साल 2013 से जो व्यक्ति लगातार मीडिया में सुर्खियां बटोर रहे थे, अब उन्हें लोग भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर जानते हैं। अब लोग इनकी बातों को ज़्यादा सीरियसली लेते भी नहीं हैं। जी हां, मैं प्रधानमंत्री मोदी की ही बात कर रहा हूं।
उन्हें अब तक यह एहसास नहीं हुआ है कि वह जिस संवैधानिक पद पर विराजमान हैं उसकी कुछ गरीमा होती है। उन्हें कब क्या बोलना है इसका तो ज्ञान ही नहीं है।
शायद राम-राम और काँग्रेस को कोसते-कोसते जो पद इन्हें मिल गया उसकी उम्मीद इन्होंने खुद भी नहीं को होगी। इसलिए अब तक इनको इतनी खुशी है कि कुछ भी बोल जाते हैं
जुमलों के लिए फेमस हैं पीएम मोदी
प्रधानमंत्री चाहे कहीं भी जाएं लेकिन वह अपने झूठ के लिए ज़रूर छा जाते हैं। अभी हाल ही में वह गुजरात और बंगाल में रैली करते नज़र आए थे जहां उन्होंने कहा कि राज्यों के विकास में राज्य सरकार बाधा बन रही है।
अब गुजरात को कौन भूल सकता है जहां नरेंद्र मोदी बोलकर आए हैं कि देश में बलात्कारियों को लगातार फांसी हो रही है। खैर, यह उन सरवाइवर्स के साथ एक मज़ाक ही है जिनकी शिकायत तक थानों में दर्ज़ नहीं होती है।
रैली में मोदी ने जनता को संबोधित करते हुए कहा कि चार साल से अधिक हो गए लेकिन मोदी के नाम पर कोई कलंक नही लगा है। खैर, तानाशाही से बड़ा उनके लिए कोई कलंक नहीं होगा।
जांच एजेंसियों पर मोदी का दबाव
नोटबंदी देश का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है। अभी जो मामले चल रहे हैं उनमें लगातार मोदी सरकार पर आरोप लग रहें है कि सरकारी संस्थाओं का केंद्र सरकार द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है। हालांकि भाजपा इसे खारिज़ करती है लेकिन ममता बनर्जी के धरना प्रदर्शन पर यदि गौर कीजिएगा तब चीज़ें समझ आएंगी।
ममता ने जब सीबीआई के असंवैधानिक कार्रवाई का विरोध किया तब केवल सीबीआई को कोर्ट जाना चाहिए था लेकिन भाजपा के तमाम बड़े नेता बयानबाज़ी और प्रेस कॉन्फ्रेंस करने लगे।
वैसे सीबीआई तो एक निष्पक्ष संस्था है नहीं लेकिन मान लेने में कोई बुराई नहीं है कि वह निष्पक्ष है। अब सवाल यह उठता है कि सीबीआई के साथ-साथ भाजपा क्यों मैदान में कूद पड़ी? बिकाऊ मीडिया ने पूरे मामले को ममता बनाम मोदी जंग के तौर पर क्यों दिखा दिया?
अब जब इसे ममता बनाम मोदी जंग के तौर पर देखा जा रहा था तब मोदी जी को अपनी हार स्वीकार कर लेनी चाहिए, क्योंकि गिरफ्तारी के खिलाफ ही सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है।
15 लाख बैंक में आए क्या?
फिलहाल देश में राजनीतिक ताकतों को दिखाने और आजमाने का दौर ज़ोरों पर है। आप फिर से कहीं 15 लाख वाले झांसे में मत फंस जाना। कालाधन भी वापस नहीं आया और ना तो भारत काँग्रेस मुक्त और ना ही भ्रष्टाचार मुक्त हुआ।
रुपया डॉलर के मुकाबले मज़बूत भी नहीं हुआ और ना ही दो करोड़ रोज़गार मिले। हां, एक और बात मंदिर भाजपा नहीं बनाएगी क्योंकि उन्हें मालूम है कि मंदिर प्रेमी तब तक वोट देंगे जब तक मंदिर नहीं बनता है। इसलिए अब थोड़ा सावधान रहिए क्योंकि जुमलों के राजा फिर से चुनावी सभाओं को संबोधित करते नज़र आएंगे।