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“क्यों काँग्रेस का घोषणापत्र मेरे लिए महज़ एक चुनावी झुनझुना है”

राहुल गाँधी, सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह

राहुल गाँधी, सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह

2019 लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज़ करने के लिए सभी पार्टियां ज़ोर आज़माइश कर रही हैं। पार्टियों द्वारा एक के बाद एक ताबड़तोड़ वादे किए जा रहे हैं ताकि किसी भी प्रकार से वोटरों को अपने पाले में कर पाएं। इसी कड़ी में मंगलवार को काँग्रेस ने 2019 लोकसभा चुनाव के लिए घोषणापत्र जारी कर दिया।

आइए जानते हैं काँग्रेस के घोषणापत्र की 10 मुख्य बातें-

वादों के बीच काँग्रेस का पूरा घोषणापत्र जब सामने आया, तो उसमें कुछ उन मुद्दों का ज़िक्र भी देखा गया, जो मुद्दे काफी विवादित रहे हैं और इन पर पिछले कुछ सालों में भी काफी चर्चा, बहस और राजनैतिक टकराव हुए हैं। जैसे- देशद्रोह के कानून का मामला, जिस पर जेएनयू में देश विरोधी नारों पर कार्रवाई के बाद बहुत हंगामा हो चुका है और सेना के विशेषाधिकार का मामला जो कश्मीर में आतंक के खिलाफ जंग में बहुत ज़रूरी बताया जाता है।

राहुल गाँधी। फोटो सााभार: Getty Images

इन दोनों मुद्दों पर काँग्रेस के घोषणापत्र के पेज नंबर 34 के वादा नंबर 30 में ज़िक्र है। जिस तरह से काँग्रेस के घोषणापत्र में देशद्रोह कानून खत्म करने, सेना और सुरक्षाबलों के विशेषाधिकार को कम करने के वादे किए गए हैं, उससे राहुल गाँधी की टीम पर वह सवाल उठ गए हैं, जो उन्हें परेशान कर सकते हैं।

क्रमवार ढंग से काँग्रेस के घोषणापत्र को समझिए-

प्वॉइंट नंबर 1 और 2

राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के जिस चुनावी एजेंडे की काट के लिए राहुल गाँधी ‘गरीबी हटाओ’ (सर्वप्रथम उनकी दादी इंदिरा गाँधी द्वारा लगाया गया था) के नारे को फिर से निकाल कर लाए, जिसमें उन्होंने 72 हज़ार रुपये सालाना की इनकम गारंटी की बात कही है। अब राहुल उसी पर बैकफुट पर हैं।

इस 72 हज़ार के स्कीम के बारे में मैं पहले ही बता चुका हूं। गरीबी हटाओ का नारा काँग्रेस कई दशकों से लगा रही है, चाहे वो इंदिरा जी के समय में रहा हो या मनमोहन जी के या किसी और के, हम सभी जानते हैं कि गरीबों का कितना उत्थान हुआ है। सत्ता में साख बचाए रखने के लिए इनके पूर्वज भी इसी तरीके का हथकंडा अपनाते थे, जैस आज ये अपना रहे हैं।

मैं इनमे से नेहरू जी को पृथक करके बोल रहा हूं, क्योंकि मैंने पढ़ा है उनके कार्यकाल में भारत की अर्थव्यवस्था 4 प्रतिशत की तेज़ी से आगे बढ़ रही थी, जो आज तक किसी सरकार ने प्राप्त नहीं किया है। खुद उनकी अपनी पार्टी ने भी नहीं जबकि कई दशक सत्ता में रहे हैं।

प्वॉइंट नंबर 3 और 4

किसी भी मायने में रोज़गार देना आज के दौर में भारत जैसे देश में बहुत कठिन काम हो जाता है, क्योंकि इसका भी असर सीधे सरकारी खज़ाने पर जाता है। भारत जैसे देश में टैक्स चोरों की संख्यां काफी ज़्यादा है। किसी भी प्रकार की सरकारी वैकेंसी आने के बाद हमें सिर्फ धांधली ही देखने को मिलती हैं।

इतनी नौकरियां पैदा करने की बात कहना तो आसान सा दिखाई पड़ता है लेकिन धरातल पर चीज़ें उनती आसान नहीं हैं। हम मौजूदा सरकार के 2014 के मैनिफेस्टो से ही एक सीख ले सकते हैं।

भाजपा सरकार ने भी 2 करोड़ सरकारी नौकरियां पैदा करने की बात बोली थी जो कि उनके कार्यकाल के अंतिम सालों में हम कुछ लाख 2 लाख नौकरियां ही देख पाते हैं। वह भी तब जब भारतीय रेलवे जैसे बड़े नौकरी प्रदाता, सरकारी कंपनियां सामने आते हैं।

एक बार के लिए अगर मैं यह मान भी जाऊं तो मुझे यह समझने में बहुत मुश्किल हो जाती है कि वे सैलरी कहां से देंगे? क्या इसके लिए महंगाई फिर से चरम पर होगी? हम सभी को इस पर सोचना चाहिए।

प्वॉइंट नंबर 5

भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार आतंरिक और बाहरी सुरक्षा के लिए अति आवश्यक समझे जाते हैं। इनका काम भारतीय राजनीति के साथ- साथ सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी अहम हो जाता है। यह भारत के प्रधानमंत्री के एक अभिन्न अंग माने जाते हैं।

नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार: Getty Images

काँग्रेस ने अपने घोषणापत्र में साफ कह दिया कि उनकी सरकार में एनएसए सुपर बॉस नहीं होगा। गौरतलब है कि मोदी सरकार के एनएसए अजीत डोभाल को लेकर विपक्ष में तमाम तरह की बातें सुनने को मिलती रही हैं। उनके बारे में तमाम विपक्षी दल यह कहते रहे हैं कि मोदी ने उन्हें अपार शक्तियां दी हैं। बता दें काँग्रेस ने अपनेन घोषणापत्र में यह साफ कर दिया है कि एनएसए के पर काटे जाएंगे।

प्वॉइंट नंबर 6

जीएसटी को लेकर मैं ज़्यादा कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि अभी जो जीएसटी भाजपा के शासन काल में पेश किया गया है, वह बहुत कॉम्प्लिकेटेड है। इसे एक साधारण व्यापारी को समझने में काफी दिक्कतें आती दिखाई दी हैं।

मैं यह मान सकता हूं कि शायद काँग्रेस सरकार जीएसटी को थोड़ा आसान बनाने में सक्षम हो जिससे छोटे व्यापारियों को भी मदद मिल सके लेकिन यह केवल एक विचार है, होगा या नहीं, हम पूर्ण रूप से नहीं कह सकते हैं।

प्वॉइंट नंबर 7 और 9

कर्ज़ में दबे किसानों की चिंता को लेकर राहुल गाँधी ने कहा कि अगर किसान कर्ज़ ना चुका पाए और डिफॉल्टर हो जाए तो उनपर आपराधिक मामला नहीं दर्ज़ होगा बल्कि उसे सिविल ऑफेन्स माना जाएगा। क्या उनके ऐसा करने से देश का विकास संभव है? मुझे बिलकुल भी नहीं लगता।

जहां हम अपने ऊपर लदे अंतर्राष्ट्रीय कर्ज़ को नहीं चुका पा रहे हैं और कई किसान जो कर्ज़ लेकर बैठे हैं, जो सक्षम होते हुए भी कर्ज़ अदा नहीं करना चाहते, यह एक गंभीर विषय बन सकता है। हम राजस्थान के कई किसानो के ऐसा करने को लेकर अखबारों में पढ़ते आए हैं।

मुझे लगता है कि किसानो के लिए उनके द्वारा किया गया यह प्रस्ताव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रस्तावित 6000 रुपये सालाना से बेहतर नहीं है। मैं दोनों की तुलना नहीं कर रहा बस एक राय देने की कोशिश कर रहा हूं, क्योंकि एक नज़र में हम देखें तो 6000 रुपये सालाना देना कर्ज़ माफी से ज़्यादा आसान है।

फोटो साभार: Getty Images

उसके बाद किसानों की सहायता के लिए सरकार उन्हें हर महीने राशन उपलब्ध करा ही देती है। अगर राहुल गाँधी सच में कोई अलग बजट किसानों के लिए लाना ही चाहते हैं, तो उसमें कर्ज़ माफी ना होकर किसानों के फसल को और उन्नत कैसे बनाया जा सकता है, इस बारे में कुछ विचार करें।

कर्ज़ माफी का ऐलान कर देना पहले से ही किसी भी दशा में एक बेवकूफी भरा कदम है। किसानों के लिए काँग्रेस सरकार पिछले कई दशकों से काम कर रही है मगर कैसे कर रही है मुझे आज तक समझ नहीं आ रहा है। सबसे ज़्यादा समय तक सत्ता में रहने के बाद भी काँग्रेस किसानों के लिए कुछ नहीं कर पाई।

प्वॉइंट नंबर 8 और 10

शिक्षा का मौजूदा बजट किसी भी रूप में खराब या कम नहीं है। इन्हें समझना पड़ेगा कि इन्हीं पैसों से किस प्रकार से शिक्षा व्यवस्था को और बेहतर बना सकें।

भारत ने आज भी अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा लाए गए पढाई के ढांचे को बरकार रखा है। बदलाव बजट में नहीं, शिक्षा व्यवस्था में लाने की ज़रूरत है।

अब रही बात स्वास्थ सेवाओं की तो इसमें बदलाव लाने की सच में ज़रूरत है। डॉक्टरों की कमी और सरकारी अस्पताल की खराब हालत लगातात रोगियों के लिए परेशानी की वजह बनती जा रही है। जिन लोगों के पास अधिक पैसे नहीं होते हैं, उनकी मौत तक हो जाती है।

आज चुनावी मैनिफेस्टो के ज़रिये इन चीज़ों में सुधार लाने की ज़रूरत है। नेता तो आते जाते रहेंगे लेकिन हमें समझना होगा कि राजनीतिक दल सिर्फ चुनाव जीतने के लिए तमाम घोषणाएं कर रहे हैं, या वाकई में वे हमसे सरोकार रखते हैं।

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