यूं तो हमारे देश में महिलाओं को एक समान दर्जा दिए जाने की बात की जाती है, जहां हर वर्ग की महिलाएं आगे बढ़ रही हैं। वहीं हमारे देश में महिलाओं का एक वर्ग ऐसा भी है, जहां आयु भी उनकी जाति पर निर्भर करती है। जी हां, ‘संयुक्त राष्ट्र’ की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि सवर्ण महिलाओं की तुलना में दलित महिलाएं औसतन 14.6 साल कम जीती हैं, जो पूर्णत: सत्य है।
रिपोर्ट में यह सामने आया है कि गरीबी, साफ-सफाई, पानी की कमी, कुपोषण, स्वास्थ्यगत समस्याओं की वजह से दलित महिलाएं कम जी पाती हैं। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, “भारत में दलित महिला की मौत औसतन ऊंची जाति की महिलाओं से 14.6 साल पहले हो जाती है।”
वहीं ‘टर्निंग प्रॉमिसेस इनटू एक्शन: जेंडर इक्वेलिटी इन 2030 एजेंडा’ के माध्यम से यह सामने आया है कि दलित महिलाओं की मौत औसतन 39.5 साल (यानी कि 40 साल से भी कम) की उम्र में ही हो जाती है, जबकि सवर्ण महिलाओं की मौत 54.1 साल (यानी कि 50 साल से ज़्यादा) में होती है।
अगर आप इस बात को और अच्छे से समझना चाहते हैं तो ऐसे समझिए कि उदाहरण के तौर पर हमारे देश में गरीब और ग्रामीण परिवार की लड़की जिसकी शादी 20 से 24 साल की उम्र में होनी चाहिए, वह 18 साल से पहले होने की संभावना रहती है। यह शहरी लड़कियों की तुलना में 5.1 गुना ज़्यादा होता है। यानी कि इसी तरह किसी ग्रामीण लड़की के स्कूल ना जाने की संभावना 21.8 गुना ज़्यादा होती है। इसके अलावा उसके किशोरावस्था में मां बनने का जोखिम भी बहुत ज़्यादा रहता है, जिसकी वजह से महिलाएं औसतन 39.5 साल तक जी पीता हैं।
हिन्दुस्तान में जातिगत भेदभाव का अंत कैसे हो?
हमारे देश में जातिगत भेदभाव अस्पृश्यता ने इस समाज का नुकसान किया है और समाज की यह स्थिति पीड़ादायक है। हमारा देश पुरुष प्रधान देश है, हालांकी अब देश थोड़ा बदल रहा है लेकिन फिर भी एक दलित महिला को तीन स्तर पर स्वास्थ्य की विपरीत परिस्थितियों से जूझना पड़ता है, जिसे खत्म करने की ज़रूरत है।
जैसे पहली स्थिति परिवार की आंतरिक स्थिति है, जहां पर दलित स्त्री पितृसत्ता के स्त्री के लिए निर्मित किये गए बंधनों में कैद रहती है। उनको इससे बाहर निकलाने की ज़रूरत है, तब ही वह अपने आपको समझ पाएगी और अपने लिए कुछ सोच पाएगी।
दूसरी स्थिति समुदाय की है, जहां पर वह श्रम करने जाती है, वहां की पूरी व्यवस्था जाति व्यवस्था आधारित होने के कारण वह किसी प्रकार के स्वास्थ्य अधिकार का दावा कर ही नहीं सकती, जिसके चलते वह अपने अंदर पनप रही बीमारियों को उजागर होकर नहीं बता सकती और स्वास्थ्य अधिकार को पूर्णत: प्राप्त नहीं कर पाती और उसी स्थिति में दम तोड़ देती है।
आखिर में तीसरी स्थिति एक लोकतांत्रिक राज्य द्वारा उपलब्ध कराई गई स्वास्थ्य सेवाओं की है, जहां पर इन दोनों स्थितियों की बुराइयां तो उपस्थित हैं ही, साथ ही पूंजीवादी के तमाम अमानवीयता और असमानतापूर्ण व्यवहार भी स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं, जिसके चलते उनको स्वास्थ्य अधिकार नहीं मिल पाता और ना ही उनको यह पता चल पाता है आखिर उनको हुआ क्या है। इन सबमें बदलाव की अत्यंत आवश्यकता है।
घरेलू कामगार दलित महिलाओं के साथ हो रहे सामाजिक और आर्थिक भेदभाव को कम करने के तरीके
- इसको लेकर समाज को अपनी मानसिकता को भी बदलने के ज़रूरत है, साथ ही महिलाओं के प्रति जागरूकता दिखाने की बहेद ज़रूरत है।
- घर संभालने वाली महिलाओं को आज भी उनके काम के लिए ना कोई सम्मान मिलता है और ना ही कोई वेतन। उनके काम को उनकी और सिर्फ उनकी ज़िम्मेदारी और कर्तव्य बताया जाता है और कभी भी महिलाओं को मज़दूर का दर्जा नहीं मिलता है।
- इसके अलावा जो महिलाएं घर में रहती हैं और घर का कामकाज करती हैं अक्सर उनको कामकाजी महिलाओं की श्रेणी से बाहर रखा जाता है लेकिन असल में वो महिला भी काम कर रही है, बस उसका वेतन उसे नहीं मिलता। आज-कल महिलाएं हर क्षेत्र में काम करने के लिए आगे आ रही हैं और बहुत सी महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र भी हैं।
पर क्या उनकी आर्थिक आज़ादी उन्हें सही मायने में आज़ाद कर पा रही हैं। इसके साथ बीते कुछ सालों में महिलाएं गैर-पारंपरिक आजीविका के क्षेत्रों में भी जुड़ने लगी हैं लेकिन नहीं सामज उनको उस हद तक कभी नहीं स्वीकारेगा, जिसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।
भारत में दलित महिलाओं के विकास के लिए पांच ज़रूरी सुझाव
- पहला तो यह कि हर महिला की तरह दलित महिलाओं को भी शिक्षा का पूर्ण अधिकार मिले और शिक्षा के लिए उनको जागरूक किया जाए।
- दूसरा यह कि उनको उनके स्वास्थ्य अधिकार के लिए जागरूक किया जाना चाहिए।
- तीसरी यह कि उनको रोज़गार का बराबर का अधिकार प्राप्त होना चाहिए, उनके उसी आत्मस्वाभिमान के लिए।
- चौथा यह कि दलित महिलाओं को कम उम्र में शादी जैसी ज़िम्मेदारियों के बार में जागरूक होना होगा।
- इन महिलाओं को यह समझना होगा कि छोटी उम्र में शादी और मां बनना उनके स्वास्थ के लिए कितनी परेशानी का सबब बन सकता है।