आज के दिन हम शहीदी दिवस ज़रूर मनाते हैं लेकिन हमारे पास भगत सिंह को जानने के लिए समय नहीं होता है। कुछ लोग तो भगत सिंह को सिर्फ इसलिए याद करते हैं, क्योंकि इससे वे महात्मा गाँधी को गाली दे पाएं लेकिन भगत सिंह किस विचारधारा को मानने वाले थे, यह बात लेनिन की मूर्तियां तोड़ने वाले भला क्या जानेंगे।
अगर भगत सिंह ज़िंदा होते और उन्हें कोई भारत का लेनिन कहता तो शायद वह फूले ना समाते लेकिन हम लेनिन की ही इज्ज़त नहीं कर पा रहे हैं। हमें गाँधी को गाली देने से पहले, लेनिन की मूर्तियों को तोड़ने से पहले और भगत सिंह की मूर्ति पर हार चढ़ाने से पहले भगत सिंह को जानना और समझना चाहिए।
कॉमरेड शब्द गाली नहीं है
आज लोग जिस ‘कॉमरेड’ शब्द को गाली समझते हैं, भगत सिंह अपने साथियों को इसी नाम से संबोधित करते थे। भारत में समाजवाद की आंधी लाने वाले शायद भगत सिंह ही थे लेकिन यह बेहद शर्मनाक है कि वामपंथी बोल कर आज किसी को भी नीचा दिखाया जाता है।
समाजवाद है क्या, हमने पढ़ने की कोशिश ही नहीं की। जो लोग भुखमरी की वजह से मर रहें हैं, वे भी जब समाजवाद को नीचा दिखाते हैं तो बड़ा अफसोस होता है फिर कभी-कभी लगता है मार्क्स ने सही ही कहा था, “धर्म एक अफीम के समान है, जिसे खाकर जनता विकास के मार्ग पर आगे बढ़ने के बजाए पतन के गर्त में उंघती रहती है।”
भगत सिंह को और जानने की ज़रूरत है
आज सभी विश्वविद्यालयों में छात्रों को परेशान किया जा रहा है। छात्र संघों का शोषण हो रहा है। छात्र यदि किसी पार्टी का विरोध करते हैं, तो उन्हें देशद्रोही कहा जाता है। लोग उन्हें राजनीति में जाने से रोकना चाहते हैं।
कई विश्वविद्यालयों में छात्र संघों के चुनाव ही नहीं होते हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय भी इनमें से एक है। विवि कैंपस में सिर्फ एबीवीपी ही कार्यक्रम कर सकती है।
ऐसे हालातों में ज़रूरी है कि लोग भगत सिंह द्वारा कही गई इन बातों को जानें जिसमें उन्होंने कहा था, “यह हम मानते हैं कि विद्यार्थियों का मुख्य काम पढ़ाई करना है, उन्हें अपना पूरा ध्यान उस ओर लगा देना चाहिए लेकिन क्या देश की परिस्थितियों का ज्ञान और उनके सुधार हेतु सोचने की योग्यता पैदा करना उस शिक्षा में शामिल नहीं? यदि नहीं, तो हम उस शिक्षा को भी निकम्मी समझते हैं, जो सिर्फ क्लर्की करने के लिए ही हासिल की जाए। ऐसी शिक्षा की ज़रूरत ही क्या है?”
हम अक्सर देखते हैं किसानो के प्रदर्शनों में लाठीचार्ज हो जाता है लेकिन जब कभी बदले में किसान लाठी उठा लेता है, तो पूंजीपति वर्ग उस किसान को मज़लूम या दबा हुआ मानने से इंकार कर देते हैं।
वे उसके अस्तित्व को नकार देते हैं क्योंकि उन्हें डर होता है। उन्हें डर होता है इसका कि अगर एक किसान का बेटा मार्क्स के इन शब्दों ‘विश्व के मज़दूरों एक हो जाओ तुम्हारे पास खोने के लिए केवल जंज़ीरें हैं और पाने के लिए समस्त विश्व पड़ा है।’ को दोहरा सकता है, तो कोई और मज़लूम और दबा कुचला भी इन शब्दों को दोहरा सकता है।
भगत सिंह की समाजवादी विचारधारा
लोग मार्क्स और लेनिन के कई विचारों से असहमत हो सकते हैं। मैं भी मार्क्स के कुछ सिद्धांतों से इत्तेफाक नहीं रखता हूं लेकिन उनकी वजह से हम भगत सिंह की समाजवादी विचारधारा को अनदेखा कर रहें हैं। हमें समझना होगा कि भगत सिंह सबको समाज में बराबरी का हक देना चाहते थे।
हम भी यह नहीं जानते कि भारत एक समाजवादी राष्ट्र है लेकिन हम समाजवादी नहीं पूंजीवादी हो रहे हैं। हर जगह पूंजीवाद का बोलबाला है। जो अमीर हैं, वे और अमीर हो रहे हैं और जो गरीब हैं, वे और गरीब हो रहें हैं। बेरोज़गारी अपनी चरम सीमा पर पहुंच गई है।
भगत सिंह जो साम्राज्यवाद के घोर विरोधी थे, अब उनके देश में कुछ लोग भारत को साम्राज्यवादी देश के तौर पर अखंड हिंदू राष्ट्र का सपना देख रहें हैं। भगत सिंह की फोटो का इस्तेमाल कई हिंदूवादी संगठन अपने पोस्टर में भी करते हैं।
भगत सिंह कोई पोस्टर बॉय नहीं हैं। वह नास्तिक थे, जिन्होंने ज़िन्दगी भर भगवान को नहीं माना और अपनी नास्तिकता के कारण एक लेख तक लिख डाला। उस शख्स का उपयोग अगर आप धर्म की राजनीति के लिए कर रहे हैं, तो वह बेहद शर्मनाक है।