साल का दूसरा महीना चल रहा हो और प्यार, मुहब्बत, इश्क की बात ना हो तो कुछ अधूरा-अधूरा ज़रूर लग सकता है। फरवरी मतलब मुहब्बत का महीना, जहां वैलेंटाइन वीक और वैलेंटाइन डे को इश्क करने वाले प्यार के हफ्ते और प्यार के दिन के तौर पर मनाते हैं।
ऐसा नहीं है कि किसी एक दिन को मुहब्बत का नाम दिया जा सकता है लेकिन ऐसा भी नहीं है एक को मुकद्दर करने के बाद मुहब्बत की अहमियत कम होती है।
मुहब्बत का एहसास सांसों का बंधन है, जिसको महसूस किया जाता है इसलिए शायद इसको केवल एक दिन के नाम कर देना इश्क करने वालों के लिए वाजिब नहीं। किसी चीज़ का व्यापार बनाने के लिए एक दिन मुहब्बत के नाम कर देना ज़रूरी सा बन गया है। व्यापार ने किस तरह अपनी साज़िशों से लोगों को कैद कर लिया इसको कोई भी समझ पाने में समर्थ नहीं है इसलिए मुहब्बत के नाम का एक दिन अपनी जगह बनाने में सफल हुआ है।
पिछले कुछ सालों के इतिहास को देखा जाये करोड़ों का व्यापार वैलेंटाइन डे और इसके आसपास के दिनों में हुआ है, जहां नाम मुहब्बत का दिया जा रहा है लेकिन मुहब्बत के बहाने व्यापार कर बड़ा मार्केट खड़ा किया जा रहा है।
शिकायत एक दिन तक मुहब्बत को सीमित कर देना नहीं है क्योंकि मुहब्बत को किसी दिन या सप्ताह तक सीमित नहीं किया जा सकता, शिकायत इस बात से है कि मार्केट ने जिस जाल को फैलाया है उस जाल में इतनी आसानी से हम फंसते जा रहे हैं कि व्यापार के हाथों हमने अपने एहसासों की कीमत लगाना शुरू कर दिया है।
मुहब्बत का एहसास तो तब भी किया जाता था, जब बाज़ार इतनी तेज़ी से बढ़ नहीं रहा था और मुहब्बत का एहसास तब भी किया जाता था, जब वैलेंटाइन डे को इतनी प्रमुखता से मनाया नहीं जाता था। हकीकत तो यह है कि सांसों को जोड़ने वाले रिश्ते के लिए किसी दिन और तोहफों की ज़रूरत नहीं क्योंकि सांसे एक दूसरे से मिलते वक्त किसी की इजाज़त नहीं लेती, वह तो बस जुड़ जाती हैं।
मुहब्बत करने वाले ग़ालिब के शब्दों से और गुलज़ार की कलम से एक दूसरे को अपना बनाते आए हैं, उनको किसी डे की ज़रूरत नहीं लेकिन शायद हमने भी रिश्तों और समझौते के बीच के फर्क को समझना छोड़ दिया है, शायद इसलिए हमें मुहब्बत करने और दिखने के लिए दिन की ज़रूरत पड़ रही है और अपना इश्क साबित करने के लिए महंगे तोहफों की।
इश्क की डोर सांसों को जोड़ती है, जिसका एहसास अद्भुत है और इसको सूरज की पहली किरण से, चिड़ियों की चहकती आवाज़ों से, बरसात की बूंदों से और ठंडी हवाओं से भी महसूस किया जा सकता है। व्यापार और प्रचार के इस दौर में कहीं मुहब्बत के सही मायने को समझने में हम विफल तो नहीं हो रहे हैं। शायद इस बात पर विचार करने की ज़रूरत है, क्योंकि प्यार किया नहीं जाता प्यार तो हो जाता है।
इश्क के एहसासों को महसूस भी कीजिए, कहीं जताते जताते उम्र ना निकल जाये।