चारों तरफ का माहौल देखकर मालूम पड़ता है जैसे आज मोदी जी ने देश की सारी समस्याओं का समाधान कर दिया है। अब और कोई समस्या बची ही नहीं। एक धड़ा हमारी सेना की जयकार के बजाय मोदी जी की जयकार कर रहा है। चलो वो भी ठीक है, देश के प्रधानमंत्री हैं वो, इतना तो हक बनता ही है कि कुछ जयकार उनका भी हो। बस ये जयकार हाहाकार में तबदील न हो आने वाले समय में।
इन्हीं सब के बीच मेरे मन में जो सवाल उठा था, और मुझे मालूम है कि बहुत सारे लोगों के मन में भी ये सवाल आया था। मेरा सवाल उक्त घटना से संबंधित है जिसमें हमारे जावानो की जान गई। इतनी बड़ी घटना बिना प्रशासनिक चूक के कैसे हो सकती है? और जब प्रशासनिक चूक हुई तो फिर कौन हैं जो इसके लिए जिम्मेवार हैं? इसकी जांच कब होगी? होगी भी या नहीं? और उस दोषी को कब सज़ा मिलेगी? चूंकि सज़ा का हकदार तो वो भी है! अगर उसे सज़ा नहीं मिली तो इस एयर स्ट्राइक का बहुत ज़्यादा फायदा नहीं।
एक बात तो साफ है, इस एयर स्ट्राइक से आतंकवाद के खिलाफ भारत को कितना फायदा मिलेगा यह तो वक्त ही बतायेगा। इस मौके को जिस तरह भुनाया जा रहा है हर चुनावी सभा में वो बहुत ही दुखद है। दुखद इसलिए है कि अब सभी सभाओं में बस गुणगान ही किया जा रहा है और यही किया जायेगा, उसके अलावा कुछ और बात नहीं। हुक्मरान की ये कोशिश कि जनता सारे मुद्दें, सारी समस्याओं को दरकिनार करते हुए भारत माता की जयकार में डूबा रहे सफल होते हुए नज़र आ रही है।
हालांकि बहुत अच्छी बात है अपनी धरती-माता की जयकार करना, सभी को करनी चाहिये, और मैं भी करता हूं लेकिन इस जयकार में हम कुछ भूल तो नहीं रहे हैं? अगर नहीं भूल रहे हैं तो भूल जाएंगे अगर ऐसे हीं लगातार सभी सभाओं में चलता रहा तो।राष्ट्रवाद का नशा ही कुछ ऐसा है। लोग दिवाली मना रहे हैं, चलो वो भी ठीक है लेकिन ये दिवाली की तरह ही अगर 2 दिन में खत्म हो जाये तो देश की जनता के हित में होगा।
जनता के हित में इसलिए होगा क्यूंकि युद्ध कभी भी देशहित में नहीं होता। युद्ध के लिए हम कितने तैयार हैं, और सबसे अहम सवाल ये कि हमलोग व्यक्तिगत तौर पर खोने और बलिदान के लिए कितना तैयार हैं? उन सभी माँ, बहन और पत्नियों जिनके अपने सेना में हैं उनसे पूछ कर देखें कि क्या वो युद्ध चाहते हैं? एक जवान का भाई होने के नाते मैं कभी ये नहीं चाहूंगा की युद्ध हो, और खासकर सोशल मीडिया और टीवी चैनलों के हुंकार से प्रेरित युद्ध तो बिलकुल भी नहीं। सोशल मीडिया पर हुंकार भरने और सीमा पर जाकर गोली खाने में ज़मीन-आसमान का फर्क है। तो आज ज़रुरत है कि हमलोग इस नशे से बाहर आएं और बुद्धिमता से काम लें।
मेरा मानना है कि अत्यधिक नशे का जश्न हमारे हित में कभी नहीं होता। राष्ट्रवाद तो वो नशा है जो सभी पीड़ा को भुलाने में देश की जनता को मदद करता है। ये तो वो नशा है जो पीड़ित से पीड़ित को भी झुमा दे। इंजेक्शन दे दिया गया है मज़ा लेते रहीये नशे में। लेकिन ये देखने लायक होगा कि कब तक पीड़ित लोग नशे में रह पाएंगे! जब तंद्रा टूटेगी तब क्या होगा? और तंद्रा तो टूटेगी!
भारत माता की जय।