पिछले दिनों आदित्य धर द्वारा निर्देशित एक फिल्म आई “उरी”। फिल्म में बतौर मुख्य अभिनेता थे विक्की कौशल। फिल्म की कहानी तथाकथित रूप से भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान पर किए गए “सर्जिकल स्ट्राइक” पर आधारित है। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर खूब चली। 100 करोड़ का आंकड़ा भी पार किया। सभी लोगों ने फिल्म की सराहना की, स्वयं प्रधानमंत्री महोदय ने एक कार्यक्रम के दौरान फिल्म का एक डायलॉग बोला, “हाउ इज़ द जोश?” जवाब आया- “हाई सर”।
क्या कभी हमारे प्रधानमंत्री ने सेना के जवानों से पूछा, हाउ इज़ द जोश?
अब बात करते हैं, तेज बहादुर यादव की। आपको याद होगा 2017 में बीएसएफ का एक जवान खूब चर्चा में आया था। वजह थी खाने में शिकायत को लेकर फेसबुक पर डाला गया उस जवान का एक वीडियो। पूरे देश ने इस वीडियो को लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दी पर केंद्र सरकार चुप्पी साधे रही, यह वही तेज बहादुर यादव हैं। बाद में इन्हें फौज से निकल दिया गया।
हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री महोदय ने फौजियों के साथ दिवाली तो खूब मनाई पर जब पूछने की बारी आई, हाउ इज़ द जोश? तो उन्होंने यह सवाल पूछा फिल्मी कलाकारों से। क्या कभी हमारे प्रधानमंत्री ने सेना के जवानों से पूछा, हाउ इज़ द जोश?
भारतीय सेना पर हर एक नागरिक को गर्व है पर जब कोई राजनैतिक पार्टी इस गर्व को भुनाने की कोशिश करती है तो बेहद अफसोस होता है। हमने बॉलीवुड के ज़रिये सेना के हर पहलू को देखा है सिवाय उस पहलू के जो तेज बहादुर यादव ने अपने वीडियो में दिखाया।
जनता के रूप में हमें भी यही देखना पसंद है कि हमारे सैनिकों ने कहां सर्जिकल स्ट्राइक किया, या कहां झंडा लहराया। हमें यह कतई गवारा नहीं है कि कोई हमारी सेना के बारे में बुरा बोले, फिर चाहे वह खुद एक सैनिक क्यों ना हो और वह सेना के हालात के बारे में ही क्यों ना बता रहा हो?
हमारे सालाना बजट का एक बड़ा हिस्सा सुरक्षा बलों को जाता है, फिर भी हमारे जवानों को दो वक्त की रोटी भी सही से नसीब नहीं है। एक नया ट्रेंड निकला है कि अगर कोई अपनी परेशानी बता रहा है तो एक ही जवाब मिलता है कि हमारे जवान सियाचिन में खड़े हैं और इसके बाद आपके सारे तर्क-वितर्क विफल हो जाते हैं। अगली बार ऐसे लोग मिलें तो उनसे कहियेगा, “हां, मुझे पता है कि सियाचिन में हमारे जवान खड़े हैं पर मुझे यह भी पता है कि वह जवान तेज बहादुर यादव है, विक्की कौशल नहीं।”
सेना की उपलब्धियों का चुनावी फायदा उठा रही है सरकार
इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमारे सैनिकों ने हमारी सुरक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी पर इसका सारा श्रेय भी उन्हीं को जाना चाहिए ना कि किसी सरकार को। जब श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी तब भी सेना ने पाकिस्तान के बंटवारे जैसा बड़ा कारनामा कर दिखाया था परंतु तब या उसके बाद भी कॉंग्रेस ने कभी सेना की उपलब्धियों का श्रेय लेते हुए चुनावी फायदा नहीं उठाया।
ऐसा पहली बार हुआ है जब सेना की किसी ऐसी कार्यवाई का राजनैतिक लाभ लेने की कोशिश की जा रही है। यहां तक कि विश्वविद्यालयों में भी सर्जिकल स्ट्राइक की वर्षगांठ मनाने का आदेश मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा दिया गया। इसमें भी फण्ड दिया गया और हर फण्ड की तरह इस फण्ड का भी सर्वसम्मति से नियमतः बंटवारा करके जेबे भरी गईं।
अगर इतना फण्ड यहां-वहां देने के बजाय सैनिक सहायता कोष या सेना के किसी मद में दिया जाता तो शायद बेहतर होता। उसके बाद कई स्कूलों में बच्चों को ज़बरदस्ती “उरी” देखने बोला गया। टिकट के दाम भी बच्चों ने ही उठाए। फिलहाल यह लेख लिखे जाने तक “उरी” 100 करोड़ से ज़्यादा का बिजनेस कर चुकी है, फायदा सबका है, बॉलीवुड का क्योंकि फिल्म पैसे कमा रही है, सरकार का भी क्योंकि सरकार श्रेय ले जा रही है और आने वाले चुनाव में इसका पूरा लाभ उठाया जा सकता है।
पर यह ज़रूर सोचिये कि इससे सेना का क्या फायदा? इससे तेज बहादुर यादव जैसे जवानों का क्या फायदा? याद रहे, यदि सरकार सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय लेती है तो उसे पठानकोट हमले का भी दोष अपने सर लेना होगा।