हम देशवासियों ने 26 जनवरी को काफी धूमधाम से 70वां गणतंत्र दिवस मनाया। कई लोगों ने इस मौके पर गर्व भी महसूस किया लेकिन दूसरी तस्वीर यह भी है कि देश में 8वीं कक्षा के छात्र दूसरी कक्षा की किताब नहीं पढ़ पा रहे हैं। एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन (असर) 2018 की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि 8वीं कक्षा के सिर्फ 44% छात्र ही तीन अंको की संख्या में एक अंक से भाग दे सकते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2018 तक 8वीं के स्टूडेंट्स की सामान्य गणित की क्षमता जस की तस है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि देश की शिक्षा व्यवस्था के साथ लगातार खिलवाड़ किया जा रहा है। राजनीतिक गठबंधन का गणित तो हम काफी आसानी से कर लेते हैं लेकिन किताबों में क्यों पीछे रह जाते हैं?
8वीं कक्षा के 27% छात्र दूसरी क्लास की किताब नहीं पढ़ सकते हैं। 8वीं कक्षा को इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि प्राथमिक शिक्षा का वह आखरी साल होता है। वहीं, 5वीं कक्षा के छात्र दूसरी कक्षा की किताब नहीं पढ़ सकते हैं लेकिन 2016 के बाद इसमें 2.4% का सुधार हुआ है।
असर की रिपोर्ट में स्कूलों से जुड़ी अन्य बातों का भी ज़िक्र करते हुए बताया गया है कि देश में कुल 74.8% स्कूलों में पेयजल उपलब्ध है। खैर, इसे सकारात्मक भी समझ सकते हैं लेकिन उन स्कूलों का क्या जहां पीने के लिए पानी की सुविधा नहीं है।
नहीं हैं पर्याप्त प्लेग्राउंड्स
देश में 17.2% स्कूलों में खेल का मैदान नहीं है लेकिन उससे भी ज़्यादा 25.8% स्कूलों में पुस्तकालय ही नहीं हैं। ऐसे में हम उस प्रतिभा का निर्माण कैसे कर पाएंगे जिसके ज़रिए ओलिंपिक में गोल्ड पाने की बात होती है। अगर स्कूलों में पुस्तकालय नहीं हैं तब उन्हें पता कैसे चलेगा कि हमारे देश में लेखक और कवियों की एक बड़ी परंपरा रही है?
कई स्कूलों में यह स्थिति है कि अलग-अलग क्लास के छात्रों को एक ही क्लास रूम में बैठाया गया है। यहां तक कि औसत स्कूलों में शौचालय नहीं होने के दावे भी किए गए हैं।
शिक्षकों की भारी कमी
दिसंबर 2016 में मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि झारखंड में 38.39%, बिहार में 34.37% और यूपी में 22.99% शिक्षकों के पद रिक्त हैं जिनकी कुल संख्या कई लाखों में हो सकती है।
असर का अध्ययन ग्रामीण भारत पर आधारित है। अगर वह शहरी भारत का अध्ययन करते तब यह बात सामने आती कि पबजी खेलने वाले बच्चे कितने होशियार होते हैं या फिर वह भी स्क्रिप्टेड एग्ज़ामिनेशन चाहते हैं?
क्या हम इस बात पर ही खुश रहें कि देश में 70 सालों में कितने स्कूलों और कॉलेजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है? हमें यह समझना होगा कि एजुकेशन का क्षेत्र काफी बड़ा है। इसमें बदलाव लाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को एक लंबे एक्शन प्लान की ज़रूरत है, जो सत्ता के बदलाव से प्रभावित नहीं होना चाहिए। क्या हमारे राजनेता इस बात के लिए तैयार होंगे?
एजुकेशन चुनावी मुद्दा क्यों नहीं?
आज कल जीडीपी के बारे में बहुत चर्चा होती है लेकिन कभी इस पर चर्चा नहीं होती है कि बुरी शिक्षा व्यवस्था का अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव देखा जाता है। मौजूदा दौर में एजुकेशन का चुनावी मुद्दा नहीं बना पाना बेहद शर्मनाक है।
हम यह क्यों भूल जाते हैं कि ‘अच्छी शिक्षा’ अर्थव्यवस्था, रोज़गार और तकनीकी खेती इन सब बातों के लिए लाभदायक है। अगर आपके पास अच्छी शिक्षा नहीं है तब आप बेहतर स्किल कैसे हासिल कर पाएंगे? फिर स्किल इंडिया जैसी योजनाओं का कोई मतलब नहीं होता है।
असर की रिपोर्ट में 12वीं कक्षा तक ही अध्ययन किया गया है लेकिन हमारे देश में यूनिवर्सिटीज़ की हालत भी अच्छी नहीं है। विश्व की श्रेष्ठ 200 शैक्षणिक संस्थाओं में भारत का एक भी संस्थान शामिल नहीं है।
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी द्वारा पंडित नेहरू को काफी घटिया तरीके से देश के युवाओं के सामने रखा जाता हैं। हमें नेहरू का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि उन्होंने देश में आईआईटी, आईआईएम और एम्स जैसी संस्थाओं का निर्माण किया।
नई एजुकेशन पॉलिसी की ज़रूरत है
क्या हमारी सरकारें अच्छी शिक्षा के लिए कोई नई एजुकेशन पॉलिसी नहीं ला सकती है? हमें हमारे पढ़ने और पढ़ाने के तरीकों में बदलाव लाना होगा। बच्चों में स्कूल जाते वक्त अपनेपन की भावना होनी चाहिए। देश के अलग-अलग जगहों से शिक्षकों द्वारा बच्चों की पिटाई की खबरें आती हैं।
अगर कोई बच्चा पढ़ने में कमज़ोर है तब इसका जवाब उस बच्चे की पिटाई नहीं हो सकती है। शिक्षकों को बच्चों के हिसाब से पढ़ाना चाहिए। उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे आपके हिसाब से नहीं पढ़ेंगे।
बच्चों के मन में शिक्षकों के प्रति आदर और प्रेम भावना होनी चाहिए। अगर प्रेम है तब ही बच्चे शिक्षकों से अपनी परेशानियां साझा करेंगे। यदि ऐसा नहीं हुआ तब जो चल रहा है वह जारी रहेगा। बच्चे स्कूल आते रहेंगे, देश साक्षर बनता रहेगा लेकिन एजुकेशन द्वारा देश के अच्छे नागरिक बनने का सपना बस सपना ही रह जाएगा।
नोट: लेख में प्रयोग किए गए आंकड़े इस लिंक से लिए गए हैं।