समाज चाहे कोई भी हो, उसका स्वरूप परिवर्तनशील होता है और परिवर्तन की यह बयार कोई एक-दो दिन, हफ्ते या महीने में नहीं बहने लगती, इसमें सालों लग जाते हैं और यहां तक कि कई सदियां गुज़र जाती हैं।
खैर, परिवर्तन कोई-सा भी हो और कैसा भी हो, यह आम समाज में एक जन-चेतना को प्रवाहित करता है। समाज को एक सकारात्मक दिशा प्रदान करता है। इतिहास इस बात का गवाह है कि हर काल और युग में कुछ ना कुछ ऐसे लोग ज़रूर रहे हैं जो समाज की तत्कालीन परिस्थिति में अपेक्षित बदलाव लाना चाहते हैं।
लोगों का हुजूम इकट्ठा कर उन्हें नई-नई जानकारियों से लैस करते हैं ताकि वे अपने बदलाव की लड़ाई खुद लड़ सकें। मैं भी मानती हूं कि वर्तमान परिस्थिति को बदलने के लिए शिक्षा और जागरूकता से बड़ा औजार कोई हो ही नहीं सकता है।
लोगों को सूचना और जानकारी से लैस कर दीजिए, उनमें थोड़ा आत्मविश्वास और थोड़ी-सी हिम्मत दे दीजिए, फिर लड़ने दीजिए उन्हें खुद से अपनी लड़ाई। आप पाएंगे कि जिस बदलाव को लाने का सपना आप वर्षों से संजोये बैठे थे, वह चंद दिनों में ही साकार होने लगा है। इसके लिए एक छोटा-सा उदाहरण देती हूं।
राशन डीलर की धांधली
पिछले कुछ महीनों से मेरे यहां काम करने वाली घरेलू कामगार महिला मुझसे इस बात की शिकायत कर रही थी कि वह जिस दुकान से हर महीने सरकारी राशन लेती है, वहां का डीलर उन लोगों को (उसके मुहल्ले मे रहने वाले बाकी लोग भी) पूरा राशन नहीं देता है।
वह बता रही थी कि डीलर माप-तौल में कटौती करता है। 15 किलो चावल/गेहूं की जगह 12 किलो चावल/गेहूं ही देता है। नमक, चीनी और केरोसिन तेल जैसी चीजे़ें तो शायद ही कभी मिल पाती हैं।
अगर वे लोग इस बात की शिकायत करते हैं तब वह उन्हें उनका राशन कार्ड रद्द करने की धमकी देता है। कई बार तो वह उन गरीबों को टूटे और सड़े हुए चावल/गेहूं दे देता है और उसकी धमकियों की वजह से वे भी उसे ही लेने को मजबूर होते हैं।
ब्लैक मार्केटिंग का खुलासा
पहले मैंने सोचा कि स्थानीय प्रशासन से इस बात की शिकायत करूं फिर लगा कि मेरी जॉब तो ट्रांसफरेबल है। मैं आज तो उनकी लड़ाई में उनका साथ दे दूंगी लेकिन कल मेरे यहां से चले जाने के बाद अगर उन्हें फिर से कोई परेशानी हुई तो वे किससे मदद मांगेंगे?
यही सोच कर मैंने अपनी घरेलू कामगार महिला से उसका राशन कार्ड मंगवाया और उससे संबंधित जानकारियों को इंटरनेट पर चेक किया। मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि उसके राशन डीलर के नाम से हर महीने प्रति परिवार के हिसाब से चावल और गेहूं तो मिल ही रहा है, अन्य चीजें भी नियमित रूप से मिल रही हैं लेकिन वे चीजें उन गरीबों को मुहैया नहीं हो पा रही हैं।
इसका मतलब है कि वह उनकी ब्लैक मार्केटिंग कर रहा है। मैंने उसे इस बारे में बताया और इंटरनेट पर दी गई जानकारी भी पढ़वाया (जानकारी हिंदी में थी और पांचवीं तक पढ़ी होने के कारण वह हिंदी पढ़ना-लिखना जानती है)। साथ ही, उसे 181 नंबर पर कॉल करके जन-शिकायत केंद्र पर इस बात की शिकायत दर्ज़ करने के लिए कहा।
उसने तुरंत मेरी बात मानते हुए ऐसा किया। हालांकि वह इस बात को लेकर संशकित थी कि अगर उसका नाम उजागर हो गया तो कहीं उसे जो सड़ा-गला राशन मिल रहा है, वह भी मिलना बंद नहीं हो जाए। खैर, मैंने उसे समझाया कि अगर वह चाहती है कि उसका नाम उजागर ना हो, तो वह इस बात को संबंधित अधिकारी से कह दे।
खुशी की बात यह है कि उसकी इस शिकायत पर तत्काल सुनवाई हई और अभी पिछले हफ्ते कुछ सरकारी अधिकारियों ने आकर उस जन-वितरण केंद्र की जांच की। स्थानीय लोगों को बुला कर वहां होने वाली धांधली के बारे में पूछताछ की गई। उसे पूरी उम्मीद है कि आगे इस दिशा में वे जल्द-से-जल्द कार्रवाई करेंगे।
मिड डे मील पर भी शिकायत का हुआ असर
पिछले साल मेरे यहां काम करने वाली घरेलू कामगार महिला ने अपने मुहल्ले में स्थित सरकारी मध्य विद्यालय की पढ़ाई और वहां रोज़ाना मिलने वाले मिड डे मील को लेकर मुझसे शिकायत की थी। उस स्कूल में उसका बेटा भी पढ़ता है। स्कूल के टीचर्स ना तो समय पर क्लास में आते थे और ना ही बच्चों को निर्धारित सूची में शामिल पूरा पोषक आहार मिलता था।
उस वक्त भी मैंने उसे 181 नंबर पर ही अपनी शिकायत दर्ज़ करवाने के लिए कहा था और उसके कुछ दिनों बाद शिक्षा विभाग की ओर से स्कूल के औचक निरीक्षण पर कुछ लोग आए और अब बच्चों की पढ़ाई और भोजन दोनों में सुधार हुआ है।
उपरोक्त दोनों ही मामलों में मैंने कुछ नहीं किया। बस उसे वह रास्ता बताने की कोशिश की, जिस पर चल कर वह अपना हक पा सकती है। अपने साथ हो रहे अन्याय की शिकायत दर्ज़ कर सकती है और अपने हिस्से का न्याय पा सकती है।
ऐसी कई छोटी-छोटी कोशिशों के ज़रिए हम और आप उन तमाम लोगों को उनके हिस्से का हक दिलाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं, जो सदियों से एक मनुष्य के रूप में भी अपने हक और अपने अधिकारों का लाभ उठाने से वंचित रहे हैं।
यह ज़रूरी नहीं है कि हर बार समाज को बदलने के लिए खूनी क्रांति का आगाज़ ही किया जाए। किसी भी समाज में बदलाव या क्रांति लाने के लिए शिक्षा और जागरूकता का औजार भी काफी है।