2002 के गुजरात दंगों के दौरान गैंगरेप सर्वाइवर बिलकिस बानो को सुप्रीम कोर्ट ने 50 लाख रुपये मुआवज़ा, सरकारी नौकरी और घर दिए जाने का आदेश दिया है। यह फैसला एक मिसाल बन सकता है लेकिन छोड़ जाता है कई सवाल। जब भी बलात्कार शब्द सुनते हैं, तो इतना गुस्सा आता है और मन में आता है कि बलात्कारियों को गोली मार दे लेकिन मार देने और फांसी देने से कई और बातों पर अच्छे से सोचने की ज़रूरत है।
क्यों जब 3 मार्च 2002 को दंगाइयों ने बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया तो समाज के लोगों का गुस्सा नहीं फूटा? जवाब नहीं मिलेगा क्योंकि धर्म के नाम पर यह सब काम किए गए। जब दंगे हुए तो भीड़ ने घुसकर बिलकिस के परिवार के लोगों की हत्या कर दी। उनकी 3 साल की बच्ची तक को नहीं छोड़ा और वह चिल्लाती रही कि वह गर्भवती है लेकिन दंगाइयों के सर पर धर्म की पट्टी इस कदर बंधी थी कि लाख खोलने की कोशिश की जाए पर क्या करे उस दिन भी नहीं खुली और आज भी कोई उम्मीद दिखती नहीं है।
बिलकिस बानो की उम्र उस समय 19 साल की थी और भीड़ को लगा वह मर गई हैं लेकिन उन्हें तो संघर्ष की लड़ाई लड़नी थी वो कैसे मर जातीं? उस दिन मरा था वह समाज और उस समाज में रहने वाले उसके धर्म के ठेकेदार, जिन्होंने धर्म की किताब का सहारा लेकर यह तय कर रखा है कि औरतों को कैसे रहना चाहिए।
इन सबके बावजूद बिलकिस बानो ने लड़ाई की शुरुआत की और 4 मार्च 2002 को पंचमहल के लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज करायी। इस मामले की शुरुआती जांच अहमदाबाद में शुरू हुई। सीबीआई ने 19 अप्रैल 2004 को अपनी चार्जशीट दाखिल की। इस केस में सुनवाई आगे बढ़ी और 21 जनवरी 2008 को स्पेशल कोर्ट द्वारा 11 लोगों को हत्या और गैंगरेप का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई। इस मामले में पुलिस और डॉक्टर सहित सात लोगों को छोड़ दिया गया था।
हालांकि मामाल यहां खत्म नहीं हुआ, मई 2017 में बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा एक और फैसला आया, जिसमें बरी हुए सात लोगों को अपना दायित्व ना निभाने और सबूतों से छेड़छाड़ को लेकर दोषी ठहराया गया।
इसके साथ यह बात सामने आई कि एफआईआर में ही आरोपों के साथ छेडछाड़ की गई और मेडिकल रिपोर्ट में अहम ब्यौरे भी छोड़ दिए गए।
कोर्ट में क्रॉस एग्ज़ामिनेशन में उनसे घटिया सवाल किए गए-
- उनसे पूछा गया कि सामूहिक बलात्कार के बावजूद उनका गर्भपात क्यों नहीं हुआ?
- पड़ोसियों ने रेप क्यों किया?
- औरतों से सबसे घटिया सवाल यह भी किया जाता है कि उन्होंने ही कही बलात्कारियों को उकसाया तो नहीं था।
खुलकर अपने नाम और चेहरे के साथ लड़ी लड़ाई
इसके अलावा उन्हें समाज के ताने भी सुनने पड़े और करीब 20 बार उन्होंने घर भी बदला। सीबीआई की जांच के अनुसार सामने आया कि गुजरात पुलिस ने तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की। इन सबके बावजूद वह कभी शर्म से छुपकर कभी अंधेरे कमरे में नहीं बैठी। अकसर ऐसा होता है कि जिसके साथ रेप हुआ हो उसका चेहरा ढक दिया जाता और नाम भी सामने नहीं आता लेकिन बिलकिस बताती हैं कि वो और उनके पति पर्चे बंटवाते थे कि सभी को उनका नाम लेने की छूट है और चेहरा दिखाने की भी।
सड़क पर हाथ में कैंडल लेकर यह कहना आसान है कि बलात्कारियों को फांसी दो लेकिन वास्तव में अन्याय के लिए लड़ाई लड़ना मुश्किल है। कभी कोई कॉंग्रेसी नेता बलात्कारियों को फांसी देने की मांग करता है, तो कभी कोई भाजपा का नेता लेकिन सच्चाई यही है कि धर्म के जलते कोयले में औरतों को सौंप दिया जाता है और उस पर केवल सियासत का ढोंग रचा जाता है।
क्यों हर दंगों में औरतों के साथ बलात्कार जैसे जघन्य अपराध किए जाते हैं?
आज जब बिलकिस बानो के केस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो किसी ने नहीं कहा कि बलात्कारियों को फांसी हो जानी चाहिए थी या किसी ने उनके लिए कैंडल लिए मार्च भी नहीं किया, ना ही गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर कुछ प्रतिक्रिया दी। बिलकिस बानो के संघर्ष की कहानी कोई आम कहानी नहीं है बल्कि उनकी कहानी से समाज के हर व्यक्ति से सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्यों हर बार दंगों में औरतों के साथ बलात्कार जैसे जघन्य अपराध किए जाते हैं?
देश में आज़ादी के बाद और उससे पहले जितने भी दंगे हुए उसमें औरतों के साथ बलात्कार किया गया और यह सब हुआ धर्म के नाम पर। बिलकिस बानो यूं तो फैसले से बहुत खुश हैं लेकिन वह कहती हैं कि क्यों न्याय के लिए उनको 17 साल का समय लग गया। इसके अलावा वह उन लोगों को जवाब दे गईं, जो हर बलात्कार का न्याय केवल फांसी से ही चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि वह किसी भी आरोपियों के लिए फांसी नहीं चाहती थीं बल्कि न्याय चाहती थीं। वह मुहावज़े में मिले रुपए से सांप्रदायिक आग में झुलसे सर्वाइवर्स के लिए कोष बनाएंगी। उन्हें न्याय तो मिल गया लेकिन गुजरात सरकार, न्यायपालिका और पुलिस की लापरवाही ने उनकी यात्रा को लंबा कर दिया। फांसी की मांग करने वालों को यह भी समझना चाहिए कि रेप सर्वाइवरों को किस भयानक प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है और अगर कुछ वाकई बदलना है तो सामाजिक लड़ाई को आसान करना होगा।