भारत में जिस तादाद से जनसंख्या बढ़ रही है, उस अनुरूप वर्तमान में देश रोज़गार के संकट से जूझ रहा है। देश का युवा बेरोज़गारी से परेशान है और उसे उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखाई दे रही है। केन्द्र सरकार को शायद इस बात का अंदाज़ा नहीं है कि सरकार के जुमलों से भूख नहीं मिटती है।
भारत की अर्थव्यवस्था हर साल 7% की दर से बढ़ रही है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारी अर्थव्यवस्था मज़बूत हो रही है लेकिन क्या यह मज़बूती अंदर से खोखली है? क्या यह जॉबलेस ग्रोथ है? क्योंकि ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ द इंडियन इकोनॉमी’ के मुताबिक भारत में पिछले साल 1.10 करोड़ लोग नौकरियों से हाथ धो चुके हैं।
जेटली का बयान असंतोषजनक
इस रिपोर्ट के मुताबिक 5 लाख नौकरियों से युवाओं को वंचित होना पड़ा है। वहीं, जेटली ने जॉबलेस ग्रोथ की बात को यह कहकर नकार दिया कि बीते 5 वर्षों में देश में कोई बड़ा राजनीतिक या सामाजिक आंदोलन नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि अगर नौकरियां नहीं पैदा हुई होती तब लोगों में असंतोष बढ़ता लेकिन ऐसा नहीं दिखा। जेटली के बयान से तो यही लगता है कि वह युवाओं की सहनशक्ति की परीक्षा ले रहे हैं।
जेटली ने आगे कहा, “जीडीपी के आंकड़े अनुमानित होते हैं लेकिन टैक्स कलेक्शन वास्तविक होता है। टैक्स तभी बढ़ता है जब लोगों की कमाई बढ़ती है और खर्च बढ़ता है। 2016-17 और 2017- 18 में टैक्स कलेक्शन बढ़ने की दर 15% से 18% हो गई है। इसका मतलब है कि इकोनॉमी बढ़ी है।”
आंकड़े छुपाने की विरासत रही है
जॉबलेस ग्रोथ या बेरोज़गारी का यह मुद्दा विवादों में है। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक खबर के अनुसार सरकार ने एनएसएसओ (नैशनल सैंपल सर्वे) के जिन आंकड़ों को दबाने का प्रयास किया था, वह 6.1 फीसदी बेरोज़गारी दर बतातें हैं जो 45 सालों में सर्वाधिक है।
इस आंकड़े के मुताबिक बेरोज़गार पुरुषों (15-23) की संख्या 18.7 फीसदी है जबकि 27.8 फीसदी महिलाएं बेरोज़गार हैं। इस खबर के लीक होने के बाद नीति आयोग ने सफाई दी कि यह आंकड़े ‘वेरिफाइड’ नहीं हैं और आंकड़ों को पुनः संशोधित किया जाएगा।
सरकार ने करोड़ों की तादाद में जॉब देने की बात कही थी इसलिए देश का युवा जॉब चाहता है ना कि आंकड़ों में फंसना चाहता है। मौजूदा वक्त में यह बेहद ज़रूरी है कि सरकार आंकड़ों के जाल में ना फंसकर नौकरियों के साधन लेकर आएं। देश में चुनाव तो आते-जाते रहेंगे लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि आप आम जनता को रोज़गार देने के बजाए यदि सिर्फ जुमले फेंक रहे हैं तो यह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है।
वैसे भी हमारे देश में आंकड़े छुपाने की विरासत रही है जहां रेल हादसों में भी आंकड़ों को दबा दिया जाता है। आप अगर विकास की बात कर रहे हैं तब आंकड़ों के साथ खेल मत खेलिए, जनता सब जानती है।