कोई रेस नहीं है, जिसमें हम हमेशा भागते रहें। हम सब एक दूसरे से अलग हैं और हर किसी की ज़िन्दगी की कहानी अलग है, हर किसी के जीवन जीने का तरीका भी अलग है तो खुद की ज़िन्दगी की दूसरे की ज़िन्दगी के साथ तुलना करना खुद के साथ हिंसा करने जैसा है।
अंत में आप सब से मैं यही कहूंगी कि कुछ पल शांति से बैठिए खुद से सवाल कीजिए कि मैं जो कर रहा हूं या रही हूं क्या मैं इससे खुश हूं? अगर नहीं तो ऐसा क्या है जो मुझे खुशी दे सकता है? इसके अलावा अपनी खुशी को किसी वस्तु या इंसान पर निर्भर मत छोड़िये। आपके पास ज़िन्दगी में जो कुछ भी है, उसके लिए हमेशा कृतज्ञ रहिए। रोज़ सुबह जल्दी उठकर मेडिटेशन कीजिए और कुछ पल खुद के साथ व्यतीत कीजिए। सकारात्मक विचार रखिए, खुलकर ज़िन्दगी जीना शुरू कीजिए और खुलकर मुस्कुराइए क्योंकि ज़िन्दगी गुलज़ार है।