आज से लगभग 18 साल पहले जब भारत के संसद भवन पर हमला हुआ था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उस हमले को देश की संप्रभुता पर हमला बताया था। देश के सभी राजनेता और राजनीतिक दल एक मंच पर आ गए थे, क्योंकि उस वक्त खतरा उनके जानों पर मंडराया था।
संसद भवन पर हमले के दौरान बहुत हो हल्ला हुआ कि इस हमले का बदला लिया जाएगा लेकिन नतीजा हमारे सामने है। वक्त बदला, सरकारें बदली और प्रधानमंत्री भी बदले लेकिन नहीं बदली तो सिर्फ सैनिकों की दशा।
अतीत के हमलों से कब सीखेंगे?
संसद अटैक के बाद हिंदुस्तान ने कई हमले देखे। मुम्बई में 26/11 का हमला, पठानकोट वायुसेना के एयरबेस पर हमला और उरी में सोते हुए सैनिकों पर हमला। यह वे हमले हैं जिनका गुस्सा देशवासियों के सीने में आज भी है।
हमने छोटे हमलों को तो छोड़ ही दिया। इन सभी आतंकी हमलों के पीछे हर बार सिर्फ जैश- ए-मोहम्मद का हाथ बताया ही नहीं गया बल्कि उसने आगे आकर हमलों की ज़िम्मेदारी भी ली थी।
अभी सियासत करने का वक्त नहीं
आज भी सीआरपीएफ के दस्तों पर जो हमले हुए, उनकी ज़िम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ही ली है। आज देश के 44 जवान शहीद हो गए और लगभग 30 के आस-पास अस्पतालों में अपनी ज़िन्दगी और मौत से लड़ रहे हैं लेकिन क्या किसी ने यह सोचने की ज़हमत उठाई है कि इन हमलों की वास्तविक ज़िम्मेदारी किसकी है?
इन सैनिकों की मौत के ज़िम्मेदार कौन हैं? यह जवान किस तरह के सामाजिक पृष्ठभूमि से आते हैं? इन चीज़ों का जवाब खोजने पर हम पाएंगे कि इनके मौत के ज़िम्मेदार भारत के सत्ताधीश हैं। जी हां, देश के राजनीतिक दल सैनिकों की लाशों पर अपनी रोटियां सेंकने का काम करते हैं।
जवानों के साथ कैसा भेदभाव?
हमारे देश में जब कोई राजनेता सड़कों से गुज़रते हैं तब 2-3 किलोमीटर की दूरी तक सुरक्षाबल तैनात कर दिए जाते हैं। इस दौरान वाहनों का आवागमन भी रोक दिया जाता है। कई दफा तो राजनेताओं के लिए आसमान में वायुसेना की गश्ती लगी रहती है। ऐसे में क्या यह पूछना गलत होगा कि इन जवानों के लिए ऐसा क्यों नहीं किया गया? क्या सिर्फ इसलिए कि यह जवान बहुत गरीब परिवार से आते हैं?
हाल ही में देशभर से आए सैनिकों ने दिल्ली में ‘वन रैंक वन पेंशन’ के लिए हड़ताल किया था लेकिन किसी भी राजनीतिक दल ने उन्हें समर्थन नहीं दिया। किसी ने भी उनके हक में आवाज़ उठाना उचित नहीं समझा। हम कभी बोफोर्स में उलझ जाते हैं तो कभी राफेल को लेकर सरकार को घेरने लग जाते हैं।
आतंक की फ्रैक्ट्री बंद करनी होगी
विदेश नीति की बात करने पर पाते हैं कि हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में आतंक की फैक्ट्री लगी हुई है। वे अपने यहां से हमारे देश में आतंकी निर्यात करते हैं फिर भी हम उसे ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्ज़ा देकर व्यापार करते हैं। खैर, यह बात अलग है कि पुलवामा हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान से ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्ज़ा छीन लिया है।
हम अमेरिका से बार-बार आग्रह कर रहे हैं कि पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित किया जाए। आखिर हम किस तरह की विदेश नीति के सहारे चल रहे हैं? अब हमें चाहिए कि खुद से पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करते हुए उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें।