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“क्या शिक्षा और खेती जैसे मसलों पर काम करने से खत्म होगी गरीबी?”

किसानों की प्रतीकात्मक तस्वीर

किसानों की प्रतीकात्मक तस्वीर

जब हम दुनिया के अमीर और ताकतवर देशों के आर्थिक इतिहास पर गहराई से नज़र डालेंगे, तब वहां तीन मूल ताकतों का समन्वय देखेंगे जो आर्थिक विकास को गति देने में कामयाब रहे हैं।

इन देशों को अपना विशाल अतिरिक्त भंडार तैयार करने के लिए खेत, ज़मीन, मज़दूर, वित्तीय बचत, व्यापार, तकनीक और उद्यमिता को मिलाकर जो ताकत बढ़ी, उसे कुशलता से देश के बुनियादी ढांचे में इस्तेमाल किया गया।

जो भी देश अपनी ताकतों का गलत इस्तेमाल करते हैं, वे हमेशा तकलीफ में रहते हैं। अंत में यह ज़रूरी है कि उस देश की सरकार और संस्कृति अपने गुणी नागरिकों और संपदाओं को आगे बढ़ने और सफल होने का पर्याप्त मौका दें।

फोटो साभार: pixabay

इनमें वैज्ञानिक, उद्यमी, फैक्ट्री में काम करने वाले मज़दूर और बुद्धिजीवी सभी शामिल हैं। कोई भी देश जो अपनी इन ताकतों या संपदाओं का उपयोग करने के साथ-साथ उन्हें खुला वातावरण देते हैं, वे ना सिर्फ अपने यहां से गरीबी को खत्म करते हैं बल्कि मुल्क को समृद्ध भी बनते हैं।

बदकिस्मती से हमारे पास जो अतिरिक्त आर्थिक संपदा या ताकत रही है, उनका दुरुपयोग किया गया है। हम इसलिए गरीब हैं क्योंकि हमारे राजनीतिक आकाओं ने उपर्युक्त बातों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ किया है।

भारत गरीबी के दुष्‍चक्र से कैसे बाहर आ सकता है?

यह वो तरीका है जिसके ज़रिए हम अपनी प्रतिभाओं और संपदाओं का इस्तेमाल कर एक विशाल अतिरिक्त संसाधन बना सकते हैं। देश के उत्तर-पश्चिम इलाके के किसानों ने पहले से ही गेहूं, चावल, रुई और अन्य फसलों का सरप्लस भंडार तैयार कर लिया है।

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हमें इसी हरित क्रांति को देश के पूर्वी इलाकों में ले जाने की ज़रूरत है। इसके लिए ज़रूरी है कि हम कृषि क्षेत्र की आधारभूत संरचनाओं, खेती, कोल्ड चेन और पानी के संरक्षण पर खुलकर निवेश करें और इन्हें बेहतर बनाएं।

किसानों के लिए सोचना होगा

हमें अपने किसानों को खेत में उगे फसलों को देश के विभिन्न कोने में लाने और ले जाने की आज़ादी देनी चाहिए। हमें बीज की नई तकनीक को खूब बढ़ावा देना चाहिए और उसमें पैसा भी लगाना चाहिए।

हमें अपने किसानों को स्थानीय सिंचाई व्यवस्था को चलाने के लिए आत्मनिर्भर करना चाहिए। हमें ‘फूड सिक्योरिटी कानून’ से मिली सीख का इस्तेमाल कर किसानी से जुड़ी चीजों को ना सिर्फ बेहतर करनी चाहिए, बल्कि इससे असली गरीबों के लिए एक सुरक्षित सिस्‍टम बनाना चाहिए।

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इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जो सब्सिडी सरकार देती है, वे गलत हाथों में ना जाएं। इन सबके इस्तेमाल से हम जल्द ही अपने किसानों के हाथों में एक बहुत बड़ी आर्थिक संपदा दे पाएंगे, जो उन्हें समृद्ध करेगा।

यह बहुत ज़रूरी है कि हम सरप्लस ज़मीन भी पैदा करें जिसे हमारे औद्योगिक और संरचनात्मक क्षेत्रों को दिया जा सके। इसकी शुरुआत हमें सरकार के पास मौजूद सभी अतिरिक्त या सरप्लस ज़मीनों को मुक्त करके कर सकते हैं।

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उसके बाद इन्हीं ज़मीनों पर बड़े निवेश का स्वागत कर सकते हैं। इसका तुरंत फायदा यह होगा कि बड़े स्तर पर किए जाने वाले औद्योगिक विकास और बुनियादी ढांचे से जुड़े काम के दौरान जो बाधा आ रही है, वो तुंरत खत्म हो जाएगी।

इसके अलावा मौजूदा ज़मीन अधिग्रहण कानून में भी बदलाव लाने की ज़रूरत है जिससे किसानों के अधिकारों की रक्षा की जा सके। इसके साथ-साथ यह भी ध्यान रखने की ज़रूरत है कि उद्योग और इन्‍फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को भी इसमें होने वाली देरी के कारण नुकसान ना उठाना पड़े।

गरीब नागरिकों की मदद कैश के ज़रिए

हमें अपने अप्रेंटिसशिप कानून में बदलाव लाने की सख्‍त ज़रूरत है। इसमें बड़े पैमाने पर उद्योगों को शामिल कर प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार लाना चाहिए। हमें लेबर कानून से जुड़े सभी अधिकारों को राज्य सरकारों को सौंप देना चाहिए, जिससे वे अपनी ज़रूरतों के मुताबिक इन कानून में बदलाव ला सकें।

प्रतीकात्मक तस्वीर।

हमें निवेश के लिए तैयार वित्तीय सरप्लस को बढ़ाने के लिए भी कोशिश करनी चाहिए। हमें बेवजह दी जाने वाली सरकारी सब्सिडी को तुरंत बंद करना चाहिए। साथ ही जो सच में गरीब हैं, उनके अकाउंट में सीधा कैश ट्रांसफर करना चाहिए।

जो लोग आर्थिक तौर पर मज़बूत हैं, उन्हें किसी भी तरह की आर्थिक छूट नहीं दी जानी चाहिए। हमें ऊर्जा से जुड़ी सभी सेवाओं की कीमत फ्री-मार्केट के अनुसार छोड़ देना चाहिए और गरीब नागरिकों की मदद सीधा कैश के ज़रिए करनी चाहिए।

ठप पड़े सरकारी विभागों को प्राइवेट हाथों में देना होगा

हमें गैरज़रूरी सरकारी यूनिट को प्राइवेट हाथों में सौंप देना चाहिए या फिर उन्हें पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत पेशेवर संस्थानों को दे देना चाहिए। इतना भर करने से हम कई खरब डॉलर जितना पैसा कमा सकते हैं। अंत में हमें सभी गैरज़रूरी कायदे-कानून और बाधाओं को दूर कर एक बेहद ज़रूरी उद्यमी सरप्लस बनाना होगा।

फास्ट ट्रैक कानून

सभी तरह के वैधानिक या कानूनी आदेश एक समय सीमा के भीतर पूरे होने चाहिए। सभी सरकारी कार्रवाईयों को ई-गवर्नेंस के दायरे में रखना चाहिए। जहां भी मुमकिन हो, हमें कड़ी निगरानी और अनुपालन के तहत सेल्फ-सर्टिफिकेशन, वॉलंटरी डिस्क्लोज़र और ऑटोमैटिक अनुमोदन की तरफ बढ़ना चाहिए।

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मुझे पूरा यकीन है कि इन कदमों से हम कम-से-कम 1.5 से 2 खरब तक निवेशीय संपत्ति का निर्माण अगले कुछ सालों में कर सकते हैं। इसका इस्तेमाल हम भारत को बदलने में कर सकते हैं।

इन क्षेत्रों में काम करने की ज़रूरत

अपने आपको वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर के तौर पर विकसित करने के लिए रेलवे, बंदरगाहों, बिजली उत्पादन और ट्रांसमिशन, सड़क, टेलीकॉम, विमान सेवा, वित्तीय केंद्रों और नए शहर आदि क्षेत्रों में काम करना चाहिए।

शिक्षा पर बजट बढ़ाने की ज़रूरत

शिक्षा पर किए जाने वाले जीडीपी के खर्च को हो सके तो दोगुना या उससे  ज़्यादा बढ़ा दें। सरकार को बेसिक शिक्षा की अगुवाई करनी चाहिए लेकिन उच्च शिक्षा के क्षेत्र में ज़्यादा से ज़्यादा निजी और विदेशी निवेश को पब्लिक-प्राइवेट इंटरप्राइज़ के तहत आगे लाना चाहिए।

चिकित्सा में सुधार

हेल्थ सेक्टर में भी सरकारी जीडीपी निवेश को 2 से 3 गुणा तक बढ़ा देना चाहिए। यहां भी ग्रामीण और प्राथमिक चिकित्सा और सैनिटेशन की दिशा में सरकार को अगुवाई करनी चाहिए। विशिष्ट स्वास्थ्य सेवा के लिए निजी और विदेशी फंड को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप या कानून के तहत बढ़ावा देना चाहिए।

तकनीक की मदद

अंत में हमें अपने इस अतिरिक्त संसाधनों का इस्तेमाल अपनी गवर्नेंस इंफ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाने में करना चाहिए। पुलिस स्टेशन और अदालतों को आधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस किया जाना चाहिए। उनकी क्षमताओं को बढ़ाना चाहिए।

पारदर्शिता बढ़ाने के लिए सीसीटीवी और ऑटोमैटिक कॉल प्रोसेस रिकॉर्डिंग जैसे साधनों का इस्तेमाल करना चाहिए। इसका मकसद यह होना चाहिए कि आम आदमी और सरकार के बीच का अंतर कम हो सके।

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अब हम यह समझ चुके हैं कि 2 खरब डॉलर तक का निवेश करने लायक धन कैसे जुटा सकते हैं। यह जान चुक हैं कि इसे चार महत्वपूर्ण क्षेत्र- बुनियादी ढांचा, शिक्षा, स्वास्थ्य और गवर्नेंस में कैसे लगा सकते हैं। उसके बाद यह ज़रूरी है कि हम तीसरी और आखि‍री शर्त को भी पूरा कर सकें।

यह एक बहुत ही साधारण और अचूक मिसाल हमारे पास मौजूद है। हमें सिर्फ प्रतियोगी और नियंत्रित बाज़ार विकसित करने की ज़रूरत है, जहां हमारे कुशल नागरिक आगे बढ़ सकें।

हमारा पूरा कृषि क्षेत्र, उत्पादन क्षेत्र (डिफेंस, इलेक्ट्रॉनिक, टेक्सटाइल और ऊर्जा), सेवा क्षेत्र (पर्यटन, वित्तीय सेवा, बैंकिंग, उपभोक्ता प्रोडक्ट, इन्‍फॉर्मेशन), एक्सपोर्ट सेक्टर, कंस्ट्रक्शन और रियल एस्टेट को निजी हाथों में ही होना चाहिए।

गरीबी उन्मूलन

सरकार को यह तय करना चाहिए कि वह एक प्रभावी, वर्ल्ड क्लास, प्रतियोगी और सिस्‍टम से चलने वाला माहौल बनाएं और अपने देश की प्रतिभाओं को आगे बढ़ने, नया रचने और अमीर बनने का मौका दे।

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दुनिया के अमीर से अमीर देश भी यह समझ चुके हैं कि सिर्फ ऊंची जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय के भरोसे हम विकास की कल्पना नहीं कर सकते हैं और ना ही इसकी गारंटी दे सकते हैं।

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किसी भी अर्थव्यवस्था से जुड़ी योजनाओं का मुख्‍य लक्ष्य पूरी तरह से गरीबी उन्मूलन होता है, जैसा कि गाँधीजी ने कहा था, “हर आंख से आंसू पोछो और एक समृद्ध और स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण करो।”

कुछ व्यापारी, उद्यमी और मुक्त बाज़ार के पैरोकार अर्थशास्त्री सिर्फ ग्रोथ या विकास पर ज़ोर देना चाहते हैं, जबकि वामपंथी, समाजवादी और मौकापरस्त नेता गरीबी का ढोल पीटने में यकीन रखते हैं। यह दोनों ही तरह के लोग भारत में बुरी तरह से असफल रहे हैं। अब ज़रूरत है कि हम अपने अभियान को बुनियादी केंद्र में लेकर आए।

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