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ना डॉक्टर, ना बेड, रिम्स में भगवान भरोसे हैं मरीज़

रिम्स

रिम्स

झारखंड, लगभग 4 करोड़ की आबादी वाला एक ऐसा राज्य जो बिहार से अलग होकर यहां के आदिवासियों, वंचितों और समाज के निचले पायदान पर गरीबी का दंश झेलने वालों की बेहतरी के लिए बना था। देश के सबसे ज़्यादा खनिजों और प्राकृतिक संपदाओं से परिपूर्ण यह राज्य आज भी अपनी हाल पर तरस रहा है।

किसी भी राज्य की जनता के हालात की आकलन करनी हो, तो वहां के स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में पता लगाना ज़रूरी है। झारखंड की राजधानी रांची में स्थित राज्य के सबसे बड़े अस्पताल की हालात पर यह लेख प्रस्तुत है।

रिम्स, झारखंड राज्य का एक सबसे बड़ा अस्पताल जो राज्य के गरीब मरीज़ों का एकमात्र आसरा है। संपूर्ण राज्य में कोई दुर्घटना हो जाए, तो सबको अंत में यही आना है क्योंकि ज़िलों के अस्पताल सिर्फ रेफरल हैं। राज्य के एक भी ज़िले में कोई ऐसा अस्पताल नहीं है जहां गंभीर मरीज़ को लाइफ सपोर्ट या एक दिन तक इलाज करने की सुविधा हो सके। ऐसे में रिम्स जैसे अस्पताल की भूमिका का आकलन किया जा सकता है।

रिम्स में इमरजेंसी की सुविधा

इमरजेंसी वॉर्ड में सुविधा के नाम पर सिर्फ 10 ऑक्सिजन मास्क प्वॉइंट हैं। मरीज़ के परिजन ज़िलों से रेफर होने पर इस आसरे के साथ यहां पहुंचते हैं कि बस किसी तरह रिम्स पहुंचे और इलाज शुरू हो जाएगा मगर जैसे ही रिम्स के दरवाज़े पर कोई मरीज़ पहुंचता है, तो सबसे पहले उसे ट्रॉली वाले को तलाशना पड़ता है। अगर वह मिल भी गया तो काफी आग्रह करने  के बाद राज़ी होता है। अगर नहीं मिला तो परिजन को खुद ट्रॉली से मरीज़ को इमरजेंसी तक पहुंचाना पड़ता है।

इमरजेंसी वॉर्ड में लंबी कतार

आप जैसे ही इमरजेंसी वॉर्ड में पहुंचेंगे, वहा एक बड़ी कतार मरीज़ों की लगी होती है और ऑक्सीजन मास्क सिर्फ 10 ही उपलब्ध होते हैं।  भागदौड़ के बाद जब डॉक्टर तक पहुंचेंगे तो आपको मिलेंगे 2 से 3 पीजी प्रैक्टिसनर। आपकी सारी बेचैनी और मशक्कत के बाद भी उन तक पहुंचना आसान नहीं है क्योंकि अन्य मरीजों के परिजन भी पहले से वहां होते हैं।

अब आप सोच नहीं सकते कि आपको क्या करना है। गरीब हैं, तो बिल्कुल भी नहीं क्योंकि यहां के बाद आपका विकल्प खत्म हो जाता है।  आपको अब सच में भगवान पर भरोसा करते अपनी बारी तक अगर मरीज बच जाए, तो इंतज़ार कीजिए।

आसान नहीं है भर्ती कराना

इमरजेंसी तक की कहानी पढ़ कर धैर्य मत खोइए। अभी भर्ती की प्रक्रिया जानना बाकी है। जब इमरजेंसी में मौजूद पीजी डॉक्टर आपके मरीज़ को देख लेंगे और स्थिति के बारे में आपको बता देंगे फिर जांच के लिए आपकी भागदौड़ शुरू होगी।

जब आप जांच के रिर्पोट के साथ इमरजेंसी में दाखिल होंगे, तब तक जिस पीजी डॉक्टर ने आपके मरीज़ को देखा है, वह वहां होगें ही नहीं।  अब कुछ देर आप यह सोचकर इंतज़ार करेंगे कि कहीं होंगे डॉक्टर साहब और आ जाएंगे।

आप डर से कुछ सवाल भी नहीं सकते, क्योंकि सवाल करने पर आपकोे बोला जाएगा कि आप मरीज़ के पास जाइए। डाक्टर वहीं जाएंगे।  अगर आप पहली बार रिम्स गए हैं, तो मरीज़ के पास जाकर इंतज़ार करेंगे। अगर अनुभव है, तो आप किसी दूसरे डॉक्टर के पास टकटकी लगा कर बेचारे वाले चेहरे के साथ खड़े रहेंगे।

फोटो साभार: Twitter

इसी बीच आपको जानकारी मिलेगी कि आपके मरीज़ को देखने वाला डॉक्टर कब का चला गया है। अब जो डॉक्टर फिर से देखेगा, वह आपके मरीज़ और रिर्पोट को देखेगा। उनका प्रयास होता है कि आप भर्ती ना हों और अगर आप फिर भी होना चाहते हैं, तब आपको भर्ती का एक काग़ज काउंटर से बनवाना होता है, जिसमें आपको कहा जाएगा कि लिखित दो।

आप सवाल क्या ही कर लेगें? आपसे कहा जाएगा कि भर्ती के कागज पर लिखो कि मेरे मरीज़ की हालत बहुत खराब है। हमको यह बता दिया गया है कि अगर कोई अनहोनी होती है, तो यह ज़िम्मेदारी अस्पताल की नहीं होगी।

ऐसा लगभग हर मरीज़ के भर्ती पेपर पर मिल जाएगा। तो अब आपको आपके मरीज़ को लेकर जाना है वॉर्ड। नर्स कुछ दवा और इंजेक्शन देने के बाद ट्रॉली मैन का इंतज़ार करने बोलेगी मगर इंतज़ार आप कीजियेगा नहीं। आपको ट्रॉली मैन को बाहर दरवाज़े से लाना है।

यहां भी एक अजीब किस्म की परेशानी आपका इंतज़ार कर रही होगी और वो यह कि वॉर्ड में सभी पेशेन्ट्स के लिए बेड की सुविधा भी नहीं होगी। आपको कहा जाएगा कि मरीज़ को ज़मीन पर रख दीजिए।

रिम्स में हर दिन हज़ारों मरीज़ आते हैं। मरीजों की संख्या के हिसाब से वॉर्ड में बेड नहीं हैं और जान-पहचान पैरवी सब बेकार है। किसी मरीज़ को बेड से उतार कर, आपके मरीज को बेड तो मिलने वाला है नहीं। तो ट्रॉली मैन नीचे ज़मीन पर बेड लगाकर आपके मरीज़ को सुला देगा।

अब आपको करना है इंतज़ार। अगर आप शाम में आए हैं, तो रात भर इंतज़ार करना होगा। दोपहर में आए हैं, तो एक दिन और एक रात तक  इंतज़ार करना पड़ेगा। कल डॉक्टर के राउंड का भी इंतज़ार कीजिए। अभी इलाज चालू नहीं हुआ है। चलिए अगले लेख में इलाज की प्रकिया बताएंगे।

नोट: लेखक एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो रांची में रहते हैं और अपने ज़िले से आने वाले मरीज़ों की इलाज में मदद करते हैं।

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