साहित्य के संदर्भ में खासकर हिन्दी के लेखकों की अनगिनत समस्याएं हैं। ग्लैमराइज होने के बावजूद आज भी यह क्षेत्र करियर का सशक्त माध्यम नहीं बन सका है। आज बतौर लेखक अपना परिचय देने पर इज्ज़त तो काफी मिलेगी लेकिन लोगों के ज़हन में सवाल ज़रूर उठेगा कि कमाता क्या होगा?
गिने चुने लब्धप्रतिष्ठ लेखकों को छोड़ दें तो अधिकांश लेखकों के समक्ष जीविकोपार्जन की समस्या बनी रहती है। लेखन का क्षेत्र आज भी शौकिया बना हुआ है। लेखक कहीं ना कहीं दूसरे कार्य में जुटे होते हैं।
इसके अलावे अपनी रचना के प्रकाशन और उसके प्रसार की समस्या बनी रहती है। नवोदित लेखकों के लिए तो यह राह कांटो भरा है। बड़े लेखकों का तो नाम ही बिक जाता है लेकिन नए लेखकों की राह आसान नहीं होती है।
बड़े प्रकाशक नए लेखकों को बहुत तरजीह नहीं देते हैं। किसी तरह पैसे का जुगाड़ कर पुस्तक का प्रकाशन करा भी लिया तो उसके प्रसार और बिक्री की समस्या बनी रहती है। लेखकों के लिए बने बड़े मंच में नवोदित रचनाकारों को आसानी से जगह नहीं मिल पाती। इन सबके बीच भारी पैमाने पर भाई भतीजावाद और क्षेत्रीयता हावी रहती है।
मुझे याद है 2003 में गाज़ियाबाद में आयोजित विश्व साहित्य सम्मेलन में भाग लेने का मौका मिला था। मंच पर दिनभर उन्हें ही मौका मिला जो या तो बड़े नाम वाले थे या फिर आयोजकों के करीबी थे। दूर सुदूर प्रांत या छोटे शहरों से आए रचनाकारों को आधी रात के बाद मंच पर जगह मिल सका। कुछ अपवादों को छोड़कर प्रायः सभी जगह ऐसा ही होता है।
खैर, ऐसी बात नहीं है कि हालात एकदम ही खराब हैं। मौजूदा दौर में लेखकों के लिए सकारात्मक माहौल भी बन रहा है जिसके लिए इंतज़ार करने की ज़रूरत है। सोशल मीडिया और आभासी दुनिया में अनेकों मंच तैयार हो चुके हैं जहां अपनी प्रतिभा को विश्व के पटल पर रख सकते हैं। हां, इससे संतोष तो मिल जाता है लेकिन इससे अर्थोपार्जन नहीं हो पाता है।
समाधान
- लेखकों के लिए विश्व, राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर सशक्त संगठन की आवश्यकता है जो साहित्य के विकास में सकारात्मक योगदान दे सके।
- इसके लिए सरकार को भी पहल करनी चाहिए। नवोदित लेखकों के उत्साहवर्धन हेतु उनकी रचनाओं के प्रकाशन, वितरण और उचित मूल्य की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
- रचनात्मकता को बढ़ावा देने हेतु ठोस योजना बने और लेखकों को आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने की कोशिश हो।
- समय-समय पर स्वस्थ प्रतियोगिता का भी आयोजन हो और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले लेखकों को सम्मान भी मिले।
- कॉपीराइट कानून को और अधिक कारगर बनाने की आवश्यकता है।
- साहित्य लेखन को भी फिल्म इंडस्ट्री की तरह उद्योग का दर्ज़ा देकर सर्वांगीण विकास की रूपरेखा बननी चाहिए।