“आखिरकार, प्रियंका गाँधी राजनीति में आ गईं!” 24 जनवरी 2019 को देश के तमाम बड़े अखबारों में कुछ ऐसी ही हेडलाइन्स थीं क्योंकि 23 जनवरी को राहुल गाँधी आधिकारिक तौर पर प्रियंका गाँधी के राजनीति में आने की घोषणा कर चुके थे।
काँग्रेस चेयरपर्सन सोनिया गाँधी की बेटी तथा काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की बहन प्रियंका गाँधी वाड्रा को काँग्रेस पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपा गया। 7 फरवरी को उन्होंने बतौर राष्ट्रीय महासचिव अपना कार्यभार संभाल लिया।
काँग्रेसी कार्यकर्ता काफी वर्षों से प्रियंका को राजनीति में लाने की मांग करते रहे हैं। आखिरकार प्रियंका राजनीति में आ गईं। प्रियंका के आने से जैसे काँग्रेस की गाड़ी में “डबल इंजन” लग गया। तीन राज्यों में जीत से उत्साहित काँग्रेसी कार्यकर्ता जोश से लबालब भर गए।
राहुल गाँधी को ‘दीदी’ और ‘बहिन जी’ का तो साथ नहीं मिला लेकिन स्वयं की बहन का साथ ज़रूर मिला और बेहद ज़रूरी मौके पर मिला।जानकार प्रियंका के राजनीति में प्रवेश के इस वक्त को सबसे बेहतर वक्त मान रहे हैं लेकिन क्या वास्तव में प्रियंका की राजनीति में एंट्री काँग्रेस को फायदा पहुंचाएगी?
क्या वास्तव में काँग्रेस का तुरुप का इक्का कमाल दिखा पायेगा? कहीं यह फेल हो गया फिर गाँधी परिवार का क्या होगा? क्या भविष्य में प्रियंका राहुल की जगह ले सकती हैं? प्रियंका के राजनीति में आधिकारिक प्रवेश के साथ ही आम जनमानस में ऐसे प्रश्न बार बार उठ रहे हैं। चलिए अब मैं आपको बताता हूं कि प्रियंका के राजनीति में आने के बाद नफा-नुकसान होने की क्या क्या संभावनाएं हैं।
प्रियंका गाँधी वाड्रा के राजनीतिक प्रवेश से काँग्रेस को फायदे
1) कार्यकर्ताओं में जोश:- किसी भी राजनीतिक दल के लिए सबसे ज़रूरी होता है उसका कार्यकर्ता। कार्यकर्ता में जितना ज़्यादा जोश होगा, पार्टी उतनी ही दम भर के आगे बढ़ेगी। प्रियंका गाँधी के काँग्रेस में आधिकारिक प्रवेश से कार्यकर्ता काफी खुश हैं तथा जोश से भर गए हैं।
उन्हें प्रियंका गाँधी में इंदिरा की छवि दिखती है। “प्रियंका गाँधी की आंधी है, यह नई इंदिरा गाँधी है” जैसे नारों के साथ काँग्रेस कार्यकर्ता प्रियंका को इंदिरा का नया अवतार मानकर उत्साह से भरे हैं। यह पार्टी के लिए निश्चित तौर पर शुभ संकेत है।
2) बड़ा चेहरा:- सोनिया गाँधी के अस्वस्थ होने तथा सक्रीय राजनीति से दूर होने के कारण काँग्रेस में गाँधी परिवार के बड़े चेहरों की कमी लग रही थी। राहुल गाँधी निश्चित तौर पर एक बड़ा चेहरा हैं लेकिन वह अकेले ‘मोदी तिलिस्म’ से लड़ने के लिए काफी नहीं थे। अतः अब प्रियंका के आने से जो कमी लग रही थी, उसकी पूर्ति हो गई तथा काँग्रेस को मज़बूती भी मिल गई।
3) गुटबाज़ी बंद होगी:- काँग्रेस के शीर्ष नेताओं में पूर्व में भी गुटबाज़ी होती आई है। यह ऊंची महत्वाकांक्षाओं के कारण होता था लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। पार्टी अब अलग-अलग खेमों में ना बंटकर एकजुट होकर चुनावों में जाएगी। इसका भी काँग्रेस को बड़ा फायदा मिलने वाला है।
प्रियंका गाँधी वाड्रा के राजनीतिक प्रवेश से काँग्रेस को नुकसान
1) वंशवाद का आरोप:– यह काँग्रेस पर एक अभिशाप की तरह है। विपक्षी दल काँग्रेस पर हमेशा से ही वंशवाद के आरोप लगाते आ रहे हैं। अब यह और प्रबल हो जाएगा। एनडीए वंशवाद के मुद्दे को चुनावों में जमकर उछलेगा। ‘शहज़ादे-शहज़ादी’ और ‘भाई-बहन’ जैसे शब्दों से खूब जाल बुना जाएगा। यह निश्चित तौर पर काँग्रेस के लिए घातक सिद्ध होगा।
2) रोबर्ट वाड्रा-एक हथियार:- 2019 के चुनावी समर में वंशवाद के साथ साथ प्रियंका गाँधी के पति तथा कारोबारी रोबर्ट वाड्रा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का विपक्षी दल जमकर फायदा उठाएंगे। यह काँग्रेस की छवि पर आघात करेगा तथा पार्टी के लिए नुकसानदायक होगा।
3) उत्तर प्रदेश में त्रिकोणीय मुकाबला:- कहा जाता है कि प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। प्रियंका के आने के पूर्व काँग्रेस मैच से बाहर थी लेकिन सपा-बसपा गठबंधन बढ़त में था। प्रियंका के आने से काँग्रेस निश्चित तौर पर मज़बूत हुई है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश की 43 संसदीय सीटों पर प्रियंका सीधा असर करेगी तथा मामला त्रिकोणीय हो जाएगा। ऐसी स्थिति में एंटी-बीजेपी वोट बंट जाएगा तथा फायदा सीधा बीजेपी ले जाएगी। इस प्रकार प्रियंका के आने से मामला त्रिकोणीय होने की आशंका है तथा जहां सपा-बसपा गठबंधन बढ़त ले रहा था वहीं अब बीजेपी बाज़ी मार सकती है।
प्रियंका का राजनीति में भविष्य:- राजनीति में प्रियंका के भविष्य को लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं। यदि 2019 चुनाव में काँग्रेस किसी तरह सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है तो यह संभव है कि राहुल गाँधी प्रधानमंत्री बन जाएं तथा पार्टी की कमान प्रियंका के हाथ में आ जाए।
यदि काँग्रेस 2019 चुनाव हार जाती है तो कार्यकर्ताओं में राहुल के प्रति हताशा और रोष उत्पन्न होगा तथा इसके परिणाम स्वरूप कार्यकर्ता प्रियंका को पार्टी की सर्वे सर्वा बनाने की मांग कर सकते हैं। खैर, इसका उत्तर तो समय ही बेहतर दे पाएगा लेकिन प्रियंका के राजनीति में उतरने से अब कुछ भी एकतरफा नहीं होने वाला है, यह निश्चित है।
नोट: भावेश ‘Youth Ki Awaaz’ इंटर्नशिप प्रोग्राम जनवरी-मार्च बैच के इंटर्न हैं।