मध्यप्रदेश में काँग्रेस सरकार द्वारा नामदेव त्यागी उर्फ कंप्यूटर बाबा की नियुक्ति ‘नर्मदा, क्षिप्रा एवं मंदाकिनी नदी न्यास’ अध्यक्ष के तौर पर हुई है। नामदेव को शिवराज सिंह चौहान की नेत्रृत्व वाली बीजेपी सरकार में भी राज्यमंत्री का दर्ज़ा प्राप्त था।
गौरतलब है मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार के दौरान कंप्यूटर बाबा समेत अन्य पांच संतों को राज्यमंत्री का दर्ज़ा दिए जाने पर काँग्रेस ने घोर आपत्ति जताई थी। हालांकि अब लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कमलनाथ सरकार का यह फैसला उनकी कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़े करते हैं।
आपको बता दें कमलनाथ सरकार द्वारा गठित आध्यात्मिक विभाग द्वारा 10 मार्च को यह आदेश सार्वजनिक किया गया।
साल 2018 के अक्टूबर महीने में शिवराज सिंह चौहान की सरकार के दौरान कंप्यूटर बाबा ने अपने पद से इस्तीफा देते हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ काफी प्रचार किया था। बाबा ने बुधनी विधानसभा क्षेत्र में खासतौर पर शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ प्रचार किया था।
कंप्यूटर बाबा ने शिवराज सिंह चौहान पर यह आरोप लगाते हुए इस्तीफा दिया था कि शिवराज सरकार ने नर्मदा को स्वच्छ रखने और अवैध खनन रोकने की दिशा में संतों से किए वादे को नहीं निभाया।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि भाजपा पर लगातार हमला बोलने वाली काँग्रेस की सरकार ने किस रणनीति के तहत लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कंप्यूटर बाबा को नर्मदा, क्षिप्रा एवं मंदाकिनी नदी न्यास’ के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त किया।
क्या काँग्रेस को भी अब यह अंदाज़ा हो चुका है कि हिन्दू वोट बैंक को साधना है, तो जनेऊ, मंदिर-मस्जिद और गंगा के नाम की सियासत करनी होगी।
सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि रविवार को लोकसभा चुनाव आचार संहिता लागू होने से कुछ ही घंटों पहले कमलनाथ सरकार द्वारा यह बड़ा फैसला लिया गया।
सत्ता के बेहद करीब रहना चाहते हैं कंप्यूटर बाबा
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ वह तब भी मुहिम शुरू करने वाले थे, जब उन्हें मंत्री का दर्ज़ा नहीं दिया गया था। उन्होंने शिवराज सिंह चौहान सरकार द्वारा मंत्री बनाए जाने से पहले नर्मदा नदी में हो रहे अवैध खनन का ममला काफी उछाला था लेकिन जैसे ही उन्हें सरकार ने मंत्री का दर्ज़ा दे दिया, वह शांत हो गए।
कंप्यूटर बाबा को मंत्री पद देने के पीछे बताया जा रहा है यह काँग्रेस की सॉफ्ट हिन्दुत्व वाली रणनीति है। अब यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि काँग्रेस द्वारा चुनाव से ठीक पहले कंप्यूटर बाबा को अहम मंत्रीपद देने के क्या फल मिलते हैं।