हाल ही में मैं चित्तौड़गढ़ से उदयपुर बस में सफर करने के दौरान रास्ते में मैंने एक भाजपा के प्रत्याशी का एक बैनर देखा, जो कि राजस्थान के विधानसभा चुनाव में अपनी विधानसभा से भाजपा के प्रत्याशी थे।
उस बैनर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था, “एक वोट देश के लिए एवं (प्रत्याशी का नाम) और विजयी बनाएं। मुझे उदयपुर पहुंचने में करीब डेढ़ घंटे का समय बाकी था। मैं उस दौरान इस पंक्ति के कई मतलब मन ही मन मे समझता रहा लेकिन आज कुछ निष्कर्ष तक पहुंचा हूं।
मैंने तो छोटी सी उम्र से ही किताबों में यही पढ़ा है कि हम उसे वोट दें जो सर्व समाज की बात को सुने विकास की बात करते हुए देश को आगे बढ़ाने की बात करे लेकिन मैं यह कहीं नहीं पढ़ पाया कि सिर्फ भाजपा को वोट देना ही देश को वोट देना है ।
राजनीति में उग्रता
मौजूदा वक्त में हालात काफी खराब हो चुके हैं क्योंकि आप यदि भाजपा के कार्यकर्ता या नेता हैं, तो आपके अंदर पार्टी की आलोचना सुनने की हिम्मत ही नहीं है। आप सिर्फ इतना जानते हो कि उग्र कैसे होना है।
आज बीजेपी के किसी भी प्रवक्ता से आप बात करेंगे तो आपको लगेगा कि आपने कोई अपराध किया है। आपके विरोध करने के तरीके को देश विरोधी बयान बता दिया जाता है।
जी हां, आप सही पढ़ रहे हैं। अगर आपने प्रधानमंत्री के कार्यों की आलोचना की है, फिर तो कयामत आने के आसार हैं। इस वक्त माहौल ऐसा बनाया जा रहा है कि एंटी मोदी मतलब एंटी नैश्ननल है। यह जो उन्हें देश मान लिया गया है, मेरे विचार से कहीं ना कहीं इन चीज़ों से भारत देश का ही अपमान है।
खैर, मैं बहुत जगह उनकी बातों का सम्मान भी करता हूं लेकिन बैनर में वोट मांगने के लिए देश शब्द का ज़िक्र करने का मतलब यह हुआ कि मैं अगर भाजपा को वोट नहीं देता हूं, तो भारत देश के विकास के लिए वोट नहीं दे रहा हूं।
भाजपा सत्ता में आए चाहे ना आए लेकिन इस तरह का माहौल ना बनाए कि लोग भाजपा की सही आलोचना करने से भी डरने लगें। माहौल इस तरह का हो कि लोग चाहे भाजपा को वोट दें या किसी अन्य पार्टी को लेकिन उनके मन में ऐसा भाव ना आए कि अगर मैने भाजपा को वोट नहीं दिया तो मैं देशद्रोही हूं।
स्वस्थ लोकतंत्र में आलोचना ज़रूरी है
बस इसी बात के साथ समाप्त करना चाहूंगा कि अगर इस देश में विकास चाहिए तो यह ज़रूरी नहीं कि आप सीधा प्रधानमंत्री या पार्टी को देखकर वोट करें। आप वोट करें अपने क्षेत्र के एक योग्य उम्मीदवार को जो चाहे किसी भी पार्टी का हो लेकिन विकास हित में हो।
अब तक भारतीय इतिहास में बहुत प्रधानमंत्री आए लेकिन मैने किसी के लिए ऐसा तो नही सुना कि उनका विरोध इस देश के विरोध में है। प्रधानमंत्री हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा ही तो चुने जाते हैं, ऐसे में उनसे जवाब लेना भी न्यायसंगत है क्योंकि सबसे बड़े लोकतंत्र में अगर कुछ गलत होगा तो प्रधानसेवक से ही जनता प्रश्न करेगी।