इंदिरा गाँधी प्रतिष्ठान लखनऊ में कुंभ मेले पर आयोजित ‘इंडिया टुडे गोलमेज सम्मेलन’ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिरकत की। जिसमें उन्होंने कुंभ के आयोजन के लिए अपनी सरकार द्वारा किए गए कार्यों को गिनाया।
जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से एक सवाल किया गया कि क्या कुंभ मेले में राजनीति होगी? तो उन्होंने बेबाकी से इसका जवाब देते हुए कहा कि राजनीति अपने आप में धर्म से जुड़ी हुई है और हर धर्म राजनीति से जुड़ा हुआ है, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। धर्म में पाखंड आएगा तो उसके लिए राजनीति ज़रूरी है लेकिन राजनीति में पाखंड आएगा तो उसकी पवित्रता के लिए धर्म ज़रूरी है और दोनों को जोड़कर चला जाए तभी देश का कल्याण होगा।
इस जवाब से यह स्पष्ट हो गया था कि कुंभ मेले में राजनीति की गंगा में भी डुबकी लगाई जाएगी। कुंभ मेला विश्व में आयोजित होने वाले धार्मिक मेलों में सबसे बड़ा है, जिसमें करोड़ों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। सत्ताधारी दल के लिए श्रद्धालुओं को अपने पक्ष में आकर्षित करने का यह सुनहरा अवसर होता है।
हालांकि और दल भी ऐसा करने का प्रयास करते हैं। कुंभ मेला समाप्त हो चुका है। तो आइए एक पड़ताल करते हैं कि कुंभ मेला कितना राजनैतिक रहा? यह आकलन करना इसलिए ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि इसका आयोजन एक ऐसे समय पर हुआ जब लोकसभा चुनाव होने में एक महीने से भी कम समय बचे हैं।
मोदी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने में जिस कुम्भ (2013) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, क्या वह कुंभ 2019 नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बना पाएगा?
नाम बदलने के साथ हुई राजनीति की शुरुआत
इस आयोजन पर राजनीतिकरण की पहली शुरुआत हुई 12 दिसंबर 2017 को, जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सदियों से चले आ रहे ‘अर्ध कुंभ’ के नाम को बदलकर ‘कुंभ’ कर दिया, जो कुंभ मेले की ऐतिहासिक प्रक्रिया के खिलाफ था।
विदित है कि प्रत्येक 6 वर्ष पर अर्ध कुंभ और 12 वर्ष पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। 2013 में कुंभ का आयोजन हुआ था। ऐसे में यह आयोजन अर्ध कुंभ का होना था। एक ऐसी पार्टी जो प्राचीन मूल्यों का आदर करने का दावा करती है, वह अर्ध कुंभ को कुंभ करने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाई।
नाम बदलने पर योगी का तर्क
अर्ध कुंभ और कुंभ दोनों भारत की धार्मिक परंपरा का हिस्सा हैं, जिसका नामकरण सदियों पहले भारतीय पंचांग के अनुसार हुआ था। कुंभ मेले का लोगो जारी करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा कि वेद का ‘ओम् पूर्णमद: पूर्णमीदं’ शब्द कहता है कि हिंदू धर्म में कुछ अधूरा नहीं होता। सब अपने आप में पूरा होता है।
उन्होंने कहा कि अर्ध शब्द दर्शन शास्त्र के हिसाब से सही नहीं है इसलिए हम अर्ध शब्द को हटा रहे हैं और यह अब कुंभ होगा। जो भी हो लेकिन सदियों से चले आ रहे नाम को बदलने की योगी सरकार की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं। जूना अखाड़े के एक संत तथा अन्य कई संतों ने इस निर्णय का विरोध किया लेकिन योगी आदित्यनाथ से मिलने के बाद संतो ने यह निर्णय मान लिया।
अर्ध कुंभ का नाम बदलने के सवाल पर सपा समेत अन्य विपक्षी पार्टियों ने विधानसभा में हंगामा किया और भाजपा पर अर्द्ध कुंभ मेले का अपने हित के लिए प्रयोग करने का आरोप भी लगाया।
योगी का राजनीतिक संकेत
15 अक्टूबर 2019 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने ऐलान करते हुए कहा कि अब इलाहाबाद को प्रयागराज के नाम से जाना जाएगा। सरकार का यह कदम कुंभ के राजनीतिकरण तथा हिंदुत्वकरण की तरफ उठाया गया ऐसा कदम था, जिसके माध्यम से योगी सरकार ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि हिंदू मतों के ध्रुवीकरण की पूरी कोशिश भाजपा इस कुंभ मेले में भी करेगी।
सरकार द्वारा हवाला दिया गया कि 500 वर्ष पहले एक मुसलमान शासक ने प्रयाग नाम जो पहले से था, उसका नाम बदलकर इलाहाबाद कर दिया। इस प्रकरण पर मीडियाविजील न्यूज़ साइड ने एक लंबी श्रृंखला छाप कर यह साबित किया कि इलाहाबाद शहर का नाम बदला नहीं गया था, यह शहर अकबर ने खुद विकसित करके इसका नामकरण किया था। प्रयाग नाम संगम क्षेत्र से जुड़ा हुआ है, जो अभी भी कायम है।
पैसों की लूट
कुंभ मेले की भव्यता को बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने अब तक का सबसे बड़ा बजट 4236 करोड़ रुपये आवंटित किया। इस बजट की घोषणा करने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रयागराज आए। इस बजट में केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार का हिस्सा क्रमशः 2200 करोड़ और 2000 करोड़ रहा।
अगर हम पिछले कुंभ 2013 के बजट को देखें तो यह इस बार राज्य सरकार द्वारा आवंटित बजट 1300 करोड़ के करीब था। 2001 के कुंभ में यह बजट मात्र 165 करोड़ था।
शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले बुद्धिजीवियों, छात्र संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार द्वारा मेले पर इतना अधिक खर्च करने की मंशा पर सवाल उठाया। उन्होंने अपने तर्क में कहा कि कुंभ मेले का बजट उत्तर प्रदेश के बजट में आवंटित स्वास्थ्य बजट का 80% तथा प्राथमिक शिक्षा के कुल बजट का तकरीबन 25 % है।
मानव विकास सूचकांक में कुल 189 देशों में भारत इस वर्ष एक स्थान ऊपर उठकर 130वें स्थान पर आया है। जबकि उत्तर प्रदेश सभी भारतीय राज्यों की सूची में नीचे से दूसरे स्थान पर रहा। ऐसे में सवाल उठता है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार पर ना खर्च करके सरकार द्वारा कुंभ मेले पर इतना बजट खर्च करना कितना जायज़ है?
हालांकि सरकार ने तर्क दिया कि यह आयोजन 6 साल में एक बार आता है और इस बजट का बहुत बड़ा हिस्सा शहर के संरचनात्मक विकास में खर्च किया जाएगा, इसलिए यह बजट इतना बड़ा नहीं है और सरकार की प्राथमिक सूची में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार शामिल है।
होर्डिंग्स के ज़रिये अर्ध कुंभ में राजनीति
अगर आप कुंभ मेले में आए होंगे तो आपने देखा होगा कि जैसे ही आप रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते हैं, सामने बड़ी-बड़ी होर्डिंग आपका स्वागत करते दिखाई पड़ती हैं। यह होर्डिंग संगम मार्ग से लेकर मेला परिसर तक आपकी आंखों से ओझल नहीं होती। इन होर्डिंग्स पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चित्र हैं और इन पर केंद्र और राज्य सरकार के कार्यों का ज़िक्र है।
इन पर जो आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं, उन आंकड़ों के किसी स्रोत का कोई स्पष्ट विवरण नहीं है, जिससे हमेशा भ्रम की स्थिति बनी हुई थी। शहर तथा मेला क्षेत्र के प्रत्येक चौराहे पर बड़ी-बड़ी एलसीडी स्क्रीन द्वारा सरकार अपने कार्यों का प्रचार कर रही थी।
संगम तथा मेला क्षेत्र में प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी के तस्वीर वाली सेल्फी प्वाइंट बने हुए थे, जहां बड़ी संख्या में युवा और श्रद्धालु सेल्फी ले सकते थे।
अर्ध कुंभ में भी भगवाकरण
ऐसे कई प्रतीक बनाए गए थे, जिससे लोगों को भाजपा, उसके नेता, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का नाम बरबस उनके होठों पर आ जाता था, जैसे बोतलबंद पानी जो मेले में बिक रहा था उसका नाम ‘अटल पानी’ रखा गया था।
कितनी अजीब बात है कि उस बोतल का रंग भी ‘भगवा’ रखा गया था। यह बोतल लोगों को भाजपा और उसके नेताओं की तरफ आकर्षित कर रहे थे। ऐसे प्रतीकों और कार्यों द्वारा भाजपा श्रद्धालुओं के दिमाग पर छा जाना चाहती थी।
वोट फॉर मोदी के नारे
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की प्रतिज्ञा इस मेले में जगह-जगह साधु संतों द्वारा ज़ोर-शोर से ली गई, मेले में आए श्रद्धालुओं को भी यह प्रतिज्ञा दिलाई गई। एक सबसे अलग परिदृश्य जो इस कुंभ मेले में देखने को मिली, वो यह कि कई साधु संत और श्रद्धालु ‘बम बम भोले, जय गंगे मैया’ का जोशीला नारा लगाने के साथ-साथ ‘वोट फॉर मोदी’ के नारे भी लगा रहे थे।
पंडालों में साधु-संतों द्वारा मोदी को इस बाबत वोट देने की अपील की गई कि मोदी के आने से मंदिर निर्माण की आशाएं बढ़ गई हैं और मंदिर बनाना है तो आपको मोदी जी को फिर से प्रधानमंत्री बनाना होगा।
एक वाकया मेरे साथ हुआ जब मैं अपनी माता जी के साथ पंडाल में बैठा हुआ था। एक महिला आकर मेरी माँ से बोली कि देखिए मोदी और योगी जी ने कितनी अच्छी व्यवस्था की है, आप मोदी जी को ही वोट देना। मैं यह सुनकर दंग रह गया कि यह महिला इतनी बेबाकी से मोदी जी के लिए वोट मांग रही हैं। ऐसा मैंने कभी नहीं देखा था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा देश-विदेश में कुंभ मेले की ब्रांडिंग इतने ज़ोर-शोर से की गई कि यह सवाल उठने लगा कि क्या पहली बार कुंभ मेले का आयोजन हो रहा है? जो इसका इतना प्रचार किया जा रहा है।
दरअसल, कुंभ मेला खत्म होने के कुछ महीनों बाद देश में आम चुनाव होने हैं। राम मंदिर का मुद्दा अब पुराना हो चुका है। हालांकि बीजेपी 2013 का चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ी थी। ऐसे में भाजपा अपने परंपरागत वोट को बचाने के लिए कुंभ मेले में बड़ा सियासी दांव खेलने को तैयार है।
अन्य राज्यों में भी कुंभ का प्रचार
सीएम योगी ने भारत के अन्य राज्यों में कुंभ का प्रचार करने की ज़िम्मेदारी दोनों उप-मुख्यमंत्रियों और कैबिनेट मंत्रियों को सौंपी। इन्हें भारत के अलग-अलग राज्यों में जाकर राज्यपाल और मुख्यमंत्रियों को कुंभ में आने का न्योता देना था। इसके ज़रिये सरकार का मकसद यह था कि कुंभ के कार्यों को अन्य राज्यों में दिखाकर लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के पक्ष में माहौल बनाएं।
उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को मध्यप्रदेश और दिनेश शर्मा को गुजरात भेजा गया। इसके अलावा श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को पंजाब, नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना को झारखंड, औद्योगिक मंत्री राजेश अग्रवाल को हरियाणा, पर्यटन मंत्री रीता बहुगुणा जोशी को बिहार, पशुधन मंत्री एसपी सिंह बघेल को पश्चिम बंगाल, खेल मंत्री चेतन चौहान को ओडिसा, स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह को कर्नाटक, बिजली मंत्री श्रीकांत शर्मा को राजस्थान, स्वास्थ्य मंत्री आशुतोष टंडन को उत्तराखंड, स्टांप एवं पंजीयन शुल्क मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी को गोवा और सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह को छत्तीसगढ़ भेजा गया।
संघ के तमाम संगठन तैनात थे
संघ परिवार के विभिन्न संगठन जैसे भाजपा, विश्व हिंदू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विद्या भारती, संस्कार भारतीय और वनवासी कल्याण आश्रम के कैंप कुंभ मेले में हिंदुत्व के संदेश फैलाने के लिए लगे हुए थे।
विश्व हिंदू परिषद द्वारा देशभर में हिंदुओं को एकजुट करने की कवायद शुरू की गई। विश्व हिंदू परिषद का कैंप मेला क्षेत्र के सैक्टर 6 में लगा हुआ था, जो मेला क्षेत्र के केंद्र में था और भीड़ से भरा रहता था।
इसके आस-पास कई सरकारी कार्यालय भी थे। 21 जनवरी की पौष पूर्णिमा को भारतीय जनता पार्टी शासित दो राज्यों हरियाणा और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और त्रिवेंद्र सिंह रावत के संवाद का आयोजन किया गया।
इन दोनों मुख्यमंत्रियों ने राम मंदिर पर अपने विचार लोगों के बीच साझा किया। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि मंदिर का निर्माण संतों की इच्छा के अनुसार किया जाना चाहिए। वहीं, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि मंदिर निर्माण एक सामाजिक समस्या है जिसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। विवाद को सभी पक्षों की आपसी समझ या सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के माध्यम से हल किया जा सकता है।
विश्व हिंदू परिषद द्वारा दो दिवसीय धर्म संसद का आयोजन 31 जनवरी और 1 फरवरी को किया गया। जिसमें राम मंदिर, सबरीमाला तथा अन्य धार्मिक मुद्दों पर बहस के लिए प्रस्ताव रखा गया। हालांकि पहले दिन राम मंदिर पर कोई चर्चा नहीं हो सकी। अधिवेशन के पहले दिन केवल 2 प्रस्ताव सबरीमाला पर राष्ट्रीय अभियान चलाने और विघटनकारी शक्तियों के खिलाफ आंदोलन चलाने का निर्णय लिया गया।
गठबंधन की राजनीति पर संतों ने प्रहार किया और भीमा कोरेगाँव की घटना को हिंदुओं को बांटने की साज़िश करार दिया गया। जो मुद्दे इस बहस में शामिल थे, वह राजनीति के साथ अटूट रूप से जुड़े हुए थे और आगामी लोकसभा चुनाव में उनका व्यापक प्रभाव पड़ने वाला है।
31 जनवरी को धर्म संसद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत और उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी शामिल हुए। मोहन भागवत ने कहा कि षड्यंत्र के तहत हिंदू समाज को बांटा जा रहा है, हिंदुओं के खिलाफ कपट युद्ध हो रहा है और सबरीमाला में महिलाओं का प्रवेश करोड़ों हिंदुओं की भावना को ठेस पहुंचाने वाला कदम है।
उन्होंने आगे कहा कि सबरीमाला सिर्फ मलयालम भाषी के भगवान नहीं हैं बल्कि पूरा हिंदू समाज उनके साथ है। कोर्ट ने करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं का ख्याल नहीं रखा।
धर्मसंसद के दूसरे दिन महामंडलेश्वर अखिलेश्वरानंद ने प्रस्ताव पढ़ा जिसमें राम मंदिर निर्माण को लेकर कोई घोषणा नहीं हुई। वहां मौजूद संतों ने निर्माण की तिथि नहीं घोषित होने पर हंगामा किया। उन्होंने कहा कि यह ‘धर्म संसद’ नहीं ‘धर्म संकट’ है।
धर्म संसद को लेकर विवाद भी कम नहीं था। जूना अखाड़े के संत महामंडलेश्वर यतेंद्रानंद गिरी तथा अन्य संतों ने बीजेपी पर कुंभ मेले को हाईजैक करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इससे पहले कभी कुंभ का राजनीतिकरण नहीं हुआ था। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने भी धर्म संसद का बहिष्कार किया और बीजेपी पर कुंभ मेले में राजनीति करने का आरोप लगाया।
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी ने कहा कि बीएचपी के राजनीतिक पार्टी से संबंध है इसलिए हम संसद में नहीं जाएंगे। हालांकि पर्दे के पीछे मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्रियों ने संतों को मनाने की कोशिश की।
भाजपा को रोकने अन्य दल भी मौजूद थे
भाजपा जिस तरह से कुंभ की ब्राडिंग कर रही थी, उसका पॉलिटिकल माइलेज भाजपा ना ले सके इसके लिए यूपी के विपक्षी दलों ने अपनी-अपनी रणनीति तैयार की थी। जिन विपक्षी दलों के कैंप कुंभ मेले में लगे हुए थे, उसमें समाजवादी पार्टी का ‘समाजवादी चिंतन शिविर’ समाजवादी चिंतन धारा के लोगों को आकर्षित करने के लिए लगा हुआ था।
इस कैंप की दीवार पर एक होर्डिंग थी, जिसमें अखिलेश, मुलायम, लोहिया और जनेश्वर मिश्रा की तस्वीर लगी हुई थी। अखिलेश यादव कुंभ मेले में 2 बार आए और ‘अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद’ के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरि यहां मेहमान बने।
वहीं, सैक्टर 6 के बिहिप कैंप के पास ही मायावती का श्रद्धालुओं को स्वागत करते हुए पोस्टर लगा था। हालांकि बहुजन समाज पार्टी कुंभ मेले में कैंप नहीं लगाती थी। काँग्रेस सेवादल का भी कैंप कुंभ मेले में सैक्टर 11 में लगा हुआ था। हर माघ मेला, अर्ध कुंभ और कुंभ मेले में सेवादल का कैंप लगता है। 1989 में राजीव गाँधी तथा 2000 में सोनिया गाँधी सेवादल के कैंप में आ चुके है। कैंप में 150-200 कार्यकर्ता हमेशा रहते थे।
दीवारों का भगवाकरण
सरकार ने ‘पेंट माय सिटी’ अभियान के अंतर्गत शहर की सभी प्रमुख दीवारों जैसे विश्वविद्यालय की दीवारों और इमारतों को भगवा रंग से रंग दिया और उस पर एक धर्म विशेष के मिथको और साधु-संतों की तस्वीरें उकेर दी। जो इस शहर की गंगा जमुनी तहज़ीब के बिल्कुल खिलाफ है।
बालसन चौराहे पर ठीक गाँधी प्रतिमा के सामने महर्षि भारद्वाज की विशालकाय प्रतिमा स्थापित की गई, जो यह बताता है कि सरकार किस प्रकार हिंदू मतों का ध्रुवीकरण करना चाह रही है। कई वर्षों में विकसित शहर के मौलिक स्वरूप को विकास के नाम पर ध्वस्त कर दिया गया।
पुराने शहर का प्रवेश द्वार जो खुसरो बाग से जुड़ा हुआ है, उसको ध्वस्त कर दिया गया और इन सब कार्यों को विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के एक प्रोफेसर एलसीडी स्क्रीन पर सही ठहरा रहे थे। जिस शहर में हिंदू देवी देवताओं के चित्र और बड़ी-बड़ी मूर्तियां बन रही थी, उसी शहर में निराला जी की मूर्ति को हटाकर दूसरी जगह लगा दिया गया। यहां तक कि उसके नीचे का सिलापट भी गायब हो गया था।
सरकार ने कुंभ मेले और संगम जाने के मार्ग पर कई सांस्कृतिक मंचों का निर्माण किया था, जहां प्रदेश के विभिन्न ज़िलो और प्रदेशों से आए कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। एक बार जब मैं केपीयूसी हॉस्टल के सामने लगे सांस्कृतिक मंच के सामने से ग़ुजर रहा था, तो मैंने सुना कि जो कलाकार वहां बिरहा गा रहा है, उसके बोल पूरी तरह से राजनीतिक हैं। वह लगातार भाजपा सरकार और मोदी का नाम लेकर गा रहा है।
योगी सरकार ने श्रद्धालुओं को यह संदेश देने के लिए कि यह सरकार आपके कितने करीब है, अपनी कैबिनेट की बैठक मेला क्षेत्र में 29 जनवरी को करने का निर्णय लिया था। उसी दिन मेला क्षेत्र में उरी फिल्म का प्रदर्शन हुआ, जो पाक अधिकृत कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर आधारित है।
सरकार किस प्रकार से कुंभ मेले को राजनीति का अखाड़ा बनाना चाहती थी, इसका प्रमाण इस बात से मिला है कि कुंभ मेले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो बार आए। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कुंभ मेले में 5 बार आए।
एक बार तो ऐसा हुआ कि मुख्यमंत्री के बार-बार आने से परेशान होकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने उन्हें कुंभ मेले में मुख्यमंत्री के रूप में आने से मना किया और आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री के बार-बार आने से कुंभ मेले में अव्यवस्था हो जाती है और सारे अधिकारी मेले का कार्य छोड़ कर मुख्यमंत्री के आगमन की व्यवस्था संभालने में लग जाते हैं।
हद तो तब हो गई जब 4 मार्च को शिवरात्रि स्नान से पहले उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने पुलवामा हमले के बाद हुए सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिकरण करते हुए शहर के मुख्य मार्गों और मेला क्षेत्रो में बड़े-बड़े पोस्टर लगवा दिए।
इस प्रकार देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि असंख्य श्रद्धालुओं, साधु-संतों, हज़ारों टेंटो, मंदिरों और गंगा यमुना की बहती धारा में राजनीति की भी धारा बह रही थी।
कुंभ मेले में पहली बार किसी सरकार ने इतना राजनीतिक हस्तक्षेप किया। इससे पहले की सरकारें अपने आपको सिर्फ व्यवस्था संभालने तक सीमित रखती थी। कुंभ मेले की परंपराओं में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता था। कुंभ मेले में सरकार द्वारा किया गया हस्तक्षेप आगामी आम चुनाव को ध्यान में रखकर किया गया है। सरकार का कुम्भ में हस्तक्षेप उसके लिए कितना फायदेमंद होता है, यह लोकसभा चुनाव के बाद पता चल जाएगा।