राजनीति को आज लोग सबसे ज़्यादा बुरी नज़रो से देखते हैं। इसका स्तर इतना गिर गया है कि किसी के नाम के आगे नेता लगते ही उसे भ्रष्ट मान लिया जाता है। सब इसे कीचड़ बोलते हैं और राजनीतिक दलों पर लोगो का विश्वास लगभग खत्म ही हो गया है।
राजनीति में नैतिक मूल्यों को छोड़ो, इंसानियत के लिए भी कोई जगह नहीं बची है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि उन्हें वोट की भी चिंता करनी चाहिए। एक व्यापारी मुनाफे के लिए भागता है, एक कर्मचारी पदोन्नति चाहता है, वैसे ही एक नेता भी वोट के लिए काम करता है।
आज की राजनीति को ध्यान में रखते हुए बात करते हैं कि एक राजनेता को किन बातो पर खासकर ध्यान रखना चाहिए ताकि वोट भी मिल जाए और किसी का स्तर भी ना गिरे।
अपशब्दों का प्रयोग
आजकल कोई भी टीवी की डिबेट देख लीजिए, पार्टियों के प्रवक्ता अंधाधुंध प्रतिद्वंदियों पर अपशब्दों की बारिश करते रहते हैं। उदाहरण के तौर पर “बिगड़ा हुआ मानसिक संतुलन, अनपढ़, पप्पू, चोर, बदज़बान” जैसे शब्द क्या हैं? इसमें कहां अच्छे नेता की छवि दिखती है। किसी पर निजी टिप्पणी करना कहां की समझदारी है?
सभी कहते हैं कि अपने निजी जीवन और प्रोफेशनल जीवन को अलग रखना चाहिए। आजकल तो किसी प्रतिद्वंदी की पूरी पीढ़ी को भी गाली देने का प्रचलन है। इससे वोट मिलेंगे क्या? सारे राजनेता एक ही देश के नागरिक हैं, तो कम-से-कम उनका सम्मान तो करना बनता है, चाहे वे प्रतिस्पर्धा में ही क्यों ना हों।
ऐसा हो सकता है कि अच्छे आचरण के ही कारण किसी को वोट मिल जाएं। मेरे हिसाब से तो जनता को तभी सतर्क हो जाना चाहिए जब कोई नेता किसी दूसरे नेता पर निजी आक्रमण करता है। जनता को नेता के निजी बयानों पर ताली बजाने के बजाय समझना चाहिए कि जब एक नेता अपने प्रतिद्वंदी का सम्मान नहीं कर सकता, तो वह कितना घमंडी होगा। क्योंकि, यह एक परम सत्य है कि दुनिया में कोई भी 100% सही नहीं है।
गलती ना स्वीकारना
राजनेता कभी अपनी गलती नहीं मानते हैं। उनके अनुसार, उनका या उनकी पार्टी द्वारा किया हुआ हर काम सही था। अरे भाई, आप भगवान हो क्या? सभी जानते हैं कि इस दुनिया में कोई इंसान पूरी तरह सही नहीं है। हर अच्छे नेता को अपनी गलती स्वीकार करने की हिम्मत होनी चाहिए।
अब्दुल कलाम ने एक मिशन की नाकामयाबी की सारी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी, क्योंकि वह टीम के नेता थे। इसी तरह हमारे राजनेताओं को भी गलती स्वीकार करनी चाहिए। यह सबको पता है कि देश चलाना आसान काम नहीं है और उसमें गलतियां होना स्वाभाविक हैं।
नेताओं को बताना चाहिए कि क्या गलती हुई, क्यों हुई, कैसे हुई और उसे सुधारने के लिए क्या कदम लिए गए हैं। इसी तरह के नेताओं के कारण लोकतंत्र में एक पारदर्शिता आएगी। उन्हें स्वीकार करने से जनता नाराज़ नहीं होगी। उल्टा, जनता के मन में एक विश्वास होगा और जनता ऐसे विनम्र नेता को वोट देगी।
उसी तरह अगर कोई नेता अपने प्रतिद्वंदी के कुछ अच्छे कार्यों के बारे में भी बात कर देता है। जैसे, “पिछली सरकार ने कुछ अच्छे काम किए हैं, जिन्हें हम आगे बढ़ाएंगे।” ऐसे बयानों से दिखाता है कि नेता सिर्फ देश के बारे में सोचता है ना कि पार्टी के बारे में। अपनी गलती को नकारने वाला घमंड में चूर इंसान हमेशा एक कमज़ोर नेता होगा।
जनता से बात ना करना
लोकतंत्र में जनता का हक होता है कि जिसे उसने वोट दिया था, उससे सवाल करे और नेता के दृष्टिकोण को और अच्छे से जाने मगर सारे नेता तो चुनाव के बाद गायब हो जाते हैं। क्या व्यस्तता के कारण उनके पास समय नहीं है?
आज आम जन के मन में कई सवाल उठते हैं लेकिन उन सवालों का जवाब कहीं नहीं मिलता है। हर नेता को मीडिया के माध्यम से जनता से संवाद करना चाहिए। इसका मतलब भाषणबाज़ी नहीं है। भाषण तो लोगों ने बहुत सुन लिए हैं।
एक प्लैटफॉर्म पर जाकर खड़े हो जाएं और सामने से जनता जो भी पूछे, उसका जवाब दे। यही उसकी असली परीक्षा होगी। जो नेता इन चीज़ों को ना करके केवल किसी और द्वारा तैयार किए गए भाषणों को पढ़ेगा, तो समझ लीजिए कि वह अच्छा नेता नहीं है।
वैसे तो एक नेता में कई गुण होने चाहिए मगर हम हमारे नेताओं से कोई गाँधी या विवेकानंद बनने की अपेक्षा नहीं रखते मगर यह तीन गुण आज के राजनेताओं में होना बहुत ज़रूरी है। हर प्रतिद्वंदी का सम्मान करना, गलती स्वीकारना और जनता से सीधा बात करना।
इससे लोकतंत्र मज़बूत होगा, नेताओं को वोट भी मिलेंगे और किसी भी नेता को प्रचार के लिए करोड़ों खर्च नहीं करने पड़ेंगे। जानता हूं कि आजकल की राजनीती में इतनी न्यूनतम अपेक्षा भी बहुत ज़्यादा लगती है।
खैर, मुझे राजनीति जैसे जटिल कार्य का ज़्यादा ज्ञान नहीं है मगर ऐसे गुण ही नेताओं को आसानी से वापस सत्ता दिला सकते हैं, जिससे देश का विकास निरंतर रहेगा।