Site icon Youth Ki Awaaz

“विश्व रेडियो दिवस पर जानिए रेडियो से मेरी मोहब्बत की कहानी”

शालिनी सिंह

शालिनी सिंह

यूं तो बचपन से ही रेडियो घर में था लेकिन रेडियो से दोस्ती उस वक्त हुई जब सिविल सर्विसेज़ की तैयारी में रात भर पढ़ना होता था। अपनी ही मेहनत के पैसों से एक प्यारा सा रेडियो खरीदकर लाई थी जो सिर्फ मेरा था। मेरी टेबल का एक कोना ही उसका आशियाना बना।

रात भर कभी किताबों से तो कभी रेडियो से बातें होती थीं। कुछ गीत जो दिल में बस गए एक प्रेरक गीत की तरह जिनकी पंक्तियां हौसला बढ़ाने का काम करती थीं।

हर उस वक्त में जब अभावों में संघर्ष करना पड़ता, ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना… चांद तारों से चलना है आगे और ज़िन्दगी का सफर है ये कैसा सफर……यह दोनों ही गीत मन के अनसुलझे सवाल और जवाब बनकर बजते रहते थे।

शादी को लेकर तमाम दबावों के चलते सिविल सर्विसेज़ की तैयारी तो सिसकियां लेने लगीं लेकिन किताबों और रेडियो से इश्क हो चुका था। तमाम ज़िम्मेदारियों में किताबों से भी दूरियां हुईं लेकिन रेडियो ने मेरी मोहब्बत को दिल की गहराइयों से स्वीकार लिया था तभी तो ससुराल, रसोई, घर, बाहर और गाड़ी हर जगह रेडियो मिलता गया मुझे और कहता कि तेरा मेरा प्यार अमर फिर क्यों तुझको लगता है डर ……

एक दिन ऐसा भी आ गया जब रेडियो और मेरे प्यार को स्वीकृति मिल गई और मुझे रेडियो एंकर के रूप में चुन लिया गया। अब रेडियो और मैं एक दूसरे की आवाज़ बनकर साथ गुनगुनाने लगे थे। हमारे प्यार का एक नया सफर शुरू हुआ जिसमें ज़िन्दगी में तमाम नए रिश्ते जुड़ते गए और इन्हीं रिश्तों के ताने बाने में एहसासों के सफर पर चलते-चलते मन में पूरी दुनिया ही बसा ली।

फोटो साभार: शालिनी सिंह फेसबुक प्रोफाइल

इस खूबसूरत दुनियां में बहुत कुछ सीखा जो जीवन जीने के लिए ज़रूरी होता है और रेडियो से मेरा रिश्ता गहराता ही चला जा रहा है। आकाशवाणी के स्टूडियो से गहन होता रिश्ता कई मायनों में खास है क्योंकि इन्हीं दीवारों और साउंडप्रूफ कमरों में रहकर सीखा कि मन के भीतर की सिसकियों को बाहर मत जाने देना, बाहर सिर्फ चटख, चहकती और सुरीली आवाज़ें ही छनकर जा सकती हैं क्योंकि यहां आवाज़ के जादूगरों का बसेरा है।

यहीं पर सीखा एक बंद कमरे में खुद से बातें करना, खुद को खुद की पसंद का गीत सुनाना और अपने ख्वाबों में अनदेखे अनजाने तमाम दोस्तों को हर बार एक काल्पनिक सफर पर ले जाना। अनदेखे अनजाने दोस्तों के दिलों में खास जगह बनाना और उनका प्यार पाना। सिर्फ आवाज़ों और गीतों के सहारे तमाम लोगों से जुड़ जाना।

यह सब किताबी बातों सा लगता है लेकिन सच कहूं तो स्टूडियो के बंद कमरों में स्क्रिप्ट और माइक वाली यह काल्पनिक दुनिया ही कब वास्तविक होती जाती है पता नहीं चल पाता।

अनदेखे-अनजाने लोगों का हमसे जुड़ना और हमारा उनसे, साथ में उनके पत्रों का आना-जाना, पत्रों में फरमाइश, शिकायत, रूठना और  हमारे द्वारा उनकी फरमाइश के गीत बजाकर उन्हें मनाना। ऐसा निःस्वार्थ ताना-बाना जो सिसकती आवाज़ों को खनकती आवाज़ में तब्दील कर दे कोई और है क्या?????

कोई और है जो करे बचपन की ठिठोली बाल जगत में, महिलाओं को गृहलक्ष्मी का गुण बतलाए, युवाओं को राह दिखाती युववाणी, श्रम की परिभाषा श्रमिक जगत में, गाँवो की चर्चा हो खेती किसानी लोकयन में और वृद्धजनों की बात जहां हो कल्पतरु की छाया सी।

यही तो है आकाशवाणी, यही तो है मेरी रेडियो ज़िन्दगी और मेरा सूफियाना सा सच्चा इश्क। वेलेंटाइन सप्ताह के आखिरी पड़ाव यानि प्रेम दिवस पर सब लोग मेरे लिए दुआ करना कि मेरा यह इश्क बरकरार रहे और हर किसी को मेरे इश्क की रुमानियत महसूस हो, जब तक रहूं रेडियो और मैं एक दूसरे की धड़कन बनकर। धड़कते रहें करोड़ों दिलों में इश्क की आवाज़ बनकर।

विश्व रेडियो दिवस की असंख्य शुभकामनाओं के साथ आपकी दोस्त

शालिनी सिंह, एंकर (आकाशवाणी लखनऊ)

Exit mobile version