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“जनता के वे मुद्दे जो पुलवामा की घटना के बाद गायब कर दिए गए”

मोदी रैली

मोदी रैली

साल 1978 में आई फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ के एक दृष्य में शासक अपने पड़ोसी मुल्क के शासक से कहता हैं, “आपकी जनता आपसे नाखुश है और हमारी जनता हमसे। तो आइए 15 दिनों का एक युद्ध छेड़ देते हैं। आपकी जनता आपसे और हमारी जनता हमसे खुश होकर ज़रूरी मुद्दो पर खामोश भी हो जाएगी।”

इस फिल्म का यह डायलॉग आज की परिस्थितियाों में काफी हद तक सटीक बैठता है। आज युद्धोन्माद में जनता के सभी मुद्दे हाशिए पर ढकेल दिए गए हैं और आमागी लोकसभा चुनाव भी इसी युद्धोन्माद और इससे उभरे राष्ट्रवाद के इर्द-गिर्द ही लड़ा जाएगा।

इसकी विसात बिछ चुकी है जिससे जनता (जिनमें शहीदों के परिजन भी शामिल हैं) को फिर से खाली हाथ ही निराश होना पड़ेगा। उन मुद्दों की एक लंबी सूची है, जो जनता से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े हुए थे। उन्हें अचानक मीडिया से गायब कर दिया गया और जो जनता सवाल उठा रही थी, उससे कहा गया कि यह समय सवाल पूछने का नहीं है।

फोटो साभार: Getty Images

देश में इस समय जो मुद्दा ज़ोर-शोर से उठ रहा था, वह विश्वविद्यालयों में शिक्षक भर्ती में लागू होने वाले रोस्टर को लेकर था। सरकार द्वारा लचर पैरवी के कारण सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा दाखिल एसएलपी खारिज हो गई।

इस वजह से अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों का विश्वविद्यालय में शिक्षक बनना लगभग असंभव हो गया।इस समाज के लोग लगातार आंदोलनों के माध्यम से सरकार पर 200 प्वाइंट रोस्टर लाने के लिए अध्यादेश की मांग कर रहे थे, जो सरकार के लिए मुसीबत बना हुआ था।

नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 का उत्तर- पूर्व के राज्यों में जमकर विरोध हो रहा था। देश के अन्य हिस्सों में इस कानून में धर्म के आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगाया गया और कहा गया कि एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर भेदभाव कर भाजपा हिन्दू वोटों का तुष्टिकरण कर रही है। यह कानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।

बेरेज़गारी पर खामोश है सरकार

2014 में मोदी सरकार ने युवाओं को प्रत्येक वर्ष 2 करोड़ रोज़गार देने का वादा किया था लेकिन सरकार 2 करोड़ रोज़गार देने में असफल रही।

कुछ महीने पहले नैश्नल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) द्वारा बेरोज़गारी को लेकर जो रिपोर्ट सामने आई, वह बता रही थी कि इस सरकार में बेरोज़गारी की दर 25 वर्षों में सबसे शीर्ष पर है। इसे लेकर युवाओं में काफी रोष था।

सरकार के गले की घंटी राफेल

सरकार राफेल मुद्दे पर लगातार घिरती जा रही थी। यह मुद्दा तब और महत्वपूर्ण बना जब ‘द हिन्दू’ के एन.राम ने राफेल को लेकर कई खुलासे किए जिसका जवाब देना सरकार के लिए मुश्किल होता जा रहा था। हर तरफ ‘चौकीदार चौर हे’ का नारा गुंजने लगा।

विश्वगुरु कब बनेगा देश?

सरकार ने यह वादा किया था कि हम देश को विश्वगुरु बनाएंगे। सच कहूं तो भारत देश के तमाम विश्वविद्यालय ही राष्ट्र के विश्वगुरु बनने के सपने को साकार कर सकते हैं लेकिन इस सरकार ने देश के विश्वविद्यालयों एवं शिक्षा पर लगातार हमले किए हैं।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

शिक्षा के बजट में क्रमशः 3 वर्षों से कटौती जारी रही है। सरकार ने देश के विश्वविद्यालयों को जारी होने वाली राशि को सरकार द्वारा दी जाने वाली उधारी घोषित कर दिया, जिसे कुछ वर्ष बाद विश्वविद्यालयों को लौटाना था। इससे छात्रों में एक गलत संदेश गया जो सरकार के लिए परेशानी का सबब हो सकता था।

सीबीआई विवाद

सीबीआई की अंदरूनी कलह के साथ-साथ आलोक वर्मा मामले में सरकार घिरी हुई थी। जिस तरह से पश्चिम बंगाल में सीबीआई की कार्रवाई सामने आई, उससे सीबीआई की स्वायत्तता को लेकर तरह-तरह के सवाल उठने लगे और यह आरोप लगा कि पिछली सरकारों से एक कदम आगे निकलकर एनडीए सरकार ने सीबीआई का अपने हित के लिए प्रयोग किया है।

उर्जित पटेल मामला

आरबीआई में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल जिन्होंने नोटबंदी में सरकार का भरपूर साथ दिया था, उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

उर्जित पटेल ने इस्तीफा क्यों दिया इस बारे में तरह-तरह की टिप्पणियां सामने आ रही थीं। सबसे बड़ा आरोप था कि उन्होंने सरकार के दबाव से आहत होकर इस्तीफा दिया है और नवनियुक्त गवर्नर शशिकांत दास पर लगातार सवाल उठाए जा रहे थे।

उर्जित पटेल। फोटो साभार: Getty Images

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने मोदी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा था कि केंद्रीय बैंक आरबीआई कोई सरकारी विभाग नहीं है। सरकार को इसे अर्थव्यवस्था में सुधार लाने से ज़्यादा इसको स्वायत्तता देने की ज़रूरत है। उन्होंने कड़े शब्दों में कहा था कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को नज़रअंदाज़ करना विनाशकारी हो सकता है।

सवर्ण आरक्षण

मोदी सरकार द्वारा सामान्य वर्गों को आर्थिक आधार पर दिए गए आरक्षण पर लोग लगातार सवाल उठा रहे थे। यहां तक कहा जा रहा था कि मोदी सरकार ने संविधान की मूल भावना के साथ खिलवाड़ किया है और यह कदम जातिगत आरक्षण को निष्प्रभावी तथा संविधान को बदलने की तरफ उठाया गया है। यह आरोप बीजेपी पर बहुत पहले से भी लगते रहे हैं।

मॉब लिंचिंग

पिछले कुछ वर्षों में भीड़ का उग्र रूप देखा गया है, जो अलग-अलग जगहों पर दंगा करते हुए लोगों की जान ले रहे हैं। यह श्रृंखला अकलाख से शुरू होकर सुबोध सिंह तक आ गई है। सरकार की आलोचना करने वालों पत्रकारों और बुद्धिजीवियों को गाली और जान से मारने की धमकी देना तो इस दौर में आम बात है।

ऐसे लोगों के खिलाफ सरकार द्वारा कोई कार्रवाई ना करने की चौतरफा आलोचना हो रही थी, जिसका बचाव करना सरकार के लिए मुश्किल होता जा रहा था।

योगी सरकार का एनकाउंटर कल्चर

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एनकाउंटर का एक कल्चर विकसित कर लिया है। पुलिस द्वारा किसी को कहीं भी मार दिया जा रहा है। इसका एक सटीक उदाहरण लखनऊ में सामान्य नागरिक विवेक तिवारी एनकाउंटर मामला है।

एक कार्यक्रम के दौरान योगी आदित्यनाथ और अमित शाह। फोटो साभार: Getty Images

योगी सरकार पर यह भी आरोप लग रहे थे कि उन्होंने कुछ खास वर्ग के अपराधियों का एनकाउंटर करवाया है और यह एनकाउंटर संदिग्ध होते जा रहे थे। ऐसे में इन एनकाउंटरों पर लगातार सवाल उठाया जा रहा था, जो सरकार के लिए मुश्किल पैदा कर रहे थे।

नोटबंदी परेशानी का सबब

सरकार द्वारा की गई नोटबंदी के घाव अभी भी पूरी तरह से भरे नहीं थे। सरकार द्वारा कहा गया कि यह काले धन पर एक बड़ी चोट है। इससे आतंकवाद को खत्म करने में मदद मिलेगी और हम एक कैशलेस इकॉनमी बनाएंगे जैसी तमाम बातें कही गई थी।

नोटबंदी से बहुत लोगों का रोज़गार चला गया, छोटे उद्योग बंद हो गए हैं, बहुत लोगों का घर उजड़ गया और नोटबंदी की जब आखिरी रिपोर्ट आरबीआई द्वारा जारी की गई, तब यह जानकारी सामने आई कि देश में जो भी करंसी थी, वह वापस आ गई है। इस प्रकार सरकार की नोटबंदी की योजना पूरी तरह से सवालों से घिर गई।

दलित समुदाय की नाराज़गी

देश के दलित समुदाय अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे थे। कई सारे मुद्दे थे जिनसे देश के दलित समुदाय सरकार से नाराज़ थे। जैसे- सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी एक्ट को खत्म किया जाना (हालांकि बाद में संविधान संशोधन विधेयक के द्वारा पुनर्स्थापित किया गया)।

फोटो साभार: Getty Images

गुजरात के उना में दलितों की पिटाई, हैदराबाद यूनिवर्सिटी में रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला, सहारनपुर के शब्बीरपुर की घटना, चंद्रशेखर को रासुका के तहत गिरफ्तार किया जाना और भीमा कोरेगाँव में हुई सभा पर पथराव जैसे माममे भी दलितों के ज़हन में हैं।

जियो यूनिवर्सिटी

सरकार द्वारा निजीकरण को दिए जा रहे बढ़ावे की भी आलोचना हो रही थी, जिसमें कहा गया कि जियो यूनिवर्सिटी जो अभी तक अस्तित्व में भी नहीं आई थी, उसे सरकार ने विश्वसनीय संस्थान का दर्ज़ा दे दिया।

देश के रेलवे स्टेशनों का सरकार द्वारा निजीकरण किया जा रहा है। अभी हाल ही में ही देश के 6 हवाई अड्डों को अडानी को सौंप दिया गया। देश में कई सारे उद्योगपति बैंकों का करोड़ों रुपया लेकर विदेश भाग गए। ऐसे में यह सवाल लगातार उठ रहे थे कि क्या इन भगोड़े को भागने में सरकार की तरफ से कोई मदद की गई है?

फोटो साभार: Getty Images

यह समय मोदी सरकार द्वारा पिछले पांच सालों का हिसाब देने का था। जनता अब धीरे-धीरे मोदी सरकार से सवाल कर रही थी। देश के विभिन्न भागों से शिक्षक, कर्मचारी, छात्र, किसान और बुद्धजीवी लगातार दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे थे।

ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या पुलवामा की घटना ने चौतरफा आलोचना से घिर रही भाजपा को संजीवनी देने का काम किया है?
इस बात की पुष्टि भाजपा, उनके नेताओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली से होती है।

पुलवामा में आतंकियों द्वारा सीआरपीएफ जवानों पर किए गए हमले का पूरे देश को दु:ख है। इसके बदले में वायुसेना द्वारा पाकिस्तान में आतंकियों के ठिकाने पर की गई एयर स्ट्राइक पर भी देश की जनता सरकार के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी थी।

फोटो साभार: ANI Twitter

इन सबके बीच सरकार ने सीआरपीएफ जवानों के दु:ख में 1 दिन का भी राष्ट्रीय शोक घोषित नहीं किया। मोदी और अमित शाह लगातार चुनावी रैलियां कर रहे हैं, उनके नेताओं का शहीदों पर राजनीति भी जारी है।

बीजेपी कर्नाटक के अध्यक्ष येदुरप्पा कहते हैं कि मोदी जी की एयर स्ट्राइक से जो लहर बनी है, उससे हम कर्नाटक में 22 सीटें तक जीत सकते हैं। मोदी जी युद्धोन्माद के बीच अपना चुनावी कार्यक्रम ‘अपना बूथ सबसे मज़बूत’ में पार्टी कार्यकर्ताओं से संवाद कर रहे हैं।

विपक्षी दलों, जनता तथा मीडिया से बोला जा रहा है कि वह शहीदों पर राजनीति ना करें। मतलब सरकार से सवाल ना पूछा जाए। यह कहा जा रहा है कि यह समय सरकार से सवाल पूछने का नहीं, सरकार के साथ खड़े होने का है।

हां, ठीक है। यह बात सही है लेकिन जब इसी युद्धोन्माद में मोदी, अमित शाह और भाजपा नेता लगातार चुनावी रैलियां कर रहे हों तो राष्ट्रवाद के नाम पर जनता के मुद्दों (जिसमें शहीदों के परिजनो के मुद्दे भी शामिल हैं) को गायब कर देना कहां तक जायज़ है?

अत: यह कहावत सही साबित होती है, “अगर कोई सरकार सभी मुद्दों पर फेल हो जाए तो उसे पड़ोसी के खिलाफ युद्ध छेड़ देना चाहिए या युद्धोन्माद पैदा कर देना चाहिए।”

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