अभी इस वक्त गौरक्षा के नाम पर होने वाली हत्याओं को लेकर लिखना एक मामूली बात होगी क्योंकि अब यह हमारे रोज़मर्रा में शामिल हो चुका है। हम चाय का कप थामे अखबार का पन्ना फड़फड़ाते निकल जाते हैं और नज़र ऐसी घटनाओं के ज़िक्र पर ठहरती भी नहीं है।
एक बहुसंख्यक सांस्कृतिक फासीवादी राष्ट्र में इस तरह की घटनाएं असामान्य नहीं रह गई हैं। पिछले पांच साल के मोदी राज में भीड़तंत्र की ओर से की जाने वाली इस तरह की हत्याओं को नया आयाम मिला है।
भीड़तंत्र इसलिए कहा जाना ज़रूरी है क्योंकि इसके पीछे एक मज़बूत नेटवर्क काम कर रहा है लेकिन बहुत ही चालाकी से ऐसी सुनियोजित हत्याओं को भीड़ का नाम दे दिया जाता है। भीड़ द्वारा हत्या के औसत मामलों में कहा जाता है कि जनता ने उनकी भावनाओं के खिलाफ जाने वालों से बदला लिया है।
ऐसे मामलों पर सरकार ज़्यादातर चुप्पी ही साधे रहती है, जिससे भीड़तंत्र को शह मिलती है। वह नए-नए माध्यम तलाशते रहता है। भीड़तंत्र को नियंत्रित करने वालों ने धर्म की मुनाफाखोरी का एक समानांतर बाज़ार खड़ा कर लिया है। इस तरह की हत्याएं इनमें निवेश की तरह हैं ताकि डर का माहौल बना रहे और दूसरे को इसके नाम पर वसूली मिलती रहे।
इन सबके बीच मंशा यह भी होती है कि संस्कृति की रक्षा के नाम पर राजनेता सत्ताधीन हो सके। धर्म के नाम पर यह एक बेहतरीन बिज़नेस मॉडल है। इसी का एक हिस्सा है, गाय की रक्षा के नाम पर गौरक्षकों का दल गठित कर उगाही का धंधा करना। इस व्यापार को चलते रहने के लिए यह माहौल भी कायम करना बेहद ज़रूरी हो जाता है।
यह स्थापित किया जाता है कि हिन्दू समाज गाय माता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। मरने-मारने तक जा सकता है। इसलिए बीच-बीच में लिंचिंग जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जाता है, ताकि यह डर कायम रहे और गौरक्षा का बिज़नेस मॉडल चलता रहे।
बिज़नेस मॉडल का केन्द्र बजरंग दल
इस पुरे बिज़नेस मॉडल के केंद्र में बजरंग दल सूत्रधार की भूमिका में हैं। इसका खुलासा वरिष्ठ पत्रकार निरंजन टाकले ने अपने एक स्टिंग ऑपरेशन में किया है। वह इसके ज़रिये बताते हैं कि बजरंग दल का एक पूरा नेटवर्क है, जो गौरक्षा के नाम पर जबरन वसूली में लगा हुआ है।
इसका पता लगाने के लिए वह करीब 3 महीने तक एक मुसलमान पशु व्यापारी रफीक कुरैशी के वेश में रहे। इस दौरान 30-32 दफा मवेशिओं से भरे ट्रक में सफर भी किया। बकायदा इसका हिस्सा बनकर राजस्थान और गुजरात के जानवर मंडी से मवेशियों को लाने ले जाने में शामिल रहे।
ट्रकों से अवैध वसूली
इस बीच उन्होंने यह देखा कि बजरंग दल ट्रकों को रोककर जबरन वसूली में लगा है। अगर गाय का ट्रक लेकर पार करना है, तो साढ़े चौदह हज़ार से पंद्रह हज़ार तक देना होता है। भैंस का ट्रक पार करने के लिए साढ़े छह हज़ार और पारों के लिए पांच हज़ार तक की रकम देनी पड़ती है।
इस सिलसिले में धंधा बढ़ाने को लेकर उनकी मुलाकात गुजरात में बजरंग दल के एक नेता चौधरी से होती है। चौधरी धंधा को लेकर मोल-भाव करने को तैयार हो जाते हैं लेकिन वह मवेशिओं से भरे ट्रक की ज़िम्मेदारी गुजरात बॉर्डर तक ही लेते हैं।
निरंजन टाकले से मोल भाव के बीच चौधरी ने कहा कि महाराष्ट्र में ट्रक ले जाने के लिए बजरंग दल के ही एक नेता बाबु भाई देशाई को अलग से पैसा देना होगा।
चौधरी ने यह भी बतया कि अमीरगढ़ चेक पोस्ट पर इस तरह की वसूली से रोज़ाना डेढ़ करोड मिलता है। इसके अलावा मवेशियों को मारने के बाद उनका चमरा अलग से जिसका बाहर निर्यात किया जाता है। इस बीच जो सबसे विभत्स बात सामने आती है, वो यह कि चौधरी जैसे बजरंग दल के नेता और उनके लोग उगाही को कायम रखने के लिए बीच-बीच में किसी को भी मार देते हैं, ताकि डर बना रहे और कारोबार चलता रहे।
वह निरंजन टाकले को भी सावधान करते हुए कहेते हैं, “किसी दूसरे नंबर की ट्रक में नहीं चढ़ जाना, नहीं तो किसी दिन तुम भी इसकी गिरफ्त में आ सकते हो।”
यहां देखे निरंजन टाकले का वीडियो-