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“एक गरीब परिवार से प्रिंसिपल बनने के सफर में मैंने शिक्षा के महत्व को समझा”

दोस्तों केंद्रीय विद्यालय राजगढ़ का प्राचार्य होने के नाते जब मैं एक व्यक्ति के जीवन में शिक्षा की भूमिका पर विचार करता हूं तो मुझे अपना बचपन याद आ जाता है। उस वक्त मेरे पास पहनने के लिए ठीक से 2 जोड़ी कपड़े भी नहीं होते थे, किताब रखने के बैग की जगह निरमा पाउडर की वह मज़बूत पॉलिथीन की थैली होती थी, जो महीने में एक बार कपड़े धोते-धोते पाउडर खत्म होने के बाद मॉं से प्राप्त होती थी। इसके लिए भी हम दोनों भाइयों में होड़ लगी रहती थी कि थैली में बचा हुआ एक चुटकी कपड़े धोने का निरमा पाउडर खत्म होने के बाद इस थैली पर किताब रखने के लिए किसका अधिकार होगा।

गॉंव का वह प्राथमिक विद्यालय, जहां आज पक्का भवन है, मुफ्त में शिक्षा मिलती है, मुफ्त में भोजन मिलता है, मुफ्त में किताबें मिलती हैं, शायद साइकिल भी मिलती है और अच्छे अंक लाने पर छात्रवृत्ति मिलती है, वही विद्यालय तब खपरैल का था। उस वक्त वहां बैठने के लिए घर से टाट की बोरी हम खुद लेकर जाते थे। आजकल तो शायद विद्यालय में बैठने के लिए टेबल कुर्सियां भी आ गई हैं। उस समय अपने विद्यालय में टॉयलेट की जगह लघु शंका करने का एक कोना होता था।

कक्षा पहली और दूसरी में तो खुले में भी पढ़ना पड़ा। फिर कक्षा 3 से 5वीं तक पढ़ने के लिए एक कमरा नसीब हुआ, जहां एक ब्लैकबोर्ड और चौक के अलावा कोई शिक्षण अधिगम सामग्री नहीं होती थी। यही हमारी स्मार्ट क्लास थी, यही हमारे लिए रिसोर्स रूम था, यही हमारे लिए कभी-कभी खेल का मैदान भी बन जाया करता था।

शरारत करने पर कभी हाथ से पीठ और सिर पर मास्टर जी की मार और प्रश्न का उत्तर याद नहीं करने पर छड़ी से हाथ पर गुरू जी की प्रसाद आज भी याद आती है, क्योंकि शिक्षक के प्रति स्नेह आज भी अंदर तक बसा हुआ है।

फोटो- केंद्रीय विद्यालय राजगढ़ के प्रिंसिपल नंद किशोर सोनी

ऊपर लिखी यह सब बातें आज इसलिए याद आ रही हैं कि ऐसी विपरीत परिस्थितियों में अभाव में पढ़ते हुए भी हम यहां तक पहुंच गए। कभी कोई कठिनाई का अनुभव नहीं किया, ना ही शिक्षा प्राप्त करने में कोई विशेष धन का व्यय करना पड़ा लेकिन जीवन में सामाजिक स्थिति में मान सम्मान में बेहद अंतर शिक्षा की वजह से आया। उस समय मैं गॉंव के एक निम्न वर्गीय आय वाले परिवार का बच्चा था, एक गरीब परिवार का बच्चा अपने साथियों के बीच, अपने पड़ोसियों के बीच, साधन संपन्न लोगों के बीच किस प्रकार के अघोषित और अव्यक्त अपमान को पीता रहता है इसका कटु अनुभव मुझे आज भी है।

गरीबी रूपी उस अभिशाप से मुक्ति दिलाने का सशक्त माध्यम मैंने जीवन में पाया है तो वह केवल और केवल सच्ची शिक्षा है। सच्ची लगन से की गई मेहनत कठोर परिश्रम और स्वाध्याय प्रत्येक विद्यार्थी और व्यक्ति के वश में होता है, जिसके दम पर वह दुनिया की कोई भी खुशी पा सकता है।

पता नहीं क्यों आज भी गरीब परिवार के ज़्यादातर लोगों को इस बात पर विश्वास ही नहीं होता कि वह भी कठिन परिश्रम करके, मेहनत करके, अपनी लगन से, स्वाध्याय से पढ़ाई करके जीवन की हर खुशी पा सकते हैं। गरीबी रूपी अभिशाप से मुक्त हो सकते हैं, समाज में सम्मानित व्यक्ति का जीवन जी सकते हैं, वे केवल अपने परिवार नहीं आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बहुत कुछ कर सकते हैं और फिर शिक्षा तो शिक्षा है उस पारस पत्थर से भी अधिक मूल्यवान है जो लोहे को सोना बना सकता है।

दोस्तों जिस तरह शरीर को जीवित रखने के लिए भोजन बेहद ज़रूरी है, भोजन के बिना शरीर जीवित नहीं रह सकता उसी तरह एक सफल ज़िन्दगी के लिए शिक्षा बेहद ज़रूरी है। जिस तरह आत्मा के बिना शरीर का कोई महत्व नहीं, जीवन के बिना शरीर केवल शव मात्र होता है, वैसे ही एक इंसान की ज़िन्दगी में शिक्षा बेहद ज़रूरी है, बेहद मूल्यवान है।

मैं बहुत दुखी हो जाता हूं, जब अपने विद्यालय के कुछ विद्यार्थियों को सारी सुविधाएं, अच्छी किताबें, अच्छा बैग, अच्छा वाहन, अच्छा घर और अच्छे माता-पिता का साथ होने के बाद भी उन्हें मन लगाकर पढ़ाई नहीं करते देखता हूं और वे वर्ष के अंत में परीक्षा में फेल हो जाते हैं। विद्यार्थियों के घर में टीवी है, कंप्यूटर है, फ्रीज है, मोटरसाइकिल है, एंड्रॉयड फोन है, सारी सुविधाएं हैं जिनकी कल्पना हम बचपन में कर भी नहीं सकते थे लेकिन बड़ा दुख होता है कि अगर कुछ नहीं है तो शिक्षा के प्रति अभिरुचि, मेहनत करने की, कठोर परिश्रम करने की भावना। अगर नहीं है तो शिक्षा के महत्व का एहसास।

जिस दिन, जिस समय, जिस क्षण, जिस पल एक अभिभावक और विद्यार्थी यह समझ ले कि शिक्षा उसका जन्मजात अधिकार है, वह निरंतर अभ्यास से, कठोर परिश्रम से और शिक्षक की सहायता से स्वयं शिक्षा और ज्ञान अर्जित करने का अधिकार रखता है, उस दिन वह बेहतर जीवन प्राप्त कर सकता है।

अगर एक विद्यार्थी और एक अभिभावक संकल्पित हो जाए कि कुछ भी हो मैं शिक्षा से वंचित नहीं रह सकता, चाहे जीवन की कोई सुविधाएं मुझे मिले या नहीं मिले लेकिन शिक्षा मेरा अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा। चाहे जितना परिश्रम, चाहे जितना प्रयत्न मुझे इसके लिए करना पड़े। यदि ऐसा संकल्प ऐसा भाव और ऐसा विश्वास आज परीक्षा में फेल होने वाले, अनुत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थी अपने हृदय में जगा ले, थोड़ी सी जागरूकता उनमें आ जाए तो शायद समाज का कोई भी व्यक्ति अशिक्षित नहीं रहेगा। कोई भी व्यक्ति अपमानित नहीं होगा, कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं होगा और किसी भी व्यक्ति के साथ कोई अन्याय नहीं कर पाएगा।

आज समाज में, शासन की योजनाओं में उन लोगों के साथ आसानी से भेदभाव किया जा सकता है, अदालत में उन लोगों के साथ आसानी से अन्याय हो सकता है, शासकीय अस्पतालों में भी उन लोगों को अच्छी चिकित्सा नहीं मिल पाती है, जो लोग शिक्षा के अभाव में, जानकारी के अभाव में, समझ के अभाव में अपने हक के लिए खड़े नहीं हो पाते, यहां तक कि समझ ही नहीं पाते।

इसलिए मेरा सभी दोस्तों से आग्रह है, निवेदन है, प्रार्थना है कि शिक्षा के महत्व को, शिक्षा की शक्ति को, शिक्षा की ताकत को समझते हुए समाज के वंचित वर्ग के प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित करने के लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अपना सहयोग प्रदान करें। मुझे ऐसा लगता है कि इस पुण्य कार्य को करने के पश्चात किसी विशेष प्रकार के यज्ञ, पूजन, हवन आदि की ज़रूरत नहीं रहेगी।

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नोट- लेखक नंद किशोर सोनी केंद्रीय विद्यालय राजगढ़ के प्राचार्य हैं।

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