हम सभी भारत की शिक्षा व्यवस्था से अवगत हैं और उस व्यवस्था का अनुभव हम सभी ने किया हुआ है। यह बोलने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि यह व्यवस्था पूरी तरह से अपंग हो चुकी है क्योंकि इतिहास गवाह है कि यह व्यवस्था देश को अपंग करने के लिए ही बनाई गई थी। जब ब्रिटेन में भारत को गुलाम बनाने का खाका तैयार हो रहा था, तब भारत में अंग्रेज़ी शिक्षा की नींव रखने वाले थॉमस बबिंगटन मैकॉले ने संसद को चेताया था।
उन्होंने कहा था, “मैंने भारत के उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक घूमा है और मुझे आज तक एक भी भिखारी या चोर नहीं दिखा, ऐसी फलती-फूलती अर्थव्यवस्था, ऐसी नैतिकता में अमीर और कार्यकुशल यहां के लोग हैं। मुझे नहीं लगता हम इस देश पर कभी राज़ कर पाएंगे, जब तक हम इस देश की रीढ़ की हड्डी को ना तोड़ दें ,जो यहां की आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक विरासत है। इसलिए मैं प्रस्तावित करता हूं कि भारत की पुरानी, गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को अंग्रेज़ी शिक्षा से बदला जाए ताकि भारतीय, वे जो कुछ भी अंग्रेज़ी हैं, उसी को सर्वोच्च मानने लगे, अपनी सभ्यता के भी ऊपर और इस प्रकार से वे अपने स्वाभिमान को, अपनी संस्कृति को खो देंगे और वही बनेंगे जो हम चाहेंगे – पूर्ण रूप से गुलाम देश।”
मुझे आश्चर्य होता है और क्रोध भी आता है कि आखिर ऐसी शिक्षा व्यवस्था का अभी तक हम पालन क्यों कर रहे हैं? हमने अब तक क्यों इस व्यवस्था को जड़ से उखाड़ कर नहीं फेंका है? 65% से अधिक युवा आबादी वाले देश में, जिसका सबसे बड़ा मुद्दा शिक्षा होना चाहिए, वहां की सरकारें और मीडिया इस पर बहस क्यों नहीं करती?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह शिक्षा व्यवस्था आज भी अंग्रेज़ों के मंसूबे पूरे कर रही है। हम आज भी अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ियत के गुलाम हैं। हम आज भी अपनी संस्कृति पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं और पश्चिमी ज्ञान को आंख बंद करके स्वीकार कर लेते हैं।
इस व्यवस्था ने बच्चों की विचारशीलता, कल्पना शक्ति और प्रतिभा को नंबरों के आंकलन की बेड़ियों से जकड़ दिया है। इस व्यवस्था ने अच्छी शिक्षा के नाम पर ‘विद्यालय’ को ‘धंधालय’ बना दिया है। यह व्यवस्था एक विदेशी भाषा नहीं आने पर खुद को कमतर समझने की भावना लाती है और उसी भाषा में खुद को व्यक्त करने पर मजबूर करती है।
यह शिक्षा व्यवस्था हमें रोबोट बना रही है
यह व्यवस्था नंबरों की संकीर्ण सीमा क्षेत्र से बाहर निकल कर व्यवहारिक ज्ञान और कौशल नहीं दे पाती है। यह व्यवस्था ज्ञान के सागर को चार-दीवार में समेट कर रख देती है, जो मौलिक शिक्षा देकर अच्छा इंसान बनने की नहीं, बल्कि अच्छा रोबोट बनने की शिक्षा देती है।
जो व्यवस्था भारत को अपंग करने के लिए बनाई गई थी, वह भारत को सशक्त और स्वाभिमानी कैसे बना सकती है? उच्च शिक्षा की हालत तो बहुत खराब है, जहां 80% स्नातक युवा रोज़गार के लिए कुशल नहीं हैं। यह कैसी शिक्षा व्यवस्था है, जो युवाओं को कुशल नहीं बना पा रही है? युवा अपने 4 वर्षों का बहुमूल्य समय क्यों बर्बाद करें? यह व्यवस्था हमें सिवाए अव्यवस्था के क्या दे रही है?
शिक्षा व्यवस्था में तमाम समस्याओं की जड़
जिस देश में हज़ारों भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं, उस देश की समस्याएं एक विदेशी भाषा की शिक्षा कैसे सुलझा सकती है? हम हमेशा भारत की प्राचीन वैज्ञानिक उपलब्धियों पर इतराते रहते हैं लेकिन उन उपलब्धियों को फिर से कैसे प्राप्त किया जाए, यह विचार क्यों नहीं करते हैं?
हम अमेरिका या किसी और देश से क्यों तुलना करते रहते हैं? भारत का विकास तो भारत के अनुसार ही हो सकता है। उसके लिए इतिहास से हमें सीखना होगा। अगर गंभीरता से विचार किया जाए तो गरीबी, बेरोज़गारी, गंदगी, बलात्कार और भ्रष्टाचार जैसी तमाम सामाजिक समस्याओं की जड़ शिक्षा व्यवस्था में है।
यदि शिक्षा कौशल विकास करेगी और बच्चों के असली सामर्थ्य को छोटी उम्र से ही विकसित करने में मदद करेगी तो अपने लक्ष्य को हासिल करना किसी बच्चे के लिए आसान होगा और वह रोज़गार प्राप्त कर लेगा या रोज़गार खुद ही बनाने में सक्षम होगा। जब रोज़गार होगा तब गरीबी का सवाल ही पैदा नहीं होता।
अगर छोटी सी उम्र से बच्चों को प्रकृति व पर्यावरण के प्रति व्यवहारिक तौर पर संवेदनशीलता सिखाई जाएगी और आध्यात्मिकता से मस्तिष्क को सींचा जाएगा, तो उसी प्रकार से मस्तिष्क नैतिक रूप से सशक्त बनेगा। ज़िंदगी में कभी दुराचार करने, गंदगी फैलाने, भ्रष्टाचार करने और बलात्कार करने के विचार मन में नहीं आएंगे। इस प्रकार समाज में बुराईयां कम होंगी।
मौलिक शिक्षा के ज़रिये जागरूकता की पहल लानी होगी
यदि स्थानीय भाषा में शिक्षा दी जाएगी तो बच्चों को अभिव्यक्ति में आसानी होगी। बच्चे मातृभाषा में अधिक अच्छे से सोच पाते हैं। इस प्रकार देश हित में देशी आविष्कार होंगे क्योंकि बच्चे मौलिक रूप से देशभक्त होंगे।
यदि शिक्षा में योग व प्राणायाम ज़रूरी कर दिया जाए तो बच्चे बचपन से ही स्वस्थ रहेंगे। बीमारियां काफी कम हो जाएंगी। अगर बच्चों को सेल्फ डिफेंस हर स्कूल में सिखाया जाएगा तो बच्चे अपनी सुरक्षा कर सकेंगे। मौलिक शिक्षा से जागरूकता आती है। जब बच्चे संवेदनशील बनते हैं तो देश के लिए जनसंख्या कम करने में भी सहायक होते हैं।
अगर सरकार सिर्फ शिक्षा व्यवस्था में अधिक से अधिक निवेश कर दे तो बहुत सी जगहों पर काफी कम पैसा खर्च करना पड़ेगा। यानि सोचिए अगर हम अगली पीढ़ी की एक ऐसी नस्ल विकसित करते हैं, जो इस प्रकार की व्यवस्था में आगे बढ़े तो हम इस दुनिया को कितना खूबसूरत बना सकते हैं।