चुनाव का बिगुल बजते ही राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने ढंग से ईवीएम पर सवाल उठाने लगी हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि एक तरफ दुनिया के अधिकतर देश बैलेट पेपर के ज़रिये चुनाव कराते हैं, तो क्या भारत को बैलेट नहीं अपनाना चाहिए?
आज की सत्ताधारी बीजेपी को कभी ईवीएम से दिक्कत हुआ करती थी लेकिन आज बीजेपी को छोड़कर लगभग सभी पार्टियों को दिक्कत है। इसके बावजूद चुनाव आयोग ईवीएम से चुनाव कराने का पक्षधर है।
ईवीएम का प्रयोग बैन
पूरे विश्व में 120 देशों ने लोकतंत्र को अपनाया है, जिनमें से सिर्फ 24 ने आंशिक या पूर्ण रूप से ईवीएम का प्रयोग किया है जबकि अन्य देशों में यह बैन है। ऑस्ट्रेलिया और स्विट्ज़रलैंड ने आंशिक रूप से इंटरनेट वोटिंग प्रणाली को अपनाया है, जबकि भारत समेत कई देशों ने अब तक ऐसा नहीं किया है।
कुछ देश जैसे- जर्मनी, इटली और आयरलैंड आदि में ईवीएम की खामियों के कारण इसका उपयोग बंद कर दिया गया, जिसका फैसला न्यायपालिका ने किया।
ईवीएम से छेड़छाड़ का आरोप
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वर्ष 1982 में जब ईवीएम का पहली बार केरल के पेरुर विधानसभा क्षेत्र में प्रयोग हुआ था, तब वहां के विधायक प्रत्याशी सिवान पेल्लाई ने ईवीएम को असंवैधानिक बताते हुए केरल हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था।
कोर्ट ने उनके आरोप को खारिज़ किया और चुनाव ईवीएम से ही हुआ। उस चुनाव में सिवान पेल्लाई की जीत भी हुई जिसके बाद उनके प्रतिद्वंदी ने वापस कोर्ट जाकर दावा ठोका कि ईवीएम गैर-संवैधानिक है। कुछ ऐसी ही स्थिती बनी थी जब काँग्रेस ने तेलंगाना में ईवीएम से छेड़छाड़ का आरोप लगाया था।
चुनाव आयोग की चुनौती अस्वीकार
यहां तक कि 2017 में देश के सर्वोच्च न्यायलय ने भी ऐसी ही अर्ज़ी को खारिज़ किया फिर चुनाव आयोग ने पहली बार 2009 और 2016 में सभी राजनीतिक दलों को ईवीएम को लेकर चैलेंज दिया कि मशीन को टेम्पर कर दिखाएं लेकिन किसी ने चुनाव आयोग की चुनौती को स्वीकार नहीं किया।
कोर्ट जाने से यह ज़रूर हुआ कि सुब्रमण्यम स्वामी की अर्ज़ी पर फैसला देते हुए कोर्ट ने प्रत्येक मशीन के साथ वोटर वेरीफाईड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैड) के उपयोग को निश्चित करने को कहा। इन सब को नज़रअंदाज़ करें तो भी हमें देखना होगा कि ईवीएम और बैलेट पेपर से चुनाव के क्या फायदे और नुकसान हैं?
ईवीएम से चुनाव प्रक्रिया में बदलाव
इस विषय पर हुए एक शोध की माने तो ईवीएम के प्रयोग से भारत में अमान्य वोटों की संख्या में 90% की गिरावट हुई है। रोचेस्टर विश्वविद्यालय में हुआ यह शोध बताता है कि पहले विनिंग मार्जिन और अमान्य वोटों का अंतर कम होने की स्थिति में मामला कोर्ट में जाता था और चुनावी प्रक्रिया लंबी खिचती थी।
ईवीएम के आने से इस तरह के मामले कम हुए हैं। अब विनिंग मार्जिन कम होने पर दोबारा काउंटिंग करने की ज़रूरत होती है। इस शोध में कुछ और भी निष्कर्ष आए हैं। पहले आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग बूथ लूटकर, बैलेट बॉक्स में स्याही गिराकर या अपने पक्ष के अतिरिक्त बैलेट पेपर गिराकर चुनाव प्रक्रिया को बाधित करते थे, जिससे उनके चुने जाने की संभावना बढ़ जाती थी।
इस शोध में यह भी देखा गया है कि ईवीएम के बाद बहुजन समाज पार्टी और वाम दलों के वोटों में लगातार गिरावट आई है, जिससे यह पता चलता है कि इन पार्टियों में बाहुबलियों की तादाद अधिक होने के कारण बैलेट से चुनाव कराने पर निष्पक्ष नतीजों की संभावना कम है।
संवेदनशील बूथों को चिन्हित करने से रूकेगी धांधली?
जब पश्चिम बंगाल में बैलेट से पंचायत और नगरपालिका के चुनाव हुए थे, तब बैलेट बॉक्स के साथ छेड़छाड़ हुई थी। यदि यहां ईवीएम का प्रयोग होता तो धांधली होने के बाद कड़े सुरक्षा व्यवस्था में चुनाव कराया जाता, जबकि बैलेट के साथ काफी तैयारी की ज़रूरत होती।
कोई यह कह सकता है कि इस तरह की तैयारी चुनाव आयोग पहले ही कर ले। क्या ऐसा सभी बूथों के लिए किया जाएगा या फिर उन बूथों का पता कैसे लगाया जाए जो अधिक संवेदनशील हैं।
संवेदनशील बूथों को चिन्हित कर लिया जाता है लेकिन क्या उन्हीं बूथों पर धांधली होगी यह कितना निश्चित है? कुल मिलाकर यदि धांधली हो और ईवीएम का उपयोग हो तो बैलेट के मुकाबले चुनाव दोबारा कराने में आसानी होगी।
अमेरिका में ईवीएम का प्रयोग नहीं
अब भी यदि आप अमेरिका के उदाहरण को रखना चाहते हैं, तो मैं बता दूं कि अमेरिका में भले ईवीएम का प्रयोग ना होता हो मगर दूसरी प्रणालियों का उपयोग वहां किया जाता है। जैसे- पंच कार्ड, ऑप्टिकल रीडिंग और बैलेट मार्किंग।
ऐसा नहीं है कि अमेरिका में ईवीएम प्रयोग का प्रयास नहीं हुआ मगर जब 50 राज्यों ने अलग-अलग ईवीएम बनाने की बात की तो मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
अमेरिका का संघीय ढांचा भारत से भिन्न है। इसलिए इस तरह के मसलों पर सबके साथ सहमति बनाना काफी मुश्किल होता है, जबकि भारत में राज्य सूची के विषयों पर ठोस प्रयास के बाद संसद में भी कानून बनाया जा सकता है और समवर्ती सूची में तो केन्द्र का बोलबाला रहता ही है।
चुनाव आयोग लगातार मतदान को स्वच्छ एवं पारदर्शी बनाने के लिए प्रयासरत है। जैसे- आने वाले समय में बूथों पर सीसीटीवी रिकॉर्डिंग करने की योजना, जिससे किसी उम्मीदवार को परेशानी होने पर उन्हें संबंधित बूथ की रिकार्डिंग उपलब्ध कराई जा सके। इसके अलावा दूसरे विवादों को भी सीसीटीवी रिकॉर्डिंग के माध्यम से निपटाया जा सकता है।