कल दरभंगा के पेंटर रबिंदर दास जी के फेसबुक वॉल के माध्यम से मालूम हुआ कि मधुबनी स्टेशन को मिथिला पेंटिंग से सजाने वाले कलाकारों के खिलाफ अरेस्ट वारेंट जारी किया गया है। चूंकि, इन दिनों मेरे शहर पटना की दीवारों को मिथिला पेंटिंग और मॉर्डन आर्ट से सुसज्जित किया गया है, ऐसे में कलाकारों के प्रति संवेदना के साथ सम्मान और भी अधिक बढ़ जाता है।
मैंने सबसे पहले रबिंदर दास जी को फोन करके इस संबंध में विस्तार से बात जानने की कोशिश की। उन्होंने बताया,
केंद्र सरकार कलाओं को लेकर कितनी संवेदनशील है, इस बात का अंदाज़ा आप खुद ही लगा सकते हैं। राकेश कुमार झा जो मधुबनी स्टेशन को सुंदर रूप देने के लिये चर्चित हुए, आज उनकी टीम पर वारेंट जारी हो चुका है।
रबिंदर जी ने आगे बताया, “जब कलाकारों के श्रमदान से मिथिला पेंटिंग द्वारा मधुबनी स्टेशन को सुंदर बनाया गया, उस दौरान बात हुई थी कि ये वर्ल्ड का सबसे बड़ा फोक आर्ट होगा, जिसे गिनीज़ बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा। असलियत यह है कि रिकॉर्ड बुक में नाम दर्ज नहीं हुआ और तो और अंतिम दिन ONGC, IOCL, कोल इंडिया लिमिटेड जैसी बड़ी कंपनियों का बैनर स्पॉन्सर के रूप में टांगा दिया गया।
जब आयोजक राकेश कुमार झा ने सवाल उठाया कि फ्री के काम में स्पॉन्सर कहां से आया और आया तो फिर वो पैसे कलाकारों में बराबर बंटे? तो आनन-फानन में सारे बोर्ड हटा दिए गए और कलाकारों पर कमीशन मांगने का आरोप लगा दिया गया। बाद में रेलवे मंत्रालय द्वारा दी गई पुरस्कार राशि का भी बंदरबांट हुआ। इसी विरोध में कलाकारों द्वारा 2 दिन 4-4 घण्टे स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस रोकी गई पर कोई रेलवे का अधिकारी बात करने नहीं आया और इन कलाकारों के खिलाफ केस कर दिया, जिसका अब वारेंट निकला है।”
रबिंदर जी ने बताया,
बड़े-बड़े स्पॉन्सरों से धन उगाही के बाद भी उचित मुआवज़ा ना मिलने पर अपना हक मांगने वाले कलाकारों को अब ट्रेन रोकने के अपराध की सज़ा भी भुगतनी पड़ेगी।
इसके बाद मैंने राकेश कुमार झा से सम्पर्क कर विशेष जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि 2 अक्टूबर से 12 अक्टूबर 2017 के बीच उन्होंने कई कलाकार साथियों के साथ मिलकर मधुबनी स्टेशन के साथ मधुबनी शहर की सरकारी इमारतों को मिथिला पेंटिंग से सजाया था। इसके लिए उन लोगों ने भारतीय रेलवे से कोई पैसे नहीं लिए क्योंकि उन्हें बताया गया था कि उनकी परंपरागत पेंटिंग को गिनिज़ बुक में दर्ज कराया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
जुलाई 2018 को राकेश जी को मालूम हुआ कि कई बड़ी कम्पनियों द्वारा रेलवे स्टेशन पर की गई पेंटिंग को स्पॉन्सर किया गया है, मतलब जो काम रेलवे ने फ्री में इन लोगों से करवाया है, उसके लिए रेलवे ने खुद पैसे उगाही कर ली।
इसके बाद कलाकारों ने जुलाई 2018 में विरोध दर्ज कराते हुए दो दिन स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस को कुछ घंटे रोककर रखा था, जिसके बाद रेलवे ने सभी कलाकारों को 250रुपए/दिन के हिसाब से देने की बात की।
कलाकारों के मेहनतनामा के नाम पर यह राशि बहुत कम थी, फिर भी उन्होंने इतने पर संतुष्ट होकर विरोध वापस ले लिया लेकिन दूसरी ओर उसी तारीख को समस्तीपुर रेल थाना में चार कलाकारों राकेश कुमार झा, सुरेंद्र पासवान, रत्नेश झा, सोनू निशांत के साथ सात अनाम के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। जो काम फ्री में मिथिला पेंटिंग को सम्मान दिलाने के लिए किया गया था, उसके लिए सम्मान की जगह अरेस्ट वारेंट जारी किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
कलाकारों को इस संबंध में तब खबर हुई जब अप्रैल 2019 को इनकी गिरफ्तारी के लिए उनके घरों में छापामारी शुरू हुई। राकेश जी से जब मेरी बात हुई थी तब तक किसी भी कलाकार की गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी, क्योंकि वे घर से भागे हुए हैं और सोशल मीडिया और फोन के माध्यम से लोगों को इस अन्याय के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करने की अपील कर रहे हैं।
आपको बताते चले कि राकेश जी का अपना एक ऑर्गनाइजेशन है, ‘क्रॉफ्टवाला’, जिनके कलाकारों ने पटना स्थित कलेक्ट्रियट गंगा घाट से पटना कॉलेज तक मिथिला पेंटिंग की है और इसकी खूबसूरती से प्रभावित होकर पटना नगर निगम ने वृहद स्तर पर पूरे पटना शहर को मॉर्डन आर्ट और मिथला पेंटिंग से सजाने का फैसला किया था।
मिथिला पेंटिंग के इस कार्य की अगुवाई भले ही पुरुषों द्वारा की गई लेकिन इस कार्य में 90% महिलाओं का योगदान रहा है, जिन्हें सही मेहनताना और सम्मान की जगह भारतीय रेलवे गिरफ्तार कर दमन करने की योजना बना रही है।
एसपी ने बात करने से कर दिया मना
दूसरी तरफ हमने भारतीय रेलवे के इस कदम पर पटना रेलवे के एसपी सुजीत कुमार से भी बात करने की कोशिश की, जिसपर उन्होंने कोई भी स्टेटमेंट देने से मना कर दिया। नाम ना छापने की शर्त पर रेलवे के एक अधिकारी ने कहा कि रेल रोकना कानूनन अपराध है ऐसे में कार्रवाई होना मुमकिन था।
फिर प्रश्न यह भी है कि आए दिन राजनीतिक दल के लोगों के द्वारा रेल रोकने की घटना होती रहती है, ऐसे में उन सब पर नामजद कर्रवाई की जगह अनाम या भीड़ का नाम दे दिया जाता है, फिर इन कलाकारों के खिलाफ नामजद कर्रवाई क्यों हुई? क्या रेलवे स्पॉन्सरसिप के द्वारा प्राप्त मोटी कमाई को छुपाना चाहता है? ऐसे कई प्रश्नों के साथ अब कुल मिलाकर कलाकारों की उम्मीदें हम और आप जैसे आम लोगों के साथ पर आकर रूक गई हैं, उम्मीद है उन्हें सम्मान के साथ न्याय मिले।