सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी मिली कि भागलपुर ज़िले के आमडंडा थाना क्षेत्र के काझा गाँव में 27 फरवरी 2019 की रात प्रतिमा तोड़ने वाले कोई संगठनों द्वारा प्रथम स्वतंत्रता सेनानी बाबा तिलका मांझी की मूर्ति खंडित कर दिया गया।
इससे पहले भी ऐसी घटनाएं घटित हो चुकी हैं। वर्ष 2017 में अप्रैल माह को गम्हरिया कांड्रा थाना क्षेत्र की बुरुडीह पंचायत अंतर्गत धीवर टोला के नागाडुंगरी में स्थित सिदो-कान्हू की प्रतिमा को कुछ असामाजिक तत्वों ने तोड़ दिया था।
वर्ष 2018 को मार्च महीने में पुन: एक घटना हुई थी। झारखंड राज्य के दुमका ज़िले के पोखरा चौक में स्थापित संताल हुल के महानायक सिदो मुर्मू एवं कान्हू मुर्मू के प्रतिमा के साथ छेड़छाड़ हुआ था। सिदो-कान्हू की मूर्ति में सड़ी-गली मछलियां और बोरे टांग दिए गए, जो बेहद शर्मनाक बात थी।
हमारे आदिवासी शहीद नायकों कें प्रति ऐसे समूह या संगठनों ने बहुत ही घृणित मानसिकता का परिचय दिया है। इन चीज़ों को आदिवासी समुदाय बर्दाश्त नहीं कर सकता है।
मुझे इस बात से बड़ी हैरानी हो रही है कि व्यस्त सड़कों में कोई ऐसी शर्मनाक कार्य को अंजाम देते हुए चम्पत हो जाता और किसी को कोई खबर तक नहीं होती।
इस घटना को हम लोग क्या समझे? क्या इस तरह हमारे संतालों की भूमि यानि ‘संताल परगना’ में वीर शहीद सिदो-कान्हू की प्रतिमा को तोड़कर उपहास करना यहां के संपूर्ण संताल समाज का उपहास माना जाए? या संताल परगना में इस तरह की नापाक हरकतों को अंजाम देते हुए संतालों को उसकाने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा है?
ऐसा भी तो हो सकता है कि झारखंड के आदिवासियों का ध्यान किसी खास मकसद से हटाया जा रहा हो। पिछले वर्ष 2018 को भी भोगनाडीह में सिदो-कान्हू की प्रतिमा तोड़कर द्वेष फैलाने का एक और मामला प्रकाश में आया था।
मुझे यह बात अजीब लग रहा है कि इस तरह की प्रतिमाओं को खंडित करने वाला कोई समूह या संगठन सक्रिय होकर घटनाओं को देश के कोने-कोने में अंजाम दे हैं और प्रशासन तमाशा देख रही है।
उत्तर प्रदेश में भी कुछ मूर्ति तोड़ने वाले ग्रूप ने बाबा साहब अंबेडकर की प्रतिमा तोड़ी थी। महापुरुषों की प्रतिमाएं तोड़ने का मामला देश के कोने-कोने मे चल रहा है और ऐसे लोग बड़े आराम से लोगों की नज़रें बचाकर अपने काम को अंजाम दे रहे हैं।
यह तो निश्चित है कि ऐसे ग्रूप या समूह उन्हीं इलाकों के आस-पास रहते हुए इन चीज़ों को अंजाम दे रहे हैं। प्रतिमा तोड़ने वाला प्रशासन की नज़रों से साफ बच निकलता है।
यह बेहद ही शर्मनाक है कि ऐसी चीज़ों पर प्रशासन द्वारा एक्शन नहीं लिया जा रहा है। अपराधियों की शिनाख्त तक नहीं हो पा रही है। क्या ऐसे मूर्ति तोड़ने वालों को राजनीतिक संरक्षक प्राप्त हैं?
ऐसे में यह संभव हो सकता है कि राजनेताओं के इशारे पर अपराधी इस प्रकार मूर्तियों को बेखौफ तोड़ने का काम कर रहे हैं। इस तरह भारत में आदिवासी वीर शहीदों की प्रतिमाओं को तोड़ने के पीछे किसी भयानक षड्यंत्र की बू नज़र आ रही है। इस पर प्रदेश की सरकार को जल्द से जल्द दोषियों पर कार्रवाई करने का आदेश देना चाहिए।