कुछ दिन में चुनाव होने वाले हैं, यह एक ऐसा पर्व है जिसमें हम कई तरह के भगवान, अल्लाह और बहुत से बाबाओं को देख पाते हैं। इससे पहले इनका कोई अता पता नहीं रहता है। कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिनके बारे में हमने सदियों से ना सुना हो, उनके भी बड़े-बड़े वाक्य हमें पढ़ने को मिल जाते हैं।
कुछ ऐसा ही आज उस वक्त हुआ जब मैं विभिन्न पत्रिकाओं और समाचार पत्रों को पढ़ रहा था। उसी में दो आर्टिकल्स ऐसे थे, जिन्हें पढ़ने के बाद मुझे लगा कि अपने भारत में ऐसा भी होता है फिर मैंने सोचा कि सारी चीज़ें चुनाव के ठीक पहले ही क्यों आती हैं?
चाहे वह 2014 के चुनाव के पहले लोकपाल विधेयक पास करने को लेकर अन्ना हज़ारे का आमरण अनशन हो या यह जो कि मैंने पढ़ा अभी अभी। वैसे, आमरण अनशन से किसका फायदा सबसे ज़्यादा हुआ, यह तो हम सभी जानते हैं।
खैर, अभी प्वॉइंट पर आते हैं। मैं बात कर रहा था उन 600 कलाकारों और 199 वैज्ञानिकों की जिन्होंने डायरेक्टली या इनडायरेक्टली हमारे मौजूदा सरकार के बारे में जो बातें कही हैं, शायद सही हो मगर हमें जानना होगा कि क्या ऐसा सच में है?
इन वैज्ञानिकों को क्या हो गया?
पहले उन 199 वैज्ञानिकों की बात करते हैं जिनका प्रश्न मुझे काफी दिलचस्प लगा। 11 अप्रैल से शुरू होने वाले आगामी लोकसभा चुनावों में भारत भर के 199 वैज्ञानिकों ने सभी भारतीय नागरिकों से अपील की है कि वे वैज्ञानिक स्वभाव के लिए हमारी संवैधानिक प्रतिबद्धता को याद रखें और असमानता, धमकी, भेदभाव और देशद्रोह के खिलाफ मतदान करें।
यह मैं शत-प्रतिशत उनकी जुबान ही बोल रहा हूं। थोड़ा सा भी इधर उधर नहीं किया है मैंने, मुझे भी डर लगता है। पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसइआर) के प्रोफेसर सत्यजीत रथ सहित एक छोटे समूह द्वारा तैयार किए गए इस अपील पर बड़े-बड़े महान वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं जैसे अमिताभ जोशी, गगनदीप कंग, नरेश दाधीच, सुभाष लखोटिया और सत्यजीत मेयर जैसे दिग्गजों के हस्ताक्षर थे।
इसमें उन्होंने अपील की है कि वे लोग जो लोगों को मारते हैं, हमला करते हैं, जो लोग धर्म, जाति, लिंग, भाषा या क्षेत्र के कारण भेदभाव करते हैं, तथा जो इस तरह की प्रथाओं को प्रोत्साहित करते हैं, उन्हें हराना होगा। वैसे तो ये बड़े विद्वान लोग यह मानाने से इनकार करते हैं कि यह किसी पार्टी विशेष के लिए है लेकिन हम यह पढ़कर समझ सकते हैं कि किसकी सरकार अभी है और पुन: किसे सत्ता में नहीं आना चाहिए।
तो क्या इन वैज्ञानिकों ने यह मान लिया है कि भाजपा किसी भी तरीके से वैज्ञानिक नहीं है? और देश में जो कुछ भी हो रहा है, वह केवल और केवल भाजपा की देन है। अपने 5 साल के कार्यकाल में क्या उसने बस लिंचिंग करवाए हैं? अगर भाजपा सच में अवैज्ञानिक है तो इसकी सरकार स्वरोज़गार, विज्ञान और योगा को इतना बढ़ावा क्यों दे रही है?
युवाओं को, जो जिस काबिल हैं उन्हें वैसा सपोर्ट कर रही है, भारत को स्वच्छ और ओपन डेफिकेशन फ्री बनाना चाहती है तो यह सरकार अवैज्ञानिक हो गई? जो काम पिछली सरकारों को बहुत पहले करना चाहिए था, वह काम यह सरकार कर रही है फिर सरकार को अवैज्ञानिक कहना उचित नहीं है।
मैं भी एक अज्ञानी हूं, शायद मुझे उनके जितना ना पता हो लेकिन मैं अपने आस-पास के परिवेश को देखकर बिना इसे तोड़े-जोड़े जो है उसे समझ सकता हूं। मैं किसी का पक्ष नहीं लूंगा केवल एक प्रश्न उन महान ज्ञानियों से करना चाहूंगा कि आपका यह सारा ज्ञान और प्रश्न अभी क्यों आया? थोड़ा और पहले क्यों नहीं?
कलाकारों का ज़िक्र भी ज़रूरी है
अब उन 600 कलाकारों की बात समझते हैं। यह बात सर्वज्ञात है कि भातीय साहित्य भातीय दशा और उसके परिवेश को बदलने में बहुत सहायक रहा है लेकिन हम इस बात से भी अछूते नहीं हैं कि यही साहित्य हमें वेस्टर्न कल्चर की ओर भी धकेलता है।
अंग्रेज़ों के बाद जब भारत आजाद हुआ तो हिंदी सिनेमा में जो कुछ चला है, हम सभी जानते हैं। बस कुछ चुनिंदा फिल्में अगर छोड़ दें तो भारतीय सिनेमा कभी देखने लायक रहा ही नहीं है और ना ही इसके कालकार कभी कलाकार जैसे समझ आए हैं मुझे।
खैर, यह मेरा अपना विचार है। आपका नज़रिया कुछ और हो सकता है। कलाकार कहते हैं कि आज हिन्दुस्तान की वही छवि खतरे में है। आज, गीत, नाच, हंसना-हंसाना खतरे में है। आज हमारा प्यारा संविधान खतरे में है। उन संस्थानों का गला घोंटा जा रहा है, जिनका काम तर्क-वितर्क, वाद-विवाद और असहमति को मान्यता देना है।
सवाल उठाने, झूठ को उजागर करने और सच बोलने को ‘देश-विरोधी’ करार दिया जाता है। नफरत के बीज हमारे खान-पान, इबादत और त्यौहारों में शामिल हो गए हैं। जिन अलग-अलग रूपों में नफरत हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में खौफनाक तरीके से दाखिल हो गई है, उसको रोकना है।
आने वाले चुनाव आज़ाद हिंदुस्तान के इतिहास के सबसे अहम चुनाव हैं। बिना सवाल उठाए, बिना वाद-विवाद किए, बिना ज़िंदा विपक्ष के जनतंत्र कामयाब नहीं हो सकता। “ज़िंदा विपक्ष” यह एक शब्द ही मेरे लिए काफी था। मैं मानता हूं कि किसी भी लोकतंत्र में विपक्ष का होना बहुत आवश्यक है लेकिन अगर हम इस बात को ध्यान से सोचे तो इसमें मौजूदा सरकार की क्या गलती है?
विपक्ष अपनी नीतियों की वजह से कमज़ोर पड़ा है। अगर उसकी नीतियां मज़बूत होतीं, उसकी साख मज़बूत होती तो एक दमदार विपक्ष ज़रूर देखने को मिलता।
यह कलाकार लोग ये बात तो कह दिए कि विपक्ष को मौका देना चाहिए, जो नहीं दिया गया। मेरा प्रश्न है, क्या भारतीय संसद में कोई भी बिल वह चाहे जिस बारे में हो, बिना विपक्ष की हामी के पारित हो सकता है क्या?
मुझे लगता है इन कलाकारों और वैज्ञानिकों को भी अनबायस्ड होकर बात करनी चाहिए। मुझे लगता है कf भारतीय जनता समझदार है। उसे अपना नेता चुनना आता है।
अंततः मैं लोगो से यही गुज़ारिश करूंगा कि आप लोग किसी भी अखबार, टीवी या आर्टिकल को पढ़कर अपना निर्णय ना लें, अपने आस-पास के परिवेश को देखते हुए, विकाश और जो भी आपके भले की चीज़ें हैं, उन्हें ध्यान में रखते हुए अपना नेता चुनिए। पैसा, धर्म और जातीय राजनीति से दूर रहिये और राजनीतिक पहलुओं को समझने की कोशिश कीजिए, उसी में आपकी और सबकी भलाई है।