देश के पूर्व रक्षामंत्री और गोवा के मुख्यमंत्री के पद पर कई बार रह चुके मनोहर पर्रिकर एक लम्बी बीमारी के बाद कल राजनीति और दुनिया, दोनों छोड़कर चले गए। पर्रिकर अपनी सादगी, कर्मठता और एक मेहनती राजनेता के तौर पर जाने गए। उनकी सादगी और मेहनत की तमाम कहानियां हैं, इसलिए वह आखिर तक अपनी बीमारी के बावजूद भी मुख्यमंत्री के तौर पर अपने काम में लगे रहे।
वह दिन याद आता है जब कुछ दिन पहले ही उन्होंने राज्य का बजट पेश किया था तो उनसे ठीक से बोला भी नहीं जा रहा था, उनकी आवाज़ तक नहीं निकल रही थी लेकिन वह बजट पढ़ रहे थे। उस हालत में देखकर लगा था कि अब उनको आराम करना चाहिए और यह ज़िम्मेदारी किसी और को सौंप देनी चाहिए। उन्होंने एक दो दफा कहा भी था कि मैं आखिरी सांस तक राज्य और लोगों की सेवा करूंगा।
लेकिन ऐसे में जो एक सवाल ज़ाहिर तौर पर मन में आता है कि राजनीतिक सुचिता दिखाते हुए कम-से-कम मानवता के नाते पार्टी को उन्हें आराम देना चाहिए था। उनसे कहना चाहिए था कि आपने बहुत काम किया, अब आप अपने लिए वक्त लीजिए और आराम कीजिए। यह ज़िम्मेदारी कोई और संभाल लेगा। तब जबकि कुछ दिन पहले यह लगभग तय हो गया था, क्योंकि बीमारी अब ठीक नहीं हो सकती ऐसे में किसी पार्टी या देश की ज़िम्मेदारी होती है कि उनको सेवामुक्त किया जाता लेकिन बजाय इसके बीजेपी ने उनकी तारीफों के पुल बांधे कि वह देश सेवा में लगे हैं।
अब जब वह नहीं रहें तो उनके जाने के बाद भी उनकी निष्ठा ईमानदारी और कर्मठता की बात करेगी पार्टी, जिसमें कोई बुराई भी नहीं है। इसके साथ ही पार्टी को लेकिन यह भी सोचना चाहिए कि पर्रिकर मुख्यमंत्री के साथ-साथ देश के नागरिक और एक इंसान भी थे, इस नाते उन्हें यह अधिकार और वक्त मिलना चाहिए था जो उनका हक था। लेकिन अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा के नाते पार्टी ने उन्हें यह हक नहीं दिया।
हमारे देश में एक बात आदत में आ चुकी है कि किसी के काम को या उसको इतना बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर दो, उसकी इतनी तारीफ कर दो कि उसके जो सामान्य अधिकार हो, वह ना देने पड़ें और ना ही वह मांग पाए। जैसे, औरत को देवी बना दिया तो उसको उसका वाजिब हक नहीं देना पड़ा, सैनिकों का महिमामंडन कर दो लेकिन असल में उनके हक के लिए लड़ने की बात आती है तो बहुत कम लोग और राजनेता आगे खड़े होते हैं।
इसी तरह मनोहर पर्रिकर की सादगी, उनके काम, उनकी मेहनत की तारीफ सब करेंगे, जिसके लिए वह योग्य भी हैं लेकिन एक छोटी सी सामान्य सी लेकिन ज़रूरी बात समझिए कि एक व्यक्ति जो ऐसी बीमारी से जूझ रहा है, जिसका अब इलाज होना संभव नहीं दिख रहा है, क्या वह अलविदा कहने से पहले कुछ दिन खुद के लिए नहीं बिताना चाहेगा? हां, उनका चुनाव हो सकता है कि वह अपने पद पर रहते हुए और लोगों के लिए काम करते हुए विदा लेना चाहते हों लेकिन पार्टी को तो इस बारे में ज़रूर सोचना चाहिए था, जो लोगों के सामने एक अच्छा उदाहरण होता लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।