अब कुछ ही दिन रह गए हैं जब देश में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। लोकसभा चुनावों में पार्टियों द्वारा अलग-अलग मुद्दों की बात की जाती है और विश्वास दिलाया जाता है कि चुनाव जीतने के बाद सारे वादे पूरे किए जाएंगे।
खैर, जनता को तो पता ही है कि यह बातें महज़ चुनावी जुमले होते हैं। इनका विकास से कोई रिश्ता नहीं होता है। इसकी बानगी आपको बिहार राज्य में स्थित मेरे गाँव (भीटा) की इस सड़क के ज़रिये देखने को मिल सकती है, जिसे अबतक राजनेताओं द्वारा उपेक्षा की नज़रों से देखा गया।
इस खराब सड़क के माध्यम से तमाम परेशानियां झेलते हुए हर रोज़ ना जाने कितने लोग अपने-अपने गंतव्य स्थान के लिए जाते हैं मगर सुनने वाला कोई नहीं है।
जहां हम शहर की भव्यता मे डूबे हुए हैं, वही आज भी देहाती क्षेत्रों मे बहुत सारे लोगों को रोज़मर्रा की ज़रूरी चीज़ों के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। मुझे वाकई में समझ नहीं आया कि आखिर क्यों मेरे गाँव की यह सड़क अबतक तंग अवस्था में हैं। आखिर क्या वजह है कि किसी भी राजनेता की नज़र इस तरफ नहीं जाती है?
जब जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र में विकास का जाएज़ा लेने इन सड़कों से गुज़रते होंगे, तब अपनी मंहगी आरामदेह चमचमाती गाड़ियों की खूबियों पर भले ही मन ही मन में इतराते होंगे मगर यह सड़कें हज़ारो लोगों के लिए खतरे का सबब बना हुआ है। खासकर छात्रों के लिए यह काफी जोखिम भरा है।
जब सड़क जैसी बुनियादी चीज़ के लिए भी लोगों को अनशन करना पड़े और राजनीतिज्ञ काम के बदले सिर्फ अश्वासन से काम चलाने लगे और नौकरशाह पैसे खाकर मौन व्रत धारण कर ले, तब लोगों के पास चुनाव में अपनी वोट से संदेश देने का अंतिम विकल्प रह जाता है।
मौजूदा दौर में हम जैसे लोगों की परेशानियों को सुनने के लिए राजनेताओं के पास बिल्कुल भी वक्त नहीं है। वे बस अलग-अलग चुनावी सभाओं के ज़रिये लोगों को यही बताना चाहते हैं कि पांच सालों में उन्होंने जो भी किया है, वही विकास है।
अब तो मेरे गाँव में लोग कहने लगे हैं, “सड़क बनवा दीजिए हुजूर, वोट आपको को देंगे राम कसम।