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”मैं देश का बेरोज़गार नागरिक, शासक व्यवस्था से नाखुश हूं”

मैं, देश का बेरोज़गार नागरिक, देश की शासक व्यवस्था के नज़रिए से नाखुश हूं। सरकार को सभी धर्म, जाति, भाषा के लोगों के हित में कार्य करना चाहिए। उसे देश के विकास की दिशा में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, पलायन, विस्थापन, भुखमरी, शोषण, भेदभाव, जातिवाद, अत्याचार, महिला शोषण, बालविवाह, धूम्रपान की दिशा में योजना बनाकर कार्य करना चाहिए।

अब भारत की जनता को किसी बाहरी देश से आज़ादी नहीं चाहिए, बल्कि जिस देश में वे निवास करते हैं, उस देश में स्वाभिमानी जीवन जीने की आज़ादी चाहते हैं। विकास के नाम पर पूंजीवादी, निजीकरण, बाज़ारीकरण, शहरीकरण, औद्योगिकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्राकृतिक संसाधन, जल, जंगल, ज़मीन का हनन करके मानवीय जीवन एवं जीव, जन्तु को खतरे में डाला जा रहा है। यह विकास नहीं, बल्कि विनाश है।

किसी भी देश का विकास देश की जनता को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार प्रदान करने के साथ-साथ उन्हें आत्मसम्मान, समानतावादी, उदारतावादी, मानवतावादी, मानसिक एवं शारीरिक विकास की ओर ले जाने से होता है। पर्यावरण, जल, जंगल, ज़मीन एवं उनके संरक्षक समुदाय का संरक्षण करते हुए भौगोलिक स्थिति को यथावत बनाए रखने की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। पर क्या ऐसा हो रहा है? राजनीतिक तंत्र जनता को भ्रम, जुमलेबाजी, लूट तंत्र की दिशा में भटका कर उसे गलत दिशा में मोड़ रही है। वह जनता को जाति और धर्म के नाम पर भड़काकर साम्प्रदायिकता का माहौल पैदा कर रही है।

लोकतंत्र की समझदार जनता भी राजनीतिक दंगल में अपना मतदान गलत प्रत्याशी को देकर लोकतंत्र को खतरे की ओर धकेलने में भागीदारी निभा रही है। यह देश की अखंडता के लिए सही नहीं है। आज मंदिर, मस्जिद, जाति, धर्म, परिवारवाद, वंशवाद की गुलामी की ज़ंजीरों में देश की जनता को जकड़कर चुनावी माहौल बनाया जा रहा है। मुद्दों पर कोई बात ही नहीं हो रही है। यह देश के लोकतंत्र और देश की जनता के लिए खतरे का संकेत है।

शासक व्यवस्था ही जब देश की जनता को झूठे वादों की घूंट पिला दे तो यह जनता की आज़ादी और स्वाभिमान का अपमान है। 10 करोड़ रोज़गार, काला धन लाकर खाते में 15 लाख रुपए डालने के वादे करने वाली सरकार के शासन में विजय माल्या, निरव  मोदी सहित 36 उद्योगपति देश के करोड़ों रुपए लेकर देश से बाहर भाग गएं। अखण्ड भारत की बात करके आतंकवादी गतिविधियों की अनदेखी की जा रही है। फिर भी जनता चुप है और जो सच को उजागर कर रहे हैं उन्हें देशद्रोही का सर्टिफिकेट बांटा जा रहा है। जिन युवाओं पर देश का भविष्य टिका होता है, उन्हें रोज़गार देने की बजाए पकौड़े तलने की सलाह दी जा रही है।

देश की जनता परेशान है। वह तीर, तलवार से नहीं, बल्कि बेरोज़गारी, अशिक्षा, पलायन की बीमारी से घायल हो रही है। समय की पुकार है कि अब लोकतंत्र की मज़बूती के लिए लड़ाई लड़नी होगी। वक्त आ गया है कि देश की व्यवस्था में सुधारात्मक कार्य के लिए चुनावी दंगल में जनता सोच, समझ के मतदान करे।

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