महीना, पीरियड्स और मासिक धर्म जैसे शब्दों से हम महिलाएं तो वाकिफ हैं लेकिन इस बारे में पुरुष कितना जानते हैं? खैर, यह तो पुरुष ही बता पाएंगे। हम महिलाएं तो हर महीने इनसे मिलते हैं मगर पुरुषों की मुलाकात इनसे कितनी बार होती है?
मौजूदा वक्त में मासिक धर्म पर बोलना आसान हो गया है और हर स्त्री-पुरुष को इसके बारे में खुलेआम चर्चा करने की आज़ादी मिल गई है। तो आइए जानते हैं शुरुआती दिनों में जब हम लड़कियों को पीरियड्स आना शुरू होता है तब हमारे घरों और विद्यालयों में क्या माहौल होता है।
मास्टर साहब पीरियड्स के बारे में बताते ही नहीं थे
किताबों में 8वीं कक्षा से ही पीरियड्स की जानकारी छपी होती है। छपी होने से मतलब है कि उस विषय को कितने विस्तार से पढ़ाया गया है, यह मालूम नहीं। खैर, इस बात का उदाहरण मैं अपने ही विद्यायल से लेती हूं जहां हमें इसके बारे में जानकारी मिली।
8वीं कक्षा में एक पुरुष अध्यापक हमें विज्ञान पढ़ाते थे। कोर्स के दौरान जब पीरियड्स का विषय आया तब कई सवालों और उलझनों के साथ विषय समाप्त कर दिया गया।
वर्कशॉप में पुरुषों को नहीं जाने दिया जाता था
इस बीच जब हमारे विद्यालय में पीरियड्स के बारे में बताने के लिए एक संस्था आई तब वर्कशॉप में ना तो कोई पुरुष शिक्षक और ना ही विद्यालय के कोई पुरुष छात्र शामिल हुए। इस कार्यक्रम में सिर्फ विद्यालय की लड़कियां ही शामिल थीं।
विद्यालय में पीरियड्स को यहीं से लड़कियों की दिक्कत या उनका मसला बना दिया गया। इतने अच्छे स्कूल में पीरियड्स जैसे विषय पर जागरूकता या जानकारी लेने किसी पुरुष का ना आना वाकई में हैरान करने वाली बात थी।
बैग में छुपाकर सैनिटरी पैड्स लाना पड़ता था
कुछ सालों बाद सरकार द्वारा छठी से लेकर बारहवीं तक मुफ्त में पैड्स बांटने की शुरुआत हुई लेकिन इस बारे में लड़कों को नहीं बताया गया। अब हम लोग पैड्स लेने के लिए छुट्टी होने के बाद जाते थे या फिर आधी छुट्टी में बैग लेकर उसमें छुपा कर लाना होता था।
सोचिए उस वक्त मन में कितनी घबराहट होती होगी। अगर कोई पूछता कि मैं क्या ले जा रही हूं, तब शायद ही बड़ी मुश्किल से बता पाती। हम लोगों को सैनिटरी पैड्स छुपाना इसलिए होता था ताकि कोई लड़का ना देख ले। इस तरह हर महीने पैड्स लेना एक मुसीबत सा लगता था।
गौर करने की बात यह है कि अभी भी विद्यालयों में इसी प्रकार से पैड्स बांटे जाते हैं और पीरियड्स जैसे विषय को अभी भी छुपाया जाता है। सवाल यह भी है कि जब अधिकांश लड़कों को इस विषय में जानकारी होती ही है तब उनसे भला क्यों छुपाना?
जानकारी देना कोई अपराध नहीं
हमें यह समझना होगा कि जानकारी देना कोई गलत काम नहीं हैं मगर जानकारी पर पर्दा डालना गलत है। आज पीरियड्स जैसे विषय को बाज़ार द्वारा अपनाने और प्रचार-प्रसार किए जाने के बाद भी हमारी सोच को आज़ादी क्यों नहीं है?
प्राथमिक स्तर पर हम आज भी इस विषय पर खुलकर बात नहीं कर पाते हैं। दस से पंद्रह साल की उम्र में जाकर लड़कियों को पीरियड्स की जानकारी होती है मगर 12 साल की उम्र में ही औसत लड़कियों को पीरियड्स आ जाते हैं।
ऐसे में बेहद ज़रूरी है कि पीरियड्स को लेकर स्टीरियोटाइप्स खत्म करने के साथ-साथ इस पर खुलकर चर्चा हो ताकि जानकारी प्राप्त करने से कोई भी वंचित ना रहे। इन विषयों में संचार का स्तर नहीं होने से गलत जानकारियों का आगाज़ होता है। बदलाव तभी संभव है जब इसकी शुरुआत हमारे घरों से हो।