इन दिनों इलाहबाद (प्रयागराज) से आई एक तस्वीर मीडिया में छाई हुई है जिसे सोशल मीडिया पर भी काफी शेयर किया जा रहा है। यह तस्वीर प्रधानमंभी नरेन्द्र मोदी की है, जिसमें वह कुम्भ के सफाईकर्मियों के पैर धोते नज़र आ रहे हैं।
तस्वीर पर दो तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। कुछ लोग भावुक होते हुए मोदी को महान नेता और ज़मीन से जुड़ा बता रहे हैं, जबकि कुछ लोग इसे दिखावा और चुनावी स्टंट मान रहे हैं।
अब सवाल यह है कि ऐसा करने की ज़रूरत क्यों पड़ी? कोई क्यों किसी का पैर धोए? दूसरी बात अगर ऐसा किया भी गया तो प्रचारित क्यों किया जा रहा है?
अगर आपने दिल से ऐसा किया तो इसको प्रचारित करके बेच क्यों रहे हैं? क्या ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि लोग देश के पीएम का एहसान माने? इसी दिखावे के सम्मान ने आज तक महिलाओं को आगे नहीं बढ़ने दिया, उनको देवी तो मान लिया गया, उनकी पूजा भी की गई लेकिन अधिकार देने की बात आई तो सब खिड़कियां झांकने लगे और आज तक झांक ही रहे हैं।
दलितों के अधिकार पर बात क्यों नहीं होती?
वही हाल दलितों और कामगार वर्गों के साथ भी हुआ और आज तक हो रहा है। अगर वाकई प्रधानमंत्री के मन में सफाईकर्मियों के प्रति लगाव होता तो सम्म्मान से ज़्यादा ज़रूरी अधिकार है। पैर धोने की बजाय अगर उनके अधिकारों, उनकी सुरक्षा और उनकी मांगें पूरी करने पर ध्यान दिया जाता तो ज़्यादा सराहनीय काम होता।
किसी से यह खबर छिपी नहीं है कि आए दिन सीवर में सफाईकर्मियों की मौत होती रहती है, तब ना ही उसपर कोई बोलता है, ना ही वह तस्वीर जारी होती है और ना ही चैनलों पर चर्चा होती है।
जिस इलाहबाद के कुम्भ में यह “पुण्य कार्य” हुआ है, वहां कुम्भ खत्म होने के बाद इतनी गंदगी हो जाती है कि उसके आस-पास जाने लायक नहीं होता है। यही साफाईकर्मी उस वक्त भी वहां सफाई कर रहे होते हैं लेकिन तब उनके पैरों को धोने कोई नहीं आता है।
यह कितनी अजीब बात है कि जिस कुम्भ में प्रधानमंत्री ने इन सफाईकर्मियों के पैर धोए, वहीं पर लगभग एक महीने पहले से सफाईकर्मी अपनी कुछ मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जी ने उन लोगों से मिलकर इसपर कोई फैसला लेना उचित नहीं समझा।
सफाईकर्मियों की बेहतरी के लिए सोचना होगा
मौजूदा वक्त में सफाईकर्मियों को उनका अधिकार तक नहीं मिल रहा है। उनकी दिहाड़ी समय पर नहीं मिल रही है लेकिन उनसे ज़्यादा काम ज़रूर लिया जा रहा है और ओवरटाइम की तो बात ही छोड़ दीजिए।
बिना किसी सुरक्षा के उन्हें गंदगी में उतरना पड़ रहा है। यहां तक कि काम वे कर रहे हैं और उसका पैसा बिचौलिए खा रहे हैं। ऐसे में क्या पैर धोने से इन्हें खुशी मिलेगी?
चाहे खुद नारायण ही आकर क्यों ना इनके पैर धो जाएं तब भी वे खुश नहीं होगे क्योंकि उसका सम्मान दिखावे की राजनीति से नहीं बल्कि उनके अधिकारों से है। यह छोटी सी बात राजनेता तो समझना ही नहीं चाहते और भोली-भाली जनता को भी लगता है कि सब ठीक है।
कुंभ में बिचौलिए की दबंगई
जनता को तो इसी बात से खुशी है कि देश के प्रधानमंत्री ने सफाईकर्मियों के पैर धोए हैं। यदि वह ऐसा नहीं करते तो कोई आलोचना नहीं करता और कोई बुरा भी नहीं मानता। वहीं, सफाईकर्मियों को यदि अधिकार नहीं मिलेगा, तो ज़रूर आपसे पूछा जाएगा कि यह काम आपने क्यों नहीं किया?
इतना दोहरापन लिए आप देश के प्रधानमंत्री कैसे बने रह सकते हैं? यह बात जनता को समझनी ही पड़ेगी, नहीं समझेगी तो देश का बहुत बड़ा नुकसान होगा और उसका बेड़ा गर्क होता रहेगा। कुंभ में बिचौलिए के माध्यम से सफाईकर्मियों की नियुक्ति होती है। मतलब बिचौलिया मुफ्त का खाता है और कचरे कोई और उठता है।
जब सफाईकर्मी यह बात अधिकारियों से पूछते हैं तो वे कहते हैं, “यह तो परंपरा है जो हमेशा से ऐसे ही होता आ रहा है। जमादारों के माध्यम से ही सफाईकर्मी लगाए जाते हैं।”
फोटो खिंचवाने की परंपरा से बचना होगा
देश की राजनीति में यह जो दिखाने, फोटो खिंचाने और प्रचार करने की ज़हरीली परंपरा शुरू हुई है, उसके बीच असल मुद्दे खत्म से हो गए हैं। राजनीतिक पार्टियों के प्रचार-प्रसार में जितने पैसे खर्च होते हैं, उनका प्रयोग अगर रोज़गार में किया जाए तो देश के हालात काफी बेहतर हो सकते हैं।
अब भला सरकार को प्रचार करने की क्या ज़रूरत है? लोग जानते हैं कि किसकी सरकार है और जनता के लिए क्या कर रही है। अगर आपको बताना पड़ रहा है तो इसका मतलब है कि आपने किया कम है और बता ज़्यादा रहे हैं।
अगर आपने काम किया होता तो बताना नहीं पड़ता। लोगों को यह बात समझनी होगी कि दिखावे और फोटोबाज़ी के बीच फर्क होता है।
नेताओं के चुनावी स्टंट से मंत्रमुग्ध होने से बचना होगा और अपने अधिकारों से लेकर समाज और समाज के लोग जो हमारा काम आसान करते हैं, उनके अधिकारों के लिए भी राजनेताओं, प्रधानमंत्री और मंत्री से सवाल पूछना पड़ेगा।
यदि हमने ऐसा नहीं किया तो पैर धोकर, हाथ जोड़कर और रोटी खाकर वे निकल जाएंगे। हम और आप केवल ताली पीटते रह जाएंगे लेकिन हाथ कुछ ना आएगा। यहां तक कि जो कुछ हमारा है, वह भी छिन जाएगा।