“ये जंगल और जंगल के वृक्ष मेरे भाई की तरह हैं। मैं इन्हें किसी को काटने नहीं दूंगी।” सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित जमुना टुडू द्वारा कही गई यह बात आज के दौर में बेदह प्रासंगिक है।
13 फरवरी 2019 को माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने लाखों आदिवासियों को वन क्षेत्रों से बाहर जाने का फरमान सुनाया था, जिसके बाद साहसी आदिवासी महिला जमुना टुडू ने वन और वृक्षों को बचाने की मुहिम में अपना जीवन दांव पर लगा दिया।
जमुना टुडू कौन हैं, यह शायद हमारे देशवासियों को मालूम नहीं है। चलिए मैं आपको उनके बारे में बताता हूं। आज मैं उनके ‘जंगल बचाओ अभियान’ और उनके संघर्षों के बारे मे बताऊंगा।
जमुना टुडू संताल आदिवासी समुदाय से संबंध रखती हैं और झारखंड के पूर्वी सिंहभूम के चाकुलिया मातूराम गाँव में रहती हैं। उनकी पैदाइश ओडिसा में हुई और 1998 में उनका विवाह झारखंड में हुआ था।
जब विवाह करके अपने पति के साथ वह चाकुलिया आईं तो एक दिन गाँव की महिलाओं ने उन्हें अपने साथ लकड़ियां इकट्ठा करने जंगल लेकर गईं। आदिवासी जनजातियों में यह कार्य अक्सर महिलाएं ही करतीं हैं।
जंगल की सुंदरता ने जीता जमुना का दिल
जब जमुना जंगल के अंदर गईं तो जंगल की सुंदरता ने उनका दिल जीत लिया। उनके मन में यह बात आई कि अगर लोग जंगल से इन हरे-भरे वृक्षों को काट देंगे, तो यह अच्छी बात नहीं होगी। यह सुनकर गाँव की महिलाओं ने उन्हें बहुत समझाया कि हमलोग ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि बिना लकड़ी के हम खाना कैसे पकाएंगे?
जब गाँव के लोगों को यह बात मालूम पड़ी तो वे जमुना के इस फैसले का विरोध करने लगे। कुछ लोगों ने तो यह तक कह दिया, क्या यह जंगल आपका है? क्या आपने इन पेड़ों को लगाया है?
इस तरह के विरोधों के बीच जमुना जंगल के पेड़ों को ना काटने के अपने फैसले पर कायम रहीं और गाँव की महिलाओं को समझाया कि इस तरह का विरोध तो चलता ही रहेगा।
महिलाओं के साथ पेट्रोलिंग का काम
जमुना ने अपने वृक्ष बचाओ अभियान के लिए महिलाओं के साथ पेट्रोलिंग का काम शुरू कर दिया। कोई अगर वृक्षों को काटता दिखता तो जमुना और उसकी महिला टीम उन लोगों को वृक्ष काटने से रोकतीं। जमुना अपनी टीम के साथ सुबह, दोपहर और शाम को एक बार ज़रूर पेट्रोलिंग पर निकलती और बिना किसी सरकारी मदद के वह अभियान में लगी रहीं।
इस ‘जंगल बचाओ अभियान’ के दौरान उनकी जंगल माफियाओं से मुठभेड़ भी हुई। जंगल माफिया ही सबसे ज़्यादा जंगल की तबाही कर रहे थे। वे वृक्षों को काटकर जंगल को खोखला कर रहे थे।
जबकि ग्रामीण लोग सिर्फ अपनी ज़रूरत के लिए लकड़ियों का इस्तेमाल कर रहे थे लेकिन अगर वे लोग नए वृक्षों को काटते तो जमुना ग्रामीणों को समझाती थी कि नए वृक्षों को ना काटे।
जमुना की मदद से फॉरेस्ट विभाग को मिली कामयाबी
8-9 वर्ष पहले एक बड़े जंगल माफिया ने साठ-सत्तर वृक्षों को बीच जंगल में काट दिया था। जमुना को जब यह खबर मिली तब उन्होंने फॉरेस्ट विभाग को सूचना दी। जिसके बाद उन अधिकारियों ने जमुना की मदद की। उसके बाद जमुना ने अपने इस अभियान को सिर्फ अपने गाँव तक सीमित ना रखकर आस-पास के कई गाँवों मे जाकर महिलाओं की मदद से वन-रक्षक समिति बनाई और जंगलों का संरक्षण भी शुरू किया।
पूर्वी सिंहभूम में 6 विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां जमुना ने लगभग प्रत्येक प्रखंड और विधानसभा में 300 वन-रक्षा समितियों का गठन किया ताकि आस-पास के जंगलों को जंगल माफियाओं से बचाया जा सके।
जंगल बचाओ अभियान देशभर में लागू करने की तमन्ना
जमुना का एक सपना है कि जंगल बचाने का यह अभियान सिर्फ झारखंड तक ही सीमित ना रहे बल्कि यह अभियान अब पूरे भारत देश में फैले। लोगों को जंगल के बारे में जागरूक करना ही उनके जीवन का उद्देश्य बन गया है।
उन्हें ना किसी राजनीतिक लोगों का डर है, ना ही जंगल माफियाओं और ना ही किसी नक्सली संगठनों से खौफ है। वह हमेशा उन चुनौतियों के लिए तैयार रहती हैं। जिसके कारण लोग उन्हें ‘लेडी टार्ज़न’ के नाम से भी पुकारते हैं।
वृक्षों को बांधती हैं हर साल राखी
जमुना का कोई भाई नहीं था, इस कारण प्रत्येक वर्ष वह अपनी महिला साथियों के साथ जंगलों में जाकर वृक्षों को रक्षाबंधन के दिन राखी बांधती हैं और उन वृक्षों की रक्षा का प्रण लेती हैं।
जमुना को वर्ष 2014 में ‘स्त्री शक्ति अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया था। झारखंड आर्म पुलिस भी उनके इस साहसिक अभियान में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मिलकर कार्य कर रही है।
इसी वर्ष 2019 को भारत के माननीय राष्ट्रपति द्वारा जमुना को ‘पद्मश्री’ से भी सम्मानित किया गया। जमुना ने ना सिर्फ आदिवासी समाज को सम्मान दिलाया बल्कि इस देश का भी सम्मान पूरे विश्व में बढ़ाया है। हमें गर्व है कि हमारे आदिवासी समाज में जमुना टुडू जैसी नारी शक्ति है। उनके जज़्बे को हम सलाम करते हैं।