वित्त मंत्री पीयूष गोयल का बजट भाषण इतना प्रभावशाली था कि विपक्ष तो हतप्रभ सा लग रहा था। वह भाषण नरेंद्र मोदी के पिछले पांच वर्षों के सारे भाषणों के मुकाबले भी भारी पड़ रहा था।
मुझे याद नहीं पड़ता कि किसी बजट-भाषण ने लोकसभा में ऐसा चमत्कारी माहौल पैदा किया, जैसा कि पीयूष गोयल के भाषण ने किया। मुझे आश्चर्य यह है कि रोज़गार के बारे में वित्त मंत्री ने कोई ज़िक्र तक नहीं किया।
बेरोज़गारी आसमान पर
यदि नोटबंदी और जीएसटी से सरकार की आमदनी कई लाख करोड़ रुपए बढ़ गई है तब यह समझ नहीं आता कि देश में बेकारी क्यों बढ़ती जा रही है। ‘नैश्नल सैंपल सर्वे ऑफिस’ की ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि इस समय देश में जैसी बेकारी फैली हुई है, वैसी पिछले 45 सालों में कभी नहीं फैली।
चपरासी की दर्ज़नभर नौकरियों के लिए लाखों अर्ज़ियां क्यों आ जाती हैं? अर्ज़ियां देने वालों में कई लोग बीए और एमए डिग्रीधारी भी होते हैं। क्या यह हमारे लिए शर्म की बात नहीं है? मेरा मतलब यह नहीं है कि चपरासी की नौकरी खराब होती है लेकिन एमए और बीए की डिग्री लेकर अगर लोगों को मन मुताबिक काम ना मिले, फिर तो शिक्षा व्यर्थ ही है।
या तो मोदी या अराजकता ?
बेरोज़गारी के आंकड़े एक अंग्रेज़ी अखबार में क्या छपे कि सरकार में कोहराम मच गया। नीति आयोग ने कहा कि इन आंकड़ों वाली रिपोर्ट को सरकार ने प्रमाणित नहीं किया है। इस पर ‘नैश्नल सैंपल सर्वे ऑफिस’ के दो गैर-सरकारी सदस्यों ने अपने इस्तीफे दे दिए हैं।
सदस्यों के मुताबिक आयोग की रिपोर्ट अपने आप में प्रामाणिक मानी जाती है। उस पर सरकारी ठप्पे की कभी ज़रूरत नहीं पड़ती है। यह काफी गंभीर मामला है।
इसके कारण यह भी शक पैदा होता है कि सरकार ने अभी तक जीडीपी (सकल उत्पाद) आदि के बारे में जो भी आंकड़े पेश किए हैं और पीयूष गोयल ने अपने बजट-भाषण में अर्थव्यवस्था का जो रंगीन चित्र दिखाया है, वह भी कहीं फर्ज़ी आंकड़ों पर तो आधारित नहीं है? इन आंकड़ों को लेकर मोदी को काँग्रेस ‘हिटलर’ कह रही है तो राहुल को भाजपा ‘मुसोलिनी’ बता रही है।
‘काणी के ब्याह में सौ-सौ जोखिम’
हिटलर और मुसोलिनी, दोनों यह सुनकर नरक में अपना माथा कूट रहे होंगे लेकिन कोई दल या नेता यह नहीं बता पा रहा है कि तमाम बेरोज़गार नौजवान क्या करें, कहां जाएं, अपना पेट कैसे भरें?
देश की दोनों प्रमुख पार्टियां और उनके नेता किसानों, नौजवानों, महिलाओं और करदाताओं को तरह-तरह की चूसनियां (लॉलीपॉप) पकड़ा रहे हैं ताकि उनसे अपने वोट पटा सकें। विचारधारा, सिद्धांत और नीति का स्थान जुमलों ने ले लिया है।