शिक्षा किसी भी समाज का वह आधार है जिसपर पूरा समाज खड़ा होता है। यदि कोई अभिभावक अपने बच्चों के लिए कोई सपना देखता है, तो वह सपना शिक्षा से ही जुड़ा होता है।
अभिभावक के इस सपने को साकार करने में शिक्षक की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अभिभावकों और शिक्षकों में एक सम्बन्ध स्थापित होता है, जो उनसे जुड़े बच्चों के भविष्य को तय करता है।
दिल्ली में सरकारी स्कूल के हालात बहुत लंबे समय से सोचनीय दशा में रहे हैं। दिल्ली सरकार के विभिन्न प्रयासों में कुछ हद तक इनमें सुधार करने में कामयाबी मिली है लेकिन हाल ही में गेस्ट टीचरों के स्थाई करनने की मांग ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
इंडियन एक्सप्रेस अखबार की एक खबर के अनुसार दिल्ली में बतौर गेस्ट टीचर काम करने वाले अध्यापकों में से 77 % लोग ‘दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड’ की परीक्षा का न्यूनतम स्तर भी हासिल नही कर पाए, जबकि अंतिम परिणाम आना अभी बाकी है। यह आंकड़ा तब और कम हो जाएगा।
ऐसे में सरकार और गेस्ट टीचर संगठनों में कसा-कसी बढ़ी, जिससे दिल्ली के शिक्षा मंत्री ने उन अध्यापकों को स्थाई करने का अपना पुराना वादा दोहरा दिया।
इस विवाद को अलग-अलग दृष्टीकोणों से समझा जा सकता है। सरकार क्या चाहती है? गेस्ट टीचर स्थाई होना चाहते हैं। जो लोग परीक्षा की तैयारी कर रहे थे और आवेदनों की प्रतीक्षा कर रहे थे, वे इस विचार के खिलाफ हो सकते हैं। विद्यार्थी वर्ग को ऐसे विवाद से अछूता समझा जाता है (जबकि ऐसा है नहीं) और विपक्ष राजनीति की हवा के अनुरूप चलता है।
इन सबसे अलग महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण ‘अभिभावक वर्ग’ हैं। इस मुद्दे पर उनका क्या नज़रिया है? उनकी क्या चिंताएं हैं? चिंताएं हैं भी या नहीं? उनके क्या सवाल हो सकते हैं? यह फैसला उनके घर-परिवार और बच्चों से कैसे जुड़ा है? उनकी राय क्या हो सकती है? ऐसे सवालों की पड़ताल करना इस लेख का उद्देश्य है।
अभिभावकों की राय जानना ज़रूरी
हर अभिभावक यही चाहते हैं कि उनका बच्चा अच्छी शिक्षा पाकर, उनसे बेहतर जीवन व्यतीत करे और उसे हर वह सफलता मिले, जो वह चाहता है। ऐसे में अभिभावक स्कूल, ट्यूशन, कॉपी-किताब, फीस और हर छोटी से छोटी ज़रूरतों का ख्याल रखते हैं, जो उनके बच्चों की शिक्षा के लिए आवश्यक है।
ऐसे में संभव है कि वे अपने बच्चों के अध्यापक के लिए भी एक स्पष्ट नज़रिया रखते होगें लेकिन क्या उन्हें यह ख्याल भयभीत नहीं करेगा, जब उन्हे पता चलेगा कि वे अध्यापक जो उनके बच्चे को पढ़ा रहा हैं, वे स्वयं इतनी योग्यता नहीं रखते जो परीक्षा के न्यूनतम अंक प्राप्त कर सके।
शिक्षकों को वक्त के साथ अपडेट होना पड़ेगा
जिस खबर का ज़िक्र ऊपर किया गया है, उसके अनुसार पी.जी.टी गणित के लिए कार्यरत 135 गेस्ट टीचरों ने आवेदन किया था, जिनमें से एक भी टीचर परीक्षा के लिए न्यूनतम अहर्ता अंक नहीं पा सके। ये अध्यापक हमारे बच्चों को गणित पढ़ाते हैं, जिसे हर अभिभावक बाकी विषयों से अधिक महत्वपूर्ण समझते हैं।
बेशक ऐसे परेशान करने वाले सवाल अभिभावकों तक अवश्य ही पहुंचते होंगे लेकिन उनकी शायद ही कोई सुने। अब सवाल यह भी उठता है कि अगर ये अध्यापक परीक्षा उत्तीर्ण ही नहीं कर पा रहें तो ये बच्चों को पढ़ा कैसे रहे हैं? इसका दोष उस प्रणाली में है, जिसके आधार पर इन्हें नौकरी दी जाती है।
अंक ही पैमाना क्यों?
केवल अंकों को आधार बना कर अध्यापक नियुक्त करना इस प्रणाली का सबसे बड़ा दोष है। अब दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड के विभिन्न पदों के परिणामों ने इन अध्यापकों की नींद उड़ा दी है। नौकरी चले जाने का डर इन्हें सता रहा है। उससे बड़ा डर यह है कि इतनी आसानी से और बिना मेहनत के दोबारा नौकरी मिल पाने अवसर फिर ना मिले।
अध्यापकों और अभिभावकों के बीच तालमेल बनाने की ज़रूरत
हम उसी सवाल का जवाब ढूंढने का प्रयत्न करते हैं जो अभिभावक वर्ग से जुड़ा है। दरअसल, अभिभावकों को बच्चों की शिक्षा से अलग रखने के अलग-अलग कारण रहे हैं। कुछ ऐसे हैं कि अभिभावक स्वयं नहीं जुड़ पाते, मसलन नौकरी-पेशा, व्यस्तता और जागरूकता ना होना आदि इसके अलग कुछ ऐसे कारण भी हैं, जो अभिभावक को दूर कर कर देते हैं।
इसमें कुछ हद तक बच्चे भी शामिल हैं जो स्वयं उन्हें स्कूल से नहीं जोड़ना चाहते हैं। अध्यापक जो उनसे मिलना नहीं चाहते, नीतियां जो अध्यापक-अभिभावक को आपस में मिलने के कारणों को खत्म कर देती हैं।
इससे यह समझ लेना कि अभिभावक वर्ग स्कूल के मुद्दों और चिंताओं से परिचित नहीं हैं, एक बड़ी भूल हो सकती है। हां, यह भी सच है कि उनका एक प्रतिनिधित्व नहीं है या उनसे पूछा नहीं जाता है।
मेरा मानना है कि अभिभावकों को भी इस सन्दर्भ में सरकार तक अपना पक्ष पहुंचाना चाहिए और अपनी चिंताओं के प्रति उन्हें सचेत करना चाहिए।
बेशक, अभिभावक अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। हमें याद होगा कि हमारे माता-पिता भी हमसे हमारे अध्यापकों से जुड़े हर सवाल पूछते थे। वे अध्यापकों का आंकलन रोज़ करते हैं।