फासीवाद का जब भी ज़िक्र किया जाता है, तो दो नाम सबसे पहले ज़ुबां पर आते हैं। एक हिटलर और दूसरा मुसोलिनी। 1940 के दशक में हुए विश्व युद्ध में इसी फासीवाद के कारण डेढ़ करोड़ से अधिक लोग मारे गए थे। उस युद्ध में आखिरकार सोवियत संघ को विजय प्राप्त हुई और फासीवाद सोच पराजित हुई। उस वक्त लोगों ने यह समझ लिया था कि यह समाज के लिए बिल्कुल भी अच्छी व्यवस्था नहीं है और इससे दूर रहने में ही भलाई है। उस दौर में किसी के लिए फासीवादी शब्द का प्रयोग मात्र ही उसे गाली देने के जैसा माना जाता था।
वर्तमान का विश्व फिर से उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है। शायद हम इतिहास से सबक लेना भूल गए हैं या फिर हम इतिहास पढ़ना ही भूल गए हैं। हम तो बस व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की किताबों से गांधी-नेहरू के बारे में जो पवित्र ज्ञान प्राप्त करते हैं, उसे वायरल करके ही कृतार्थ हो जाते हैं।
राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञ डॉ. लॉरेंस ब्रिट ने फासीवादी शासकों, जैसे कि हिटलर और मुसोलिनी, के शासन के विषय में गहन अध्ययन किया और इस पर अपना एक लेख प्रकाशित किया। इस लेख में उन्होंने बताया कि फासीवाद के प्रारम्भिक लक्षण कैसे होते हैं। मतलब, किन लक्षणों के दिखाई देने पर यह समझ जाना चाहिए कि वह देश फासीवाद की ओर बढ़ रहा है। इस लेख में उन्होंने चौदह बिन्दुओं का उल्लेख किया।
मैं एक-एक करके इन बिन्दुओं को आपके सामने रखता हूं। आप वर्तमान में हमारे देश में हो रही घटनाओं से इसकी तुलना कीजिये और स्वयं निष्कर्ष तक पहुंचिए।
ताकतवर और निरंतर जारी राष्ट्रवाद
फासीवाद की ओर बढ़ रहे देश में राष्ट्रवाद का इस्तेमाल एक हथियार के तौर पर किया जाता है। सत्ता पक्ष हर मुद्दे में राष्ट्रवाद को लाकर सामने खड़ा कर देती है। जो लोग सत्ता पक्ष से सवाल पूछते हैं उनकी देशभक्ति पर सवाल उठाया जाता है और सीधे तौर पर उन्हें देशद्रोही कह दिया जाता है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि पिछले कुछ सालों में आप देशभक्त, राष्ट्रवाद और देशद्रोही जैसे शब्दों को कुछ ज़्यादा सुन रहे हैं?
मानवाधिकार के लिए तिरस्कार की भावना
फासीवाद से प्रभावित होते हुए देश में सत्ता पक्ष लोगों के मानवाधिकारों के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर देती है। आम जनता पर बेवजह ही तरह-तरह के कानून थोपे जाने लगते हैं। जो लोग इसका विरोध करते हैं सत्ता पक्ष अपने बाहुबल का प्रयोग कर उन्हें डरा-धमकाकर उनकी आवाज़ को दबाने का प्रयास करती है।
विरोधियों को देश का शत्रु बताकर जनता को लामबंद करना
सत्ता पक्ष अपने विरुद्ध उठ रही सभी आवाज़ों का अलग-अलग माध्यम से दुष्प्रचार करती है। वह गलत खबरें फैलाकर अपने विरोधियों की छवि को बिगाड़ कर जनता के सामने पेश करती है। उसका उद्देश्य सिर्फ यही दिखाना होता है, “जो हैं बस हम हैं, बाकी देशद्रोही।” इसी बात पर नेहरू जी को याद कर लीजिये।
सेना का प्रभुत्व
फासिस्ट देशों में सरकार बात-बात में आर्मी को सामने लाकर खड़ा कर देती है। सरकार से सवाल करने को आर्मी के ऊपर सवाल उठाना बताया जाता है। अब कोई भी नागरिक अपनी आर्मी पर तो सवाल नहीं ही उठाएगा। मतलब, सरकार से सवाल यानि सेना पर प्रश्न, सेना पर प्रश्न यानि देश का विरोध, देश का विरोध यानि देशद्रोह। अतः सरकार से सवाल यानि देशद्रोही।
नोटबंदी के दौर की यह बात एक बार फिर से याद कीजिये, “सियाचिन में हमारे जवान लड़ रहे हैं।”
अनियंत्रित लिंगभेद
इस तरह के देशों में महिलाओं को उनकी काबिलियत और शिक्षा के आधार पर नहीं देखा जाता है। इसके विपरीत महिलाओं को उनके पहनावे, आचरण, सुंदरता आदि के आधार पर देखा जाता है। सत्ता पक्ष के लोग महिलाओं के विषय में टिप्पणियां करते हुए अपनी सीमाएं लांघने लगते हैं।
सत्ता का मीडिया पर नियंत्रण
फासिस्ट देशों की मीडिया पूरी तरह सरकार के अधीन होती है। या तो उन्हें खरीद लिया गया होता है, या फिर उन पर इस तरह का दबाव बनाया जाता है कि वे सत्ता पक्ष के विरुद्ध कोई खबर ना दिखाएं। मीडिया सरकार से सवाल करने की बजाय विपक्ष को ही कटघरे में खड़ा करने लगती है। वह आम जनता को उनके बुनियादी मुद्दों से भटकाकर उन्हें गैर-ज़रूरी खबरें दिखाती है।
रात के 9 बजे टीवी खोल लीजिये, न्यूज़ चैनल लगा लीजिए, सोफा पर खाना लेकर बैठ जाइए और देखिये किस तरह न्यूज़ एंकर हिन्दू-मुसलमान और सेना का नाम लेकर आपको मूर्ख बना रहा है।
राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को बेवजह तूल देना
अपने देश और उसके नागरिकों की सुरक्षा को लेकर तो सभी देश चिंतित होते हैं लेकिन फासिस्ट देश अपने नागरिकों के भीतर इस तरह का डर बैठा देते हैं जिससे उन्हें लगने लगता है कि देश में हर समय युद्ध का माहौल बना हुआ है और उनकी रक्षा अब सिर्फ वही सरकार कर सकती है।
“मैं देश को झुकने नहीं दूंगा।” मोदी जी का यह बयान याद ही होगा आपको। देश हमारे बहादुर सैनिकों के हाथों में सुरक्षित है। प्रधान सेवक जी अगर एक नज़र किसानों पर एक नज़र डाल लेते तो कितना अच्छा होता।
सरकार का धार्मिक मामलों में उलझना
किसी देश का संविधान ही उसका सबसे पहला धर्म होता है। सरकार का यह काम होता है कि वह देश में संविधान की मर्यादा को बनाए रखे लेकिन फासीवादी विचारधारा की ओर बढ़ते हुए देश में सरकार अपने राजनीतिक लाभ के लिए धर्म का इस्तेमाल करने लगती है।
एक बार फिर से कह देता हूं। रात में टीवी के सामने बैठ जाइए और फिर मंदिर-मस्जिद, हिन्दू-मुसलमान, गाय-बकरी, गोत्र-जाति आदि डिबेट को गौर से देखिये। अगर अभी तक आपका रोबोटिकरण नहीं हुआ है तो आप चीज़ों को खुद ही समझ जाएंगे और अगर आप रोबोट बन चुके हैं तो आपको मुबारकबाद।
पूंजीवादी ताकतों की रक्षा
फासिस्ट देशों में सरकार के सत्ता में आने के पीछे पूंजीपतियों का हाथ होता है। बड़े-बड़े उद्योगपति राजनीतिक दलों को अपने लाभ का एक बड़ा हिस्सा चंदे के रूप में दे देते हैं। यही राजनीतिक दल जब सत्ता पर विराजमान हो जाते हैं, तो वे भी उद्योगपतियों को तरह-तरह से लाभ पहुंचाते हैं। किसान और नौजवान केवल इनके चुनावी भाषण का हिस्सा मात्र होते हैं।
मज़दूरों की ताकत को दबाना
श्रमिक वर्ग भी इनके अत्याचार से अछूते नहीं रहते हैं। इन देशों में भिन्न-भिन्न प्रकार से इस वर्ग का शोषण किया जाता है।
कला एवं बुद्धिजीवी वर्ग के लिए तिरस्कार
फासिस्ट देशों में विभिन्न क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों को भी दबाकर रखने का प्रयास किया जाता है। अगर कोई सत्ता पक्ष से किसी भी प्रकार की असहमति ज़ाहिर करता है, तो उस पर तरह-तरह की टिप्पणियां की जाती हैं और उसे देश विरोधी करार दिया जाता है।
अपराध और सज़ा के प्रति अतिवादी रवैया
फासिस्ट देशों में सरकार अपने द्वारा बनाए गए नियमों को लोगों के ऊपर थोपने के लिए पुलिस का इस्तेमाल करती है। उन्हें देशभक्ति के नाम पर इस तरह भड़का दिया जाता है कि वे अपनी ड्यूटी भूलकर आम लोगों पर कई तरह के ज़ुल्म करने लगते हैं। सरकार उल्टे सीधे नियम बनाती है, पुलिस लोगों पर डंडे बरसाती है।
एंटी रोमियो स्क्वाड आपको याद तो होगा ही।
भ्रष्टाचार एवं सांठ-गांठ का बोलबाला
फासिस्ट देशों में सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर कोई योग्य व्यक्ति नहीं बल्कि उन्हीं के कोई भाई-बंधु या हित-मित्र बैठे हुए होते हैं। इनका काम केवल एक-दूसरे को लाभ पहुंचाना होना है।
चुनाव में धांधली
फासिस्ट देशों में चुनाव केवल नाम के लिए होता है। यहां पर चुनाव के नाम पर सिर्फ ढोंग किया जाता है। सबकुछ पहले से ही नियोजित होता है और पार्टी विशेष का जीतना तय होता है।
ये वे चौदह महत्वपूर्ण बिन्दु थे। आप इन पर विचार करिए, वर्तमान परिस्थिति से इनकी तुलना कीजिये और स्वयं निष्कर्ष तक पहुंचने का प्रयास कीजिये।