देश के दलित युवाओं द्वारा जिस तरह से काँग्रेस या यूं कहें राहुल गाँधी का समर्थन किया जा रहा है, उससे एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि क्या दलित युवा, काँग्रेस की ओर फिर से आकर्षित हो रहे हैं या काँग्रेस दलित युवाओं के बहाने दलित वोटरों को साधने में सफल रही है।
वैसे तो दलित मतदाता शुरू से ही काँग्रेस के समर्थक रहे हैं परन्तु बसपा के अस्तित्व में आने के बाद काँग्रेस के दलित वोट बैंक पर बड़ा सेंध लगा और यूपी सहित कई राज्यों के दलित मतदाता काँग्रेस से दूर छिटक गए।
2014 के बाद काँग्रेस की रणनीतियों में परिवर्तन
वर्ष 2014 के मोदी लहर में काँग्रेस महज 44 सीटों पर सिमट गई, भाजपा से मिली करारी हार ने काँग्रेस के रणनीतिकारों को सोचने पर मजबूर कर दिया और काँग्रेस ने जो रणनीति बनाई, उसके केंद्र में दलित और आदिवासी सहित पिछड़ी जातियों पर भी फोकस किया गया।
इस रणनीति के तहत काँग्रेस ने अपने नेता प्रतिपक्ष के रूप में दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का चयन किया। इसके अलावा राष्ट्रपति चुनाव में भी दलित कार्ड खेलते हुए पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को यूपीए का प्रत्याशी बनाया। हालांकि इस चुनाव में मीरा कुमार हार गईं परन्तु काँग्रेस को देश के दलितों के हितैशी बनने में कामयाबी मिली।
दलित मतदाताओं के बीच एक बार फिर हिमायती बनी काँग्रेस
काँग्रेस ने अपने दलित एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए ऊना कांड से देश में सबसे बड़े दलित युवा के रूप में उभरे जिग्नेश मेवानी को समर्थन देकर विधायक बनाने में मदद कर दी। जिग्नेश को साधने के साथ ही दलित मतदाताओं के बीच एक बार फिर से दलित हिमायती बनने में सफल हो गई, जिसका फायदा उन्हें गुजरात के विधानसभा चुनाव में भी मिला।
इसी तरह उत्तरप्रदेश के सहारनपुर में दलित और सवर्णों के बीच हुए दंगो के बाद एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरे भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद रावण का समर्थन भी काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी कर चुके हैं।
यूपी में सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन से अलग होने के बाद काँग्रेस ने दलित वोटरों में सेंध लगाने के लिए भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर को अपने पाले में लाने की जुगत में लगी हुई है।
इसी कड़ी में हाल ही में काँग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गाँधी का अस्पताल जाकर चन्द्रशेखर से मिलना भी दलित मतदाताओं को साधने की दशा में काँग्रेस का बड़ा कदम माना जा रहा है।
ऐसे ही मध्यप्रदेश में दलित युवा के रूप में पहचान स्थापित करने वाले देवाशीष झरारिया को काँग्रेस ने भिंड दतिया लोकसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया है।
ये तीनों ऐसे युवा दलित चेहरे हैं, जिन्हें साध कर काँग्रेस एक बार फिर से दलित मतदाताओं में अपनी पैठ बनाना चाहती है, जिसमें काफी हद तक काँग्रेस सफल होती भी नज़र आ रही है।
काँग्रेस ही क्यों, बसपा क्यों नहीं?
दलित युवाओं के काँग्रेस की तरफ आकर्षित होने पर जब बात करते हैं, तो एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर इन युवाओं ने बसपा क्यों नहीं जॉइन की? दरअसल, इन तीनों युवाओं का आकर्षण बसपा की तरफ शुरू से रहा है परन्तु बसपा सुप्रीमो मायावती के नापसंदगी के चलते इन युवाओं को बसपा में तरजीह मिलना तो दूर इन तीनों को आरएसएस-भाजपा और काँग्रेस का एजेंट करार दे दिया गया, लिहाज़ा तीनों युवा बसपा से दूर हो गए।
तीनों युवा बसपा से इतर जाकर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल रहे, जिसमें जिग्नेश काँग्रेस के समर्थन से विधायक बनने में कामयाब रहे, वहीं देवाशीष झरारिया काँग्रेस पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। इसी तरह भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बनारस से चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं, जिसमें उम्मीद है कि काँग्रेस उन्हें अपना समर्थन दे सकती है।
इन तीनो युवाओं को काँग्रेस अपने पाले में लाकर दलित मतदाताओं को साधने में लगभग सफल होती नज़र आ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण राहुल गाँधी की सूझबूझ और उनके हालिया रवैये को माना जा रहा है।
काँग्रेस सुप्रीमो राहुल गाँधी ने हाल के दिनों में जिस तरह से मोदी सरकार के खिलाफ मुखर होकर बोलना शुरू किया है, उससे उनकी छवि लोगों के बीच एक मजबूत विपक्षी नेता के रूप में स्थापित हुई है।
राहुल ने 13 प्वॉइंट रोस्टर, एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण, उच्च शिक्षण संस्थानों में एससी-एसटी को आरक्षण, एससी- एसटी के बैकलॉग के पदों को भरने सहित अनुसचित जाति के कई महत्वपूर्ण मुद्दों को अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल किया है।
काँग्रेस के घोषणापत्र से दलित मतदाताओं खास कर युवाओं का रुझान काँग्रेस की तरफ बढ़ा है और काँग्रेस अपनी रणनीति के अनुसार दलित वोटरों को एक बार फिर से अपने पाले में करने में सफल होती नज़र आ रही है, जिसका फायदा उन्हें लोकसभा चुनाव में मिल सकता है।