भ्रष्टाचार एक ऐसी समस्या है जो तकरीबन हर देश में देखी जा सकती है। इसकी व्यापकता कम-ज़्यादा हो सकती है लेकिन कोई भी देश यह दावा नहीं कर सकता कि वह भ्रष्टाचार से मुक्त है।
भारत में भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार विरासत में मिली ऐसी संपत्ति है, जिसे लोग बढ़ावा देकर देश को खोखला कर रहे हैं। भ्रष्टाचार अर्थात भ्रष्ट+आचार। भ्रष्ट यानि बुरा और आचार का मतलब है आचरण। भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है, वह आचरण जो अनैतिक और अनुचित हो।
जब कोई व्यक्ति न्याय व्यवस्था के मान्य नियमों के विरूद्ध जाकर अपने स्वार्थ के लिए गलत आचरण करने लगता है, तो वह व्यक्ति भ्रष्टाचारी कहलाता है।
विश्व में भ्रष्टाचार के मामले में भारत का 94वां स्थान है
एक सर्वे के अनुसार 62% से अधिक भारतीय अपना काम शीघ्र कराने के लिए छोटे सरकारी दफ्तरों से लेकर सरकार तक को रिश्वत देकर अपना काम आसानी से करा लेते हैं। हर दिन अखबार में भ्रष्टाचार के मामले सामने आते हैं। पहले एक-एक रुपये की कद्र थी लेकिन आज करोड़ों में भ्रष्टाचार होने लगे हैं।
निजी दफ्तरों से लेकर सरकारी दफ्तरों तक भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार, बुराई का वह रूप है जिसे जनता ने कभी काम शीघ्र कराने के लिए अपनाया तो कभी मबूरी में। कुर्सी पर बैठे अधिकारी ने भी रुपयों के लालच में भ्रष्टाचार को अपना लिया।
मीडिया में भ्रष्टाचार
वर्तमान में संचार के साधनों का विकास व उपयोग बहुत तीव्रता से हो रहा है। हर व्यक्ति के पास सोशल नेटवर्किंग के सभी साधन उपलब्ध हैं। हर अच्छी-बुरी सूचना का माध्यम मीडिया बन गया है।
मीडिया की उपलब्धता बढ़ते ही लोगों ने इसे अपने अनुसार संचालित करना शुरू कर दिया। अक्सर छोटे-बडे़ शहरों, ज़िलों एवं कस्बों में मीडिया की चाकरी करने वाले पत्रकारों पर पैसे लेकर खबर छापने या फिर खबर के नाम पर दलाली के आरोप लगते रहते हैं।
बाज़ार के चंगुल में मीडिया
आज़ादी के बाद लगभग सभी बड़े समाचार-पत्र पूंजीपतियों के हाथ लग गए। इसलिए आवाज़ उठती है कि मीडिया बाज़ार के चंगुल में है। बाज़ार का उद्देश्य ही है अधिक-से-अधिक लाभ कमाना, जिसमें पत्रकार शब्द नाकाफी है क्योंकि न्यूज़ अब व्यापार का ज़रिया बन गया है। अनेक नेता और कॉरपोरेट कंपनियां अखबार का स्पेस तथा टीवी का समय खरीद लेते हैं।
भारत की प्रेस-काउंसिल और न्यूज़ ब्राॅडकास्टिंग एजेंसी बौनी है। अच्छे लेखकों की सत्य आधारित लेखनी का सम्मान नहीं होता है। आजकल अखबारों में अनर्गल लेख आदि ही छप रहे हैं। अखबारों में संपादक के नाम पत्र का कॉलम भी अब नहीं रहता।
संपादकों की कलम सत्ता की गुलाम
आज के दौर में लोग विश्वासपूर्वक नहीं लिखते हैं। लिख भी दिया तो अनुकूल पत्र ही छपते हैं बाकी कूड़ेदान में जाते हैं। कुछ संपादकों की कलम सत्ता के स्तंभों और मालिकों की ओर निहारती है।
लोकतंत्र पर नज़र रखने वाला मीडिया भ्रष्टाचार के जबड़े में है। मीडिया के अंदर भ्रष्टाचार के घुसपैठ पर नज़र डालने से पहले निचले स्तर पर नज़र डालना होगा।
अभी भी ऐसे पत्रकार हैं जो संवाददाता सम्मेलनों में खाना क्या, गिफ्ट तक नहीं लेते। संवाददाता सम्मेलन कवर कर अपना काम करते हैं। वहीं, कई पत्रकार खाना और गिफ्ट के लिए हंगामा मचाते नज़र आते हैं।
छोटे स्तर पर पत्रकारों के भ्रष्ट होने के पीछे सबसे बड़ा मुद्दा आर्थिक शोषण का आता है। छोटे और बड़े मीडिया हाउसों में 15 सौ रूपये मासिक पर पत्रकारों से 10 से 12 घंटे काम लिए जाते हैं। ऊपर से प्रबंधन की मर्ज़ी जब जी चाहे नौकरी पर रखे या निकाल दे। भुगतान दिहाड़ी मज़दूरों की तरह है।
कलम के सिपाहियों का बुरा हाल
वेतन के मामले में कलम के सिपाहियों का हाल सरकारी आदेशपालों से भी बुरा है। ऐसे में यह चिंतनीय विषय है कि एक पत्रकार अपनी ज़िंदगी पानी और हवा पीकर तो नहीं गुज़ारेगा ना।
लाज़मी है, खबर की दलाली करेगा। वहीं, कई छोटे मीडिया हाउसों में कार्यरत पत्रकारों को तो कभी निश्चित तारीख पर तनख्वाह तक नहीं मिलती है।
छोटे स्तर पर कथित भ्रष्ट मीडिया को स्वीकारने के पीछे पत्रकारों की खराब आर्थिक स्थिति सबसे बड़ी वजह है, जिसे एक हद तक मजबूरी का नाम दिया जा सकता है।
सरकार बनाने में भ्रष्टाचार
देश को संचालित करने वाली सरकार बनाने के लिए भी भ्रष्टाचार होने लगा है। वोट से लेकर संसद की सीट सब बिकाऊ है। विश्वास के आधार पर जनता ने जिस नेता को चुना है, वह तो खुद भ्रष्टाचार में लिप्त है।
व्यापार में भ्रष्टाचार
आजकल छोटे-से-छोटे व्यापार के साथ बड़े-से-बड़े उद्योगों में मिलावट की खबरें आती हैं। इनसब से बचने के लिए हर एक व्यापारी और उद्योगपति विभाग को पैसा खिलाकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है।
विविध रूप में भ्रष्टाचार
यह ज़रूरी नहीं कि किसी को पैसे देकर ही भ्रष्टाचार हो। भ्रष्टाचार के कई रूप हैं। जैसे-
- किसी चीज़ की गलत जानकारी देना
- टैक्स की चोरी करना
- चीज़ों में मिलावट करना
- काला-बाजा़री और
- रिश्वतखोरी करना आदि
भारत में भ्रष्टाचार कब शुरू हुआ?
पुराने समय में जब भारत अंग्रेज़ों का गुलाम हुआ करता था। उस समय ही “फूट डालो और शासन करो” नीति के साथ भ्रष्टाचार ने भारत में जन्म ले लिया था।
बड़े-बड़े राजा-महाराजा ने भी अंग्रेज़ों के साथ मिलकर सत्ता और पूंजी के लालच में भ्रष्टाचार को बढ़ा दिया। तब से लेकर आज तक भ्रष्टाचार बहुत तीव्रता से बढ़ रहा है।
भ्रष्टाचार के कारण
- असंतोष – जब कोई व्यक्ति अभाव के कारण कष्ट में होता है, तो वह भ्रष्टाचार करने के लिए विवश हो जाता है।
- स्वार्थ और असमानता- आर्थिक, सामाजिक-सम्मान और पद-प्रतिष्ठा के कारण भी व्यक्ति अपने आपको भ्रष्ट बना लेता है। इसके साथ ही रिश्वतखोरी और भाई-भतीजावाद आदि भी भ्रष्टाचार को जन्म देते हैं।
भारत में बढ़ता भ्रष्टाचार
भारत देश में भ्रष्टाचार तेज़ी से बढ़ रहा है। इसकी जड़ें तेज़ी से फैल रही हैं। यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो यह पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेगा।
यदि हम इस वर्ष की ही बात करें तो ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं, जो कि भ्रष्टाचार के बढ़ते प्रभाव को दर्शाते हैं। जैसे- आईपील में खिलाड़ियों की स्पॉट फिक्सिंग।
नौकरियों में अच्छी पोस्ट की लालसा में लोग रिश्वत देने से भी नहीं चूकते हैं। आज भारत का हर तबका इस बीमारी से ग्रस्त है।
- मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की सम्पत्ति एक-दो वर्ष में ही बढ़ जाती है।
- विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में लाखों रूपए लेकर परीक्षा में नकल कराकर मेरिट सूची में लाने के समाचार आ रहे हैं।
- संसद में प्रश्न पूछने के लिए पैसे लेना।
- पैसे लेकर विश्वास-मत का समर्थन करना।
- राज्यपालों और मंत्रियों आदि द्वारा विवेकाधिकार का दुरुपयोग।
- चिकित्सकों का भ्रष्टाचारअनावश्यक जांच लिखना, जेनेरिक दवाएं ना लिखना, भ्रूण की जांच करना और लिंग परीक्षण करना।
- वकीलों द्वारा भ्रष्टाचार
चुनाव संबंधित भ्रष्टाचार
- बूथ लूटना
- ईवीएम छेड़छाड़
- चुनाव से ठीक पहले पैसे, शराब एवं अन्य सामान बांटना
- चुनाव में अंधा-धुंध पैसे खर्च करना
- मतगणना में धांधली करा देना।
भ्रष्टाचार और स्विस बैंक
“भारतीय गरीब हैं लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा।” यह कहना है स्विस बैंक के डायरेक्टर का। उन्होंने यह भी कहा है कि भारत के लगभग 280 लाख करोड़ रुपये उनके स्विस बैंक में जमा हैं।
यह रकम इतनी है कि आने वाले 30 सालों तक भारत का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है। यह रकम इतनी ज़्यादा है कि अगर हर भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए जाए तो 60 साल तक खत्म ना हो।
यानि भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने की ज़रूरत नहीं है। ज़रा सोचिए, हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों ने कैसे देश को लूटा है और यह लूट का सिलसिला अभी तक जारी है।
आज़ादी से लेकर अब तक भ्रष्टाचार ने 280 लाख करोड़ लूटा है। एक तरफ 200 साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64 सालों में 280 लाख करोड़ है। यानि हर साल लगभग 4.37 लाख करोड़ या हर महीने करीब 36 हज़ार करोड़ भारतीय मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमा करवाई गई है।
सेना में भ्रष्टाचार
विश्व की कुछ चुनिंदा सबसे तेज़, चुस्त, बहादुर और देश के प्रति विश्वसनीय सेनाओं में अग्रणी स्थान पाने वालों में से भारतीय सेना हैं। देश का इतिहास इस बात की गवाही देता है कि भारतीय सेना ने युद्ध में लड़ाई सिर्फ अपने जज़्बे और वीरता के कारण जीत ली जो दुश्मन आधुनिक अस्त-शस्त्र से भी नहीं जीत पाए।
भ्रष्टाचार के मामले अब सेना में भी मिल रहे हैं। अफसोस जनक बात यह है कि अब तक सेना से संबंधित अधिकांश भ्रष्टाचार और अपराध सेना के उच्चाधिकारियों के नाम ही रहा है।
आज सेना के अधिकारियों को तमाम सुख-सुविधाएं मौजूद होने के बावजूद भी सेना में भरती, आयुध, वर्दी एवं राशन में भ्रष्टाचार की घटनाएं यही दर्शा रही हैं कि भारतीय सेना में ऐसे लोग घुस चुके हैं, जिन्होंने वर्दी देश की सुरक्षा के लिए नहीं पहनी है।
सेना में हथियार आपूर्ति, सैन्य सामग्री, खाद्य राशन पदार्थों की आपूर्ति और ईंधन आपूर्ति आदि में घोटाले किए जा रहे हैं। चूंकि ये मसले आंतरिक सुरक्षा से जुड़े हैं, इस वजह से सूचनाएं पारदर्शी नहीं हो पाती हैं।
यदि तमाम ठेकों और शस्त्र वाणिज्य डीलों को जन-साधारण के लिए रख दिया जाए तो बहुत कुछ छुपाने की गुंज़ाईश खत्म हो जाएगी।
कॉरपोरेट में भ्रष्टाचार
भारत में नेताओं, कारपोरेट जगत के बड़े-बड़े उद्योगपतियों तथा बिल्डरों ने देश की सारी सम्पत्ति पर कब्ज़ा करने के लिए आपस में गठजोड़ कर रखा है। यह सच है कि आज भी ऐसे बड़े घराने हैं, जो जब चाहें किसी भी सीएम और पीएम के यहां दस्तक दें तो दरवाज़े उनके लिए खुल जाते हैं।
देश में आदर्श सोसायटी घोटाला, टू-जी स्पैक्ट्रम, कॉमनवैल्थ घोटाला और कोयला आवंटन को लेकर हुए घोटाले कारपोरेट घोटालों के उदाहरण हैं।
महाशक्ति के रूप मे भारत का भविष्य
राजनीतिक पार्टियों का मूल उद्देश्य सत्ता पर काबिज़ रहना है। कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए भारी-भरकम नौकरशाही स्थापित की जा रही है। सरकारी विद्यालयों एवं अस्पतालों का हाल सर्वविदित है।
भारत महाशक्ति बन सकता है यदि राजनीतिक पार्टियों द्वारा कल्याणकारी कार्यक्रमों में कार्यरत सरकारी कर्मचारियों की बड़ी फौज को खत्म किया जाए। इनपर खर्च की जा रही रकम को सीधे मतदाताओं को वितरित कर देना चाहिए।
भारत में भ्रष्टाचार दिवस क्यों मनाया जाता हैं?
भ्रष्टाचार से किसी भी व्यक्ति की ईमानदारी और मौलिकता का शक के दायरे में आना स्वाभाविक है। यह उन व्यक्तियों की छवि को भी प्रभावित करता है, जिनके पास सत्ता और शक्ति होती है।
इससे सरकार के स्थायित्व में कमी आती है और देश आर्थिक रूप से पिछड़ने लगता है। भ्रष्टाचार कई तरह से किया जा सकता है लेकिन जिसे भी रिश्वत देनी पड़ती है, उसकी एक ही इच्छा होती है कि उसे न्याय मिले और आरोपियों को सज़ा मिले।
भ्रष्टाचार सम्बन्धित मामलों पर आम-जन को जागरूक करने, न्याय प्रक्रिया में तेज़ी लाने, भ्रष्ट अधिकारियों में खौफ बनाने और समान कानून व्यवस्था के लिए भ्रष्टाचार सम्बन्धित वार्ता और इससे जुड़े मुद्दों पर विचार करना आवश्यक हो जाता है। शायद इसी बात को ध्यान में रखकर भ्रष्टाचार दिवस मनाया जाने लगा है।
भ्रष्टाचार रोकने के उपाय
- सभी कर्मचारियों का वेतन उनके बैंक खाते में डाला जाए।
- अधिकाधिक लेन-देन डिजिटल रूप में की जाए।
- बड़े नोटों का प्रचलन बंद हो।
- जनता के प्रमुख कार्यों को पूरा करने एवं शिकायतों पर कार्रवाई करने के लिए समय सीमा निर्धारित हो।
- विशेषाधिकार और विवेकाधिकार का मानक तय हो।
- भ्रष्टाचार करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान हो।
- अपराधी तत्वों को चुनाव लड़ने पर पाबंदी हो।
- विदेशी बैंकों में जमा भारतीयों का काला धन भारत लाया जाए और उसे सार्वजनिक हित के कार्य किए जाएं।
समाज में विभिन्न स्तरों पर फैले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर दंड-व्यवस्था की जानी चाहिए मगर आज की स्थिति यह है कि व्यक्ति रिश्वत के मामले में पकड़ा जाता है और रिश्वत देकर ही छूट जाता है। जब तक इस अपराध के लिए कड़े दंड नहीं दिए जाएंगे, तब तक यह बीमारी पूरे देश को खा जाएगी।
भ्रष्टाचार हमारे नैतिक जीवन मूल्यों पर सबसे बड़ा प्रहार है। इससे जुड़े लोग स्वार्थ में अंधे होकर राष्ट्र का नाम बदनाम कर रहे हैं इसलिए हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठनी चाहिए ताकि देश की तरक्की हो।