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कभी थ्रिलर तो कभी सस्पेंस, एक नई ज़मीन की फिल्म है ‘पहाड़गंज’

राकेश रंजन कुमार की ‘पहाड़गंज’ विदेशी सैलानी की हत्या की गुत्थी सुलझाती फिल्म है। नई दिल्ली स्टेशन से सटे पर्यटक ठिकाने पहाड़गंज के इर्द-गिर्द घूमती है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास स्थित इस बस्ती की बारीकियों से दिल्ली वाले भी खास वाकिफ नहीं। पहाड़गंज में सस्ते दामों पर हर किस्म का खाना मिल जाता है। नशे का इंतज़ाम भी सस्ता है। दुनिया भर के लोग आपको पहाड़गंज की उन गलियों में बेखौफ घूमते मिल जाते हैं। उनको पता है कि यहां कारोबार उनके कारण ही चलता है।

देसी- विदेशी सैलानियों के ठहरने के लिए यहां हर किस्म के इंतज़ाम हैं। सैलानियों के बीच खासी लोकप्रिय है जगह। फिल्म इसे छोटा एम्सटर्डम (नीदरलैंड) कहती है। विदेशी सैलानियों के कारण यहां हर किस्म का ‘खुलापन’ आरोपित रहता है। लेकिन शायद उतना भी नहीं जितना दिखाया गया।

राकेश रंजन कुमार ‘गांधी टू हिटलर’ के बाद एक अलग किस्म की फिल्म लेकर आए हैं। दिल्ली में विदेशी सैलानियों की सुरक्षा को विषय बनाया गया है। कहानी स्‍पेन के एक सैलानी के दिल्‍ली के पहाड़गंज इलाके से रहस्‍यमय ढंग से गायब हो जाने की है। अपने प्रेमी रॉबर्ट को ढूंढते हुए लॉरा कोस्टा दिल्ली के पहाड़गंज आ जाती है। लॉरा ने आखिरी बार उसे फेसबुक के एक पोस्ट में पहाड़गंज में देखा था।

वो उसे ढूंढ़ती हुई भारत आती हैं। जहां उसे कई तरह की समस्‍याओं का सामना करना पड़ता है। वह कई चीज़ों से पहली बार अवगत होती है। उसका बलात्कार हो जाता है। पहाड़गंज पुलिस उसकी शिकायत लिखने को तैयार नहीं। लेकिन स्थानीय नेता जीतेंद्र तोमर की हत्या के गुत्थी सुलझाने में इस युवती के साथ हुए बलात्कार की भी जांच शुरू होती है।

इस कहानी के सामानातंर भी कहानियां चल रही हैं। एक कहानी कोच गौतम मेनन (बृजेश जयराजन) के भाई की हत्या की है। गौतम सच जानता है कि उसके भाई को मंत्री के लाडले जितेंद्र तोमर (करण सोनी) ने मारा है। मगर अपराधी की ऊंची पहुंच की वजह से लड़ाई लड़ने से पहले हार सा गया है। भाई की मौत का गम उसे खाए जा रहा है, वो मानसिक संतुलन खोने की कगार पे है। तीसरी कहानी गली के गुंडे मुन्ना की है। वह इलाके का सबसे बड़ा भाई बनना चाहता है। एक दिन मंत्री के बेटे तोमर की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है। हत्या की जांच-पड़ताल कहानियां एक-दूसरे के नज़दीक ले आती हैं। एक अनाथ स्ट्रीट चाइल्ड भी है राजू। सबके सूत्र पहाड़गंज से जुड़े हुए हैं।

गौतम मेनन के बदलते स्वभाव की वजह से पत्नी पूजा मेनन (नीत चैधरी) व बेटी पलक परेशान रहती है। एक घटना के कारण स्थानीय गुंडा मुन्ना इस परिवार का भक्त बन जाता है। मुन्ना ड्रग्स के धंधे का बेताज बादशाह बनने का सपना देख रहा है। पूजा मेनन मुन्ना से जीतेंद्र तोमर को मार देने को कहती है। किंतु तोमर के साथ-साथ वो विदेशी सैलानी रॉबर्ट को भी मार देता है। प्रेमी रॉबर्ट की मौत के जिम्मेदार लोगों को सज़ा दिलाने बाद लॉरा स्वदेश लौट जाती हैं।

अपने स्वरूप में फिल्म कभी थ्रिलर तो कभी सस्पेंस बनने की कोशिश करती है। पटकथा ऐसा होने नहीं देती, किरदारों को रचने में अधिक मेहनत की ज़रूरत थी। फिल्म के कलाकारों से हम उतना परिचित नहीं, हालांकि वो आकर्षित करते हैं। स्पेनिश अभिनेत्री लोरेना फ्रांको का होना ‘पहाड़गंज’ को खास बनाता है, संगीत भी बेहतर है। लेकिन फिल्म की नियति पर इसका खास असर नहीं। हालांकि नीयत साफ़ लगती है। कुल मिलाकर वयस्क प्रमाणपत्र वाली ‘पहाड़गंज’ कमियों के बावजूद नई ज़मीन की कहानी अवश्य कहती है।

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