लोकसभा चुनावों में बहुत सारे मुद्दों की चर्चा हो रही है। यह आपको तय करना है कि ये मुद्दे असल में लोगों से जुड़े हैं या नहीं। मुझे लगता है कि चुनाव कौन से मुद्दों पर लड़ना चाहिए, यह लोगों को तय करने की ज़रूरत है मगर अफसोस है कि हमारे नेता ही यह सब तय कर लेते हैं।
इन सबके बीच मीडिया द्वारा भी गैरज़रूरी मुद्दों को ही चुनाव का प्रमुख मुद्दा बनाया जाता है। लोगों से जुड़े मुद्दों को ना तो मीडिया समझता है और ना ही नेता समझना चाहते हैं। इसी चक्कर में कई ज़रूरी मुद्दे चुनावों के प्रमुख मुद्दे नहीं बन पाते हैं।
ऐसे मुद्दों में से एक मुद्दा है ‘हेल्थ केयर’ का जो चुनाव का प्रमुख मुद्दा होना चाहिए मगर अफसोस इसे प्रमुख मुद्दा तो छोड़िए, हमारे नेता और मीडिया चुनाव का मुद्दा ही नहीं समझते हैं।
प्रधानमंत्री जी ने चुनावी सभाओं में हेल्थ केयर पर कितना समय दिया है? मीडिया ने हेल्थ केयर से जुड़े कितने सवाल उठाए है? इन मुद्दों को प्राइम टाइम में कितनी जगह मिली है? जो प्रमुख विरोधी दल हैं, उन्होंने भी इन मुद्दों को चुनावों में कितना उठाया है?
ऐसे में कई सवाल हैं जो हर ज़हन में उठते हैं। हमें समझना होगा कि अन्य मुद्दों की तरह हेल्थ केयर को भी चुनावी मुद्दा बनाना होगा। आज हमारी हेल्थ केयर सिस्टम बहुत खराब हालात से गुज़र रही है। आज अगर हमने सही कदम नहीं उठाए तो आने वाले समय में बहुत गंभीर परिस्थितियों का सामना हमें करना पड़ सकता है।
भारत के हेल्थ केयर सिस्टम की स्थिति
- हेल्थ केयर स्पेंडिंग- यह रकम कुल जीडीपी का 1.2 प्रतिशत है, जबकि WHO के अनुसार यह जीडीपी का 5 प्रतिशत होनी चाहिए
- इंफ्रास्ट्रक्चर- बुनियादी और ज़रूरी सुविधाओं का अभाव बहुत बड़ी समस्या है, जिसका असर सीधा हेल्थ केयर क्वालिटी पर पड़ता है।
- मानव संसाधन- भारत में 6 लाख डॉक्टर्स और 20 लाख नर्स की कमी हैं।
- क्वालिटी और अफोर्डेबल केयर- आज भारत में बहुत सारे प्राइवेट अस्पताल क्वालिटी दे रहे हैं मगर ये सभी के लिए अफोर्डेबल नहीं हैं।
- कुपोषण- आज भी भारत में कुपोषण बहुत बड़ी समस्या है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 15 करोड़ से अधिक बच्चों को कुपोषण है।
- कैंसर जैसी बड़ी बीमारियों के लिए पब्लिक हेल्थ केयर के प्रयास प्रयाप्त नहीं हैं।
- हेल्थ अवेयरनेस- लोगों तक स्वास्थ्य से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी नहीं पहुंच पाती हैं।
- प्राइवेट हॉस्पिटल्स की मनमानी।