इन दिनों हम सभी चुनावी माहौल देख और समझ रहे हैं। चुनाव का आगाज़ होते ही सियासी तापमान उबाल पर होता है। ऐसे गर्म राजनीतिक माहौल में वादे भी काफी गरमा-गर्म पेश किए जाते हैं, जिन्हें हम बेहद स्वादिष्ट समझकर चखने का काम करते हैं।
मैं एक बात आपको बता देना चाहता हूं कि इस बार आप इन वादों को चखने का काम ज़रूर करें मगर संभलकर, क्योंकि आपने जल्दबाज़ी में कोई भी फैसला लिया तो आपकी दौड़ती-भागती ज़िन्दगी में मुश्किलें आने की संभावनानएं हैं।
जी हां, इस लेख के ज़रिये हम मौजूदा सरकार की समीक्षा भी करेंगे और यह भी बताएंगे कि आने वाली सरकार से हमें क्या-क्या उम्मीदें हैं। मैं पुन: अपनी बात दोहराते हुए कहना चाहूंगा कि हमें वादे नहीं, अब परिवर्तन चाहिए।
आखिर कब तक हम इन चुनावी जुमलों को सुनते रहेंगे? आखिर कब तक ये नेता हमें अपने झूठे वादों के जाल में फंसाकर रखेंगे? हम सब ये बातें सुन-सुनकर बचपन से बड़े नहीं हो गए हैं क्या?
मैं यूपीए की सरकार के बारे में कुछ खास ज़िक्र नहीं करना चाहूंगा क्योंकि वह सरकार अभी सत्ता में नहीं है। एक बात मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि मैं ना तो किसी पार्टी का समर्थक हूं और ना ही कार्यकर्ता, मैं सामान्य विचारधारा रखने वाला व्यक्ति हूं या मुझे आप आज का यूथ कह सकते हैं।
पांच सालों में कुछ भी नहीं बदला
पांच साल बीत गए या बीतने वाले हैं, चुनाव का बिगुल भी बज चुका है लेकिन अब भी चुनावी वादे ज़ोर पकड़ रहे हैं। मैं देश के नेताओं से यह उम्मीद नहीं कर रहा हूं कि वे कोई नए वादे लेकर आएं बल्कि मैं चाहूंता हूं कि वे सकारात्मक पहल के साथ तमाम परेशानियों के लिए समाधान लेकर आएं।
इन सबके बीच मुझे अंदाज़ा है कि देश के तमाम राजनेता कोई परिवर्तन नहीं लाने वाले हैं, क्योंकि वोट मांगने के लिए उनके पास कोई मुद्दा ही नहीं बचेगा। मैं एक खास बात बताना चाहूंगा कि जब तक आप जनतंत्र को भागीदारी नहीं बनाएंगे, जब तक हम अपने नेताओं से सवाल नहीं करेंगे, जब तक हम उनपर शक नहीं करेंगे और जब तक हम उन्हें कठिन परिस्थितियों में नहीं डालेंगे, तब तक लोकतंत्र मज़बूत नहीं हो पाएगा।
मौजूदा सरकार ने पांच सालों में जो कुछ भी किया, मुझे धरातल पर नहीं दिखाई पड़ा। इन बातों को सुनने के बाद मुझे पार्टी समर्थक कहेंगे कि आप पार्टी विरोधी हैं।
अब और पांच साल मांग रहे हैं
पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार यह कहा जाता है कि अगर पांच साल और मौजूदा सरकार को दे दिया जाए, तो और भी बदलाव देखने को मिलेंगे। पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा कही गई इन बातों पर मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि मौजूदा सरकार यदि पांच साल और रह गई तो यह देश बिक जाएगा।
नीरव मोदी और विजय माल्या चौकीदार को चकमा देकर भाग गए
अभी तो मोदी जी द्वारा एक नई योजना का आगाज़ हुआ है। जी हां, #मैं भी चौकीदार। मुझे तो शर्म आती है कि उन चौकीदारों का क्या जो इस चीज़ को गर्व महसूस कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि उनका मान बढ़ गया है। मेरे हिसाब से यह उनका अपमान हो रहा है, क्योंकि अगर वे देश के चौकीदार होते तो इतने बड़े-बड़े लोग आज करोड़ों रुपये लेकर नहीं भागते।
मेरा उन असली चौकीदारों से सवाल है कि क्या आप चोरों को ऐसे ही भागने देते हैं? अगर भाग भी गए तो पकड़ कर लाते हैं ना? फिर खुद को चौकीदार बोलने वाले साहब क्यों नहीं पकड़ कर ला पाए इन भगौड़ों को?
कोई लाख रुपये लेकर भागता है तो आप उसे पकड़ कर वाह-वाही लूटने लगते हैं मगर जब करोड़ों रुपये की बात आई, तो आप कहते हैं हमने नोटबंदी से काले धन पकड़ लाए। अरे कहां लाए, जितने लाए उनसे तो कहीं ज़्यादा लेकर भाग गए।
मौजूदा दौर में जनता के पैसों से राजनेता चुनावी खर्चा चलाते हैं और गरीबों की समस्याओं का उन्हें ख्याल ही नहीं होता है। मोदी जी ने तो पांच सालो में प्राइवेट कंपनियों को इतना ज़्यादा फायदा दिया कि वे मालामाल हो गए। वह ‘मेक इन इंडिया’ की बात करते हैं और सब कुछ ‘मेड इन चाइना’ होता है।
चायवाला स्कीम फेल
‘चायवाला स्कीम’ जब फेल हो गया तो आपने ‘मैं भी चौकीदार’ हैशटैग के साथ लोगों को अपने पाले में करने की कोशिश करने लगे। पहले राम मंदिर को मुद्दा बनाया और अब पुलवामा को मुद्दा बनाना चाहते हैं। आखिर कब तक जनता को उल्लू बनाएंगे?
यह सरकार तो मीडिया से लेकर फिल्मों तक को खरीद चुकी है। गरीबों के नाम पर आपने उज्जवला योजना की शुरुआत की लेकिन उनमें से कितने लोग अभी गैस सिलेंडर का प्रयोग कर रहे हैं?
मैं यही कहना चाहता हूं कि देश के हित में जो मुद्दे होते हैं, उन मुद्दों को जीतने का ज़रिया ना बनाएं जिससे आम लोगों को तकलीफ हो। अब हमें वादे नहीं, परिवर्तन चाहिए।
मैं तर्क के आधार पर सिर्फ एक तस्वीर पेश करने की कोशिश कर रहा हूं, ताकि लोग अंधभक्तों की तरह यूं ही किसी भी राजनीतिक दल के लिए आपस में ना लड़ें।
मैं हर किसी से यही कहना चाहूंगा कि पार्टी समर्थक ना बनकर देश समर्थक बनें, तभी देश में एकता और विकास दिखेगा। मैं आप सभी से निवेदन करता हूं कि आप सब वोट देने में अपनी भूमिका दर्ज़ कराएं, अपना वोट व्यर्थ ना जाने दें।
अगर आपको ना समझ आए कि किसे वोट देना है, तो नोटा बटन पर क्लिक करें मगर अपने वोट का अधिकार व्यर्थ ना जाने दें, क्योंकि आप ही देश के भविष्य हैं और जिन्हें आप चुनेंगे, वे इस देश की दिशा बदल सकते हैं।