महिलाओं के खिलाफ कोई भी शोषणकारी रवैया कभी भी क्षम्य नहीं हो सकता है मगर इसका राजनीतिकरण हो, यह बिल्कुल सही नहीं है। इसे जाति और धर्म के चश्मे से देखकर क्या महिलाओं का भला हो सकता है?
उदाहरण के लिए देश ने बीते वर्ष कठुआ की घटना को देखा, जिसका काफी राजनीतिकरण हुआ। इस संदर्भ में सबसे ज़रूरी बात यह है कि राजनीतिकरण के बाद कुछ परिणाम भी तो नहीं निकल पाया।
मीटू का भी राजनीतिकरण हुआ
आपने #मीटू देखा, जिसका काफी राजनीतिकरण किया गया मगर परिणाम? महिला सशक्तिकरण वाले मामलों का राजनीतिकरण समाज को नुकसान ही पहुंचाता है, क्योंकि समाज का हर वर्ग इसके विरोध में एक साथ नहीं आ पाता है। हालांकि यह भी सर्वव्यापी सत्य तो नहीं हैं मगर इसके दूरगामी परिणाम ना के बराबर ही होते हैं।
ऐसे मामलों के परिणाम जेसिका हत्याकांड और निर्भया की घटना की तरह व्यापक नहीं हो पाते जिसने वक्त आने पर कानून में ही परिवर्तन ला दिया।
#मीटू में भी जब तक बात नाना पाटेकर, विवेक अग्निहोत्री और एम.जे.अकबर के खिलाफ होती रही, आंदोलन अपने उफान पर रहा मगर जैसे ही विनोद दुआ और वायर के ही अन्य कर्मचारियों पर बात आई, आंदोलन कमज़ोर होता गया।
आंदोलन कुछ अच्छा रिज़ल्ट क्या देती, उसके उलट अकबर पर आरोप लगाने वाली अब कोर्ट का चक्कर लगा रही है और विनोद दुआ को दूसरी नौकरी भी मिल गई। अब तो वह घर बैठे-बैठे ही कार्यक्रम कर लेते हैं।
यहां दोष विरोध करने वाले और चुप्पी साधने वाले दोनों का ही है। कुछ लोग जाति-धर्म-राजनीति से प्रेरित होकर पहले तो विरोध करते हैं और बाद में चुप हो जाते हैं।
गलती की शुरुआत किसने की, यह अधिक महत्वपूर्ण है। सेलेक्टिव विरोध का कल्चर तो काफी पहले से था मगर इतना व्यापक लेकिन बेअसर तब हुआ जब देश में कथित रूप से ‘असहिष्णुता’ बढ़ गई।
मौजूदा दौर में कुछ लोग काँग्रेस का विरोध तब करते हैं, जब वह कोई देशविरोधी एजेंडे में शामिल हो। जैसे- सेना और सर्जिकल स्ट्राइक के मामले में लोग काँग्रेस को निशाने पर ले लेते हैं।
गलत जानकारियों का अंबार सोशल मीडिया
कुछ लोग मीडिया द्वारा फैलाई गई गलत सूचनाओं में फंसकर सोशल मीडिया पर चर्चा का बाज़ार गर्म कर देते हैं। जब केरल में आई बाढ़ के बाद दुबई से मिली राहत रकम को भारत सरकार द्वारा लौटाने की खबर आई, तो उसने कुल मिला कर भारत का ही छीछालेदर किया।
एक तो खबर झूठी थी और ऊपर से रकम। ऐसा लगा कि भारत को दुबई के भीख की अत्यंत ज़रूरत है। महज़ 700 करोड़ के लिए अपनी राजीनीतिक विरोध के कारण देश को बदनाम किया।
अंबेडकर ने कहा था कि हमें सबसे पहले और सबसे अंत में भारतीय होना चाहिए। सबसे पहले और अंत में छोड़ दीजिए, यदि सिर्फ सबसे पहले भी कोई भारतीय हो जाए, तो भी देश को नुकसान होने से बचाया जा सकेगा।