कहा जाता है कि मानसिक विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति का शिक्षा ग्रहण करना अनिवार्य होता है, जिससे वह व्यक्ति अपने विकास के साथ-साथ देश के विकास में भी मुख्य भूमिका अदा कर सके।
अब सवाल उठता है कि क्या भारत की शिक्षा प्रणाली हमारे मानसिक विकास के लिए फिट बैठती है? क्या हमारे विश्वविद्यालय और विद्यालय स्टूडेंट्स के मानसिक विकास के मानकों पर खरा उतर रहे हैं? क्या यह स्टूडेंट्स को उस तरह से शिक्षित कर रहे हैं, जिसकी उन्हें आवश्यकता है? क्या स्टूडेंट्स आज की इस शिक्षा प्रणाली से खुश हैं? क्या आज के स्टूडेंट्स रोज़गार पाने के लिए पूर्णतया योग्य हैं?
हमारे देश का एक बड़ा हिस्सा रोज़गार योग्य नहीं
असर (ASER- Annual Status Of Education Report) की 2017 की रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश के स्टूडेंट्स का एक बहुत बड़ा हिस्सा रोज़गार योग्य नहीं है। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है कि अधिकतर स्टूडेंट्स के पास जॉब पाने के स्किल ही नहीं है। यह रिपोर्ट दर्शाती है कि हमारे देश में यूथ लिटरेसी यानि युवा साक्षरता भले ही 86.14% है, जो अपने आप में एक बड़ी बात है लेकिन उनमें से अधिकतर युवा अनस्किल्ड भी हैं।
हमारा देश यूं तो शिक्षा देने के मामले में हमेशा अग्रणी रहा है। यहां दिन-प्रतिदिन शिक्षा को बढ़ावा भी दिया जा रहा है, जिससे हमारे देश की साक्षरता अधिक-से-अधिक बढ़ जाए लेकिन यही देश आज स्टूडेंट्स की स्किल्स पर फोकस नहीं कर पा रहा है।
आज जब हमारे देश का कोई स्टूडेंट अपनी शिक्षा पूर्ण करता है तब वह अनस्किल्ड होने की वजह से रोज़गार प्राप्त नहीं कर पाता है। जिसके चलते देश में बेरोज़गारी की समस्या बढ़ती चली गई और चारों तरफ रोज़गार पाने के लिए लंबी-लंबी कतारें लगने लगी। इस देश का भविष्य तब और खतरे में देखा गया, जब पीएचडी धारकों को चपरासी या फिर सफाई कर्मचारी की नौकरी के लिए लंबी-लंबी लाइनों में लगना पड़ा।
एजुकेशन स्ट्रक्चर में कमी
हमारे देश की शिक्षा-प्रणाली में सबसे बड़ी खामी थ्योरी बेस्ड एजुकेशन है, जो स्टूडेंट्स को सिर्फ रटना सिखाती है, ना कि उनमें किसी स्किल का डेवलपमेंट कराती है। यही थ्योरी बेस्ड शिक्षा प्रणाली स्टूडेंट्स के अनस्किल्ड होने की ज़िम्मेदार भी है। यदि हमारी शिक्षा प्रणाली थ्योरी बेस्ड से बदलकर केस स्टडी या प्रैक्टिकल बेस्ड हो जाये तो हमारे स्टूडेंट्स को रटने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और ना ही वे अनस्किल्ड रहेंगे, बल्कि वे स्टूडेंट्स स्किल्ड बनकर उभरेंगे, जिससे उन्हें रोज़गार पाने वाली लाइन में खड़ा नहीं होना पड़ेगा। रोज़गार तो स्वयं उनके पास उसी स्किल की वजह से दौड़े चले आएंगे।
हमारा देश आज जिस तरह से अपनी संस्कृति भूलकर पाश्चात्य संस्कृति को अपनाता चला जा रहा उसी तरह से हमारे एजुकेशन सिस्टम को पाश्चात्य देशों की शिक्षा प्रणाली को अपनाना चाहिए। उनकी शिक्षा प्रणाली पूर्णतया केस स्टडी या फिर प्रैक्टिकल स्टडी पर आधारित है, जो स्टूडेंट्स को क्रिएटिव और इनोवेटिव बनाती है। जिससे स्टूडेंट्स की सोचने समझने की क्षमता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है।
आज हमारे देश में हर वर्ष इतने इंजीनियर पढ़कर तैयार होते हैं, जितने यूएस और चीन में मिलाकर नहीं होते। फिर भी ये देश आज तकनीकी के मामले में हमारे देश से मीलों आगे निकल चुके हैं। जिसका सिर्फ एक ही कारण है कि हमारे देश के इंजीनियरों के पास Well Filled Mind तो है लेकिन Well Formed Mind नहीं है जो सिर्फ और सिर्फ केस स्टडी या प्रैक्टिकल बेस्ड प्रणाली के माध्यम से ही आता है।
यह हमारे स्टूडेंट्स और देश के लिए बड़े दुर्भाग्य की बात है कि स्टूडेंट्स अपनी एजुकेशन के लिए इन कॉलेजों में एक मोटी रकम अदा करने के बावजूद भी अपनी स्किल को निखार नहीं पाते। कारण एक मात्र यही है कि ये कॉलेज वाले शिक्षा नहीं बांट रहे, बल्कि एक बिज़नेस चला रहे हैं, जिसमें ये संस्थान स्टूडेंट्स से एक मोटी रकम लेने के उपरांत भी वो शिक्षा प्रणाली या इक्विपमेंट नहीं ला सकते, जिससे स्टूडेंट्स का भविष्य चमक सके।