क्यों पढ़ना इतना मत्वपूर्ण है? हर कोई जानता है कि पढ़ना महत्वपूर्ण है लेकिन क्या आपने कभी खुद से पूछा है कि ऐसा क्यों है? मुझे आशा है कि आपको वास्तव में यह जानने में मदद मिलेगी कि पढ़ना बच्चों के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है।
बच्चे गाये बिना गाना नहीं सीख सकते, लिखे बिना लिखना नहीं सीख सकते और पढ़े बिना पढ़ना नहीं सीख सकते हैं। अर्थात कोई भी कौशालात्मक कार्य बिना किए नहीं सीखा जा सकता है लेकिन किसी भी कार्य को करने के लिए लगन का होना बेहद ज़रूरी है।
गुजरात में सूरत ज़िला अंतर्गत आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र उमरपाड़ा के पास एक छोटा सा गाँव है जिसका नाम डोंगरीपाड़ा है। गाँव के प्राथमिक विद्यालय में अपने दैनिक कार्य के सिलसिले से सीआरसी को-ऑर्डिनेटर (संकुल संसाधन केंद्र समन्वयक) दिलीप भाई गामित के साथ कक्षा निरीक्षण करने पहुंचा।
संदीप ने जीत लिया दिल
इस दौरान तृतीय कक्षा में एक बच्चे पर नज़र पड़ी जिसका नाम संदीप है, जो अन्य बच्चों के मुकाबले थोड़ा शांत दिख रहा था। मैं थोड़े ध्यान से उसे देखा तो वह पाठ्यक्रम की पुस्तक लेकर पढ़ने की कोशिश कर रहा था।
शिक्षिका से बात करने पर पता चला कि यह स्लो लर्नर है जो सुनता थोड़ा कम है, जिसे बोलने में भी थोड़ी परेशानी है। यह बातें सुनकर मैंने उसे पुस्तक (जो पुस्तक उसके पास पहले से मौजूद था) पढ़ाने का प्रयास किया एवं उसके बाद शिक्षिका से चित्रयुक्त रंगीन पुस्तक मांगी।
शिक्षिका ने एक पुस्तक दी, जो काफी प्यारा दिख रहा था। उक्त पुस्तक में कंधे पर हल (खेत जुताई का उपकरण) लिए आदमी (किसान) के चित्र को देखाते हुए मैंने उससे पछा, “सु छे” (क्या है)। इसके जवाब में वह बोलता है कि खेतुड़ छे खेत जुताई माटे जवा छे (किसान है खेत जुताई के लिए जा रहा है)।
इस तरह सुमित ने मेरे द्वारा पूछे गए हर एक चित्र का अधिकांश सही जवाब दिया। इसी के साथ एक अजीब बात मेरे ह्रदय को स्पर्श कर गई वो यह कि वह हर चित्र का अपने अनुसार सही उत्तर और उसका व्याख्या अपने रोज़मर्रा के जीवन से कर रहा था।
यहां यह समझ आता है कि बच्चे चित्रों को देखकर कोई अर्थ बना रहे हैं और उन पर आपस में बात भी कर रहें हैं जो कि चित्रों को देखकर उनके मन में आ रहे विचारों की अभिव्यक्ति है।
बच्चों में पढ़ने की प्रवृति ऐसे विकसित करनी होगी
पढना भी एक कौशल है मगर पढ़ने की ज़रूरत कैसे महसूस हो व बच्चों में पढ़ने की प्रवृत्ति विकसित करने में कौन सी चीज़ें मदद करती हैं, इन चीज़ों को भी समझने की ज़रूरत है। इन अर्थों में देखा जाए तो चित्रों पर बात करना और प्रतिक्रया देना यानि चित्रों को पढ़ना ही पढ़ने का प्राथमिक चरण होता है।
उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रख कर मैं अभिमन्यु कुमार (गाँधी फेलो), अल्पेश भाई (बीआरसी कोऑर्डिनेटर उमरपाड़ा), उमरदा (सीआरसी को-ऑर्डिनेटर), दिलीप भाई एवं संदीप भाई (सीआरसी को-ऑर्डिनेटर, वड़पाड़ा) के साथ मिलकर प्रखंड के चार स्कूलों में पुस्तकालय स्थापित किया।
इसमें प्रमुखता से चित्रयुक्त और रंगीन पुस्तकों को रखा गया जो कक्षा 2 से 8 के बच्चों के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान सुनिश्चित कर सके। इसके अलावा अन्य 8 स्कूलों में वैसे ही पुस्तकालय स्थापित करने हेतु प्रयासरत हैं। इस कार्य मे ‘प्रथम बुक्स’ के डोनेट-ए-बुक्स प्लेटफार्म का बहुत ही उल्लेखनीय योगदान रहा है।
इन सबके बीच निष्कर्ष यह निकलता है कि इसी तरह हर एक बच्चे को प्यार और ध्यान दिया जाना चाहिए। उनकी दिलचस्पी को विकास का माध्यम बनाया जाए जिससे वे जल्द सीखना शुरू कर दें। उन्हें अपने जीवन में बहुत जल्दी अपने कार्यों के लिए ज़िम्मेदार महसूस ना कराएं। अपनी गलतियों को स्वीकार करें और बाद में व्याख्या करने और सही करने के लिए सौम्य प्रयास करें।